पहाड़ पर राजस्थान

रवि अरोड़ा
हाल ही में चार बार उत्तराखंड जाना हुआ । पहले ऋषिकेश की तरह फिर मसूरी देहरादून , बाद में लैंसडाउन और अब नैनीताल मुक्तेश्वर । हर जगह होटलों की एक ही हालत दिखी । पानी के लिए हाहाकार सब जगह मचा था । सभी होटल वाले टैंकरों से पानी मंगवाते दिखे जो शर्तिया उनके मासिक खर्च पर अच्छा खासा बोझ बढ़ा देता होगा । हालांकि कुछ होटलों के निकट प्राकृतिक स्रोत अथवा नदी भी हैं मगर जलापूर्ति फिर भी टेड़ी खीर है । बड़े पहाड़ी शहरों में सरकारी सप्लाई है मगर वहां भी पानी घंटे आध घंटे ही आता है । यह हालत तो तब है जबकि अभी मौसम गर्मी का नहीं है और वहां इन दिनों कई बार वर्षा भी हो चुकी है ।

मसूरी के जिस होटल मोजेक में ठहरा था वहां दिन भर पानी का टैंकर लगा हुआ दिखता था । पता चला कि सरकारी पेयजल के चार कनेक्शन के बावजूद दस बारह टैंकर रोज़ पानी बाहर से खरीदना ही पड़ता है । उसके बाद तो जहां जहां भी गया सब जगह एक ही सूरत ए हाल दिखा । जहां कहीं कोई झरना मिला वहां पानी भरते हुए टैंकर भी अवश्य दिखे । पानी की सप्लाई भी एक अच्छा खासा धंधा बन कर उभरा है उत्तराखंड में । पता करने बैठा तो पता चला कि होटल वाले ही नही पूरी स्थानीय आबादी ही इस समस्या से परेशान है । कई कई किलोमीटर दूर से बच्चे और महिलाएं पानी भर कर लाते हैं और पानी को लेकर आए दिन गांवों और कस्बों में झगड़े होते हैं । कुमाऊं की स्थिति फिर भी बेहतर है मगर गढ़वाल तो पूरी तरह भगवान भरोसे है । दो चार जगह फोन मिलाए और सरकारी आंकड़े खंगाले तो पता चला कि प्रदेश के साढ़े उन्नीस हजार प्राकृतिक स्रोतों में से सत्तरह हजार का पचास से नव्वे फीसदी पानी अब कम हो चुका है अथवा वे सूख गए हैं । वर्षा का जल जमीन तक पहुंचने के मार्ग में कथित विकास ही सबसे बड़ी बाधा बन कर उभरा है और बरसात में सारा पानी झरनों और जल स्रोतों से बह कर तुरंत ही नदी के मार्फत प्रदेश की सीमा छोड़ देता है । हाल ही में वर्षा ने प्रदेश में भारी तबाही मचाई । खूब पानी बरसा मगर जमीन में ठहरा नहीं और बाढ़ बन कर गुज़र गया । प्रांत में अधिकांश जगह बोरिंग हो नहीं पाती और जहां होती भी है , वहां पानी नहीं निकलता । नतीजा प्रदेश की सवा करोड़ आबादी को बहते हुए पानी का ही सहारा है मगर बहता पानी भी अब रुसवा कर रहा है । यह हालत उस प्रदेश की है जहां गंगा यमुना जैसी बड़ी नदियां जन्म लेती हैं और धार्मिक ग्रंथों के हिसाब से यह स्थान देवताओं का घर है ।

एक दौर था जब प्रदेश में जल संचय के पुराने तरीके नौरे और धारे कारगर साबित होते थे मगर आधुनिक बनने की चाह में सब खत्म कर दिए गए । पानी नही है तो खेती भी कैसे हो । नतीजा होटल वालों को जमीनें बेच बेच कर लोगबाग देश के अन्य शहरों में जा रहे हैं । यूं भी प्रदेश की इकानोमी जमाने से मनीऑर्डर के भरोसे ही रही है । मगर जमीन बेचने में भी अब दिक्कत आ रही है । जहां पानी नहीं है वहां कोई होटल वाला जमीन भला क्यों खरीदेगा । डंडे का जोर तो मुल्क में हर जगह है ही सो यहां पानी के प्राकृतिक स्रोतों पर जल माफियाओं के कब्जे हो रहे हैं । हो सकता है मेरी बातें आपको अतिश्योक्ति पूर्ण लग रही हों मगर भविष्य में कभी आप पहाड़ पर जाएं तो होटल से बाहर निकल कर किसी से पानी की आपूर्ति के बाबत पूछ लीजिएगा । कसम से आपको यह न अहसास करा दे कि आप दूसरे राजस्थान में हैं तो कहना ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED POST

जो न हो सो कम

रवि अरोड़ाराजनीति में प्रहसन का दौर है। अपने मुल्क में ही नहीं पड़ोसी मुल्क में भी यही आलम है ।…

निठारी कांड का शर्मनाक अंत

रवि अरोड़ा29 दिसंबर 2006 की सुबह ग्यारह बजे मैं हिंदुस्तान अखबार के कार्यालय में अपने संवाददाताओं की नियमित बैठक ले…

भूखे पेट ही होगा भजन

रवि अरोड़ालीजिए अब आपकी झोली में एक और तीर्थ स्थान आ गया है। पिथौरागढ़ के जोलिंग कोंग में मोदी जी…

गंगा में तैरते हुए सवाल

रवि अरोड़ासुबह का वक्त था और मैं परिजनों समेत प्रयाग राज संगम पर एक बोट में सवार था । आसपास…