पिटारे से निकलेगा मंदिर
रवि अरोड़ा
लगता है कि मेरी संगत ही ख़राब है । सारा दिन ऊलजलूल हाँकते हैं मेरे लोग। पता नहीं कहाँ कहाँ से एसी ख़बरें लाते हैं जिनका न सिर होता है न पैर । अब देखिये न , इस बार राम मंदिर की ख़बर उठा लाए । कह रहे हैं कि मोदी सरकार संसद के अगले शीतक़ालीन सत्र में राम मंदिर पर अध्यादेश लाने जा रही है और लोकसभा चुनावों से पहले मंदिर का शिलान्यास हो जाएगा । बक़ौल उनके संघ, भाजपा और विहिप जैसे संघटनों के हिस्से सारा क्रेडिट आए उसकी क़वायद शुरू हो चुकी है । अब मैं हैरान हूँ कि एसा कैसे होगा ? अभी दो दिन पहले ही तो विहिप ने भाजपा को गरियाया था और राम मंदिर के ख़िलाफ़ अंतिम लड़ाई की घोषणा की थी । मंदिर के लिए क़ानून बनाने की माँग को लेकर विहिप की अगुवाई में ही चुनिंदा संत राष्ट्रपति से मिले थे और अब नवम्बर में सभी सांसदों से मुलाक़ात तथा दिसम्बर से देश भर के मंदिरों में कार्यक्रम करने जा रहे हैं । यही नहीं 29 अक्टूबर से सर्वोच्च न्यायालय भी इस मामले में लगातार सुनवाई शुरू कर रहा है और उसने मामले को उच्च पीठ को भेजने से भी इनकार कर दिया है । उधर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और कभी राम मंदिर आंदोलन के हिस्सा रहे योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं कि जब राम जी चाहेंगे मंदिर तभी बनेगा और संघ प्रमुख मोहन भागवत भी बेशक मंदिर पर तीन बयान दे चुके हों मगर उनकी बातों में भी नरमी ही है । एसे में मंदिर को लेकर क़ानून बनाने की बात कहां से आ गई और एसी क्या ज़रूरत है जो सरकार इतना बड़ा क़दम उठाने जा रही है ?
मेरे लोगों की बातें आपको बताऊँ तो आप भी हैरान होंगे । उनका कहना है कि मोदी सरकार जानती है कि उसने एक भी चुनावी वादे और घोषणा को पूरा नहीं किया । अब इकलौता राम मंदिर का मामला ही एसा है जिससे झटपट सभी चुनावी घोषणाओं और वादों को जनता के दिमाग़ से हटाया जा सकता है । रणनीति के तहत ही मोदी जी ने पूरे साढ़े चार साल मंदिर मुद्दे पर मुँह नहीं खोला और इसे चुनाव के लिए बचा कर रखा । अब यही समय है कि मंदिर के बहाने अपनी तमाम विफलताओं पर मिट्टी डाली जा सकती है । मेरे लोगों की मानें तो राम मंदिर को लेकर विहिप को अचानक आया होश भी नूरा कुश्ती है । दरअसल मंदिर को लेकर माहौल बनाया जा रहा है ताकि जनता भी इस मामले से दोबारा जुड़े और भाजपा का एहसान मान कर 2019 में उसका ख़याल रखे । जानबूझकर कर संतों के मुख से कहलवाया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट को दरकिनार करके तीन तलाक़ पर अध्यादेश लाया जा सकता है तो राम मंदिर पर क्यों नहीं , ताकि एसा करने पर मुस्लिम और धर्मनिरपेक्ष लोग बवाल न करें । उधर, विहिप में इन दिनो दोफाड़ हैं और डॉक्टर प्रवीण तोगड़िया ने मोदी, संघ और अपने ही संघटन विहिप की नाक में दम कर रखा है । विहिप घोषित रूप से संघ का अनुषंगिक संघटन है और उसी के इशारे पर चलता है मगर तोगड़िया संघ की भी मुख़ालफ़त कर रहे हैं । आसन्न पाँच राज्यों और लोकसभा चुनावों में मंदिर को लेकर यही तोगड़िया कोई बड़ा आंदोलन न खड़ा करें इस लिए उनके हाथ से भी मुद्दा छीना जा रहा है । दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदिरों के दर्शन के बहाने नरम हिंदुत्व का जो राग छेड़ा हुआ है और भाजपाइयों से अधिक बड़े हिंदू दिखने लगे हैं , उससे भी भाजपा डरी हुई है और राहुल को काउंटर कर पुनः यह साबित करना चाहती है कि हिंदुओं के असली हितैषी हम ही हैं ।
भाजपा जानती है कि पब्लिक मंदिर मुद्दे को भूल नहीं पा रही और उसे ख़ूब याद है कि 1989 में भाजपा ने पालमपुर में प्रस्ताव पास कर राम मंदिर के लिए अध्यादेश की बात कही थी और उसके कारण ही बाजपेई जी बाद में तीन बार प्रधानमंत्री बने । मगर गठबंधन सरकारों के चलते वे एसा नहीं कर सके मगर अब मोदी जी तो बहुमत में हैं और अब भी एसा न हुआ तो उसके मतदाता मुआफ़ नहीं करेंगे । यही कारण है कि चुनाव से पहले मोदी जी अपने पिटारे से मंदिर निकालेंगे । अब आप ही बताइये लग रही हैं न सारी बातें हवाई ? क्या कहा आपको भी लगता है कि सचमुच एसा होने जा रहा है ?