पाकिस्तान, बांग्लादेश और फिर उसके बाद !
पाकिस्तान, बांग्लादेश और फिर उसके बाद !
रवि अरोड़ा
खबर है कि पाकिस्तान सरकार ने शहीद भगत सिंह और उनके साथियों को स्वतन्त्रता सेनानी स्वीकार करने की बजाय अपराधी और आतंकवादी घोषित कर दिया है। मामला कुछ ऐसा है कि भगत सिंह फाउंडेशन की मांग पर लाहौर हाईकोर्ट ने साल 2018 में लाहौर के शादमान चौक का नाम बदलकर भगत सिंह के नाम पर रखने का आदेश दिया था मगर सरकार ने ऐसा नहीं किया और अब जब मामले की दोबारा सुनवाई हुई तो नया हलफनामा देकर भगत सिंह पर उक्त आरोप ही लगा दिए । वैसे देखा जाए तो शहीद भगत सिंह जिन्हें हम भारत के सबसे बड़े स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा देते हैं और उनका नाम आते ही श्रद्धा से शीश नवा देते हैं, वे हमसे अधिक पाकिस्तान के नायक हैं। बेशक उनका पूरा जीवन अविभाजित हिंदुस्तान को समर्पित था मगर वे जिस धरा पर पैदा हुए, जहां उन्होंने लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लिया, जहां उन्हें जेल में रखा गया , जहां उनके मुकदमे की सुनवाई हुई और जहां उन्हें शहीद किया गया , वह सारे स्थान तो पाकिस्तान में ही हैं। वे तो अपने जीवन काल में दिल्ली भी केवल दो बार ही आए थे । फिर पाकिस्तान यह हरकत क्यों कर रहा है ? क्या केवल इस लिए कि पाकिस्तान आज एक इस्लामिक देश है और भगत सिंह और उनके साथी उसके साम्प्रदायिक खांचे में फिट नहीं बैठते ?
क्या यह हैरत की बात नहीं है कि पाकिस्तान के स्कूलों में आज बच्चों को मुल्क का इतिहास छठी सदी में हिंदुस्तान आए पहले मुस्लिम हमलावर मोहम्मद बिन कासिम से ही पढ़ाया जा रहा है और यूं दर्शाया जा रहा है कि जैसे आज का पाकिस्तान इससे पहले कबाइली और असंस्कारी ही था । जबकि दुनिया जानती है बेशक मानव जीवन अफ्रीका से शुरू हुआ मगर सबसे पुरानी संस्कृति और सभ्यताएं तो पाकिस्तान में ही खोजी गई हैं । ईसा से पांच हजार साल पुराने हड़प्पा और मोहन जोदड़ो के अवशेष आज के पाकिस्तान में ही तो मिले थे । मगर पाकिस्तान अब उनका जिक्र करना भी मुनासिब नहीं समझता । क्या यह सारी मशक्कत मात्र इसलिए कि पाकिस्तान का पुराना इतिहास उसकी मजहबी कट्टरता के आड़े आता है ?
उधर सांप्रदायिक ताकतों के दबाव में बांग्लादेश भी पाकिस्तान की राह पर चल पड़ा है और वहां भी अपने इतिहास और उसके नायकों को भुलाने के प्रयास शुरू हो गए हैं। अल्पसंख्यकों के प्रति उसका नजरिया भी अब पाकिस्तान जैसा हो गया है और अल्पसंख्यको को दोयम दर्जे का नागरिक माना जा रहा है। हैरत की बात यह है कि अपने इसी सांप्रदायिक नजरिए के चलते बांग्लादेश अब उसी पाकिस्तान से गलबहियां कर रहा है जिसने दशकों तक उस पर तरह तरह के जुल्म ढाए और लगभग तीस लाख बंगालियों की निर्मम हत्या कर दी थी । कमाल की बात देखिए कि बांग्लादेश को आज वही भारत फूटी आंख नहीं सुहा रहा जिसने उसे आजादी दिलाने में अपने चार हजार जवान शहीद करवा लिए और उस दौर के अपने सारे आर्थिक संसाधन झोंक दिए थे । यही नहीं बांग्लादेश को आजाद कराने के चक्कर में भारत के सिर पर अमेरिका जैसे ताकतवर देश से दो दो हाथ होने का खतरा तक उत्पन्न हो गया था ।
इतिहास गवाह है कि जब तक पाकिस्तान लोकतांत्रिक मूल्यों पर चला उसने भरपूर तरक्की की और उसने आठवें दशक तक हर मामले में भारत पर बढ़त भी बनाए रखी । मगर अपनी मजहबी कट्टरता के चलते आज वह दुनिया का सबसे बड़ा भिखारी देश बन गया है। बांग्लादेश भी अब तक अच्छी खासी तरक्की कर रहा था और प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत से आगे ही निकल गया था मगर अब वह भी उन्मादियों की झोली में बैठ कर अपना बेड़ा गर्क कर रहा है। चलिए छोड़िए पाकिस्तान और बांग्लादेश को । थोड़ा अपने गिरेबान में भी झांक लेते हैं और हिसाब लगाते हैं कि क्या हमारे यहां भी तो यही सब नहीं हो रहा ? हमारे यहां भी जो धार्मिक उन्माद जबरन पैदा किया जा रहा है, क्या वह हमें भी दूसरा पाकिस्तान अथवा बांग्लादेश तो नहीं बना देगा ? बुरा न मानें दुनिया का इतिहास तो यही गवाही देता है कि जो मुल्क भी साम्प्रदायिक शक्तियों की गोद में बैठा, उसी का बेड़ा गर्क हुआ ।