पहचान असली खूंखारों की
रवि अरोड़ा
रिपोर्टिंग के सिलसिले में जिले की डासना जेल में कई बार जाना हुआ है। पत्रकार साथियों से देश प्रदेश की कुछ अन्य जेलों की भी छुटपुट खबरें मिलती रहती हैं। लगभग सभी जगह पर एक बात समान है कि निजी दुश्मनी के चलते खुलेआम हत्या करने वालों का कैदियों के बीच बहुत सम्मान होता है जबकि बलात्कारियों से बेहद नफरत की जाती है। ऐसा भी खूब होता है कि नाबालिग से दुराचार अथवा सामूहिक बलात्कार के आरोपियों को पुराने कैदी मिल कर बहुत पीटते भी हैं। कुछ मठाधीश किस्म के सजायाफ्ता कैदियों द्वारा इस आरोपियों के साथ भी यही अपराध दोहराए जाने की भी अपुष्ट खबरें बाहर आती रहती हैं। जेलों के जानकर लोगों के बीच यह आम धारणा है कि अपने बीच आए जघन्य बलात्कारियों को सामाजिकता का बोध लिए कैदी खुद अपने तईं सजा देने की कोशिश करते हैं। विडंबना ही है कि जेलों में बंद खूंखार कैदियों के तो सामाजिक सरोकार हैं मगर हमारी सरकारों, सामाजिक संगठनों, आला अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों के बीच यह सिरे से नदारद हैं । निर्मम हत्याओं और सामूहिक दुराचार करने वालों को अब न केवल रिहा कर दिया जाता है अपितु जेल से बाहर आने पर उनका जोरदार स्वागत और अभिनन्दन तक किया जा रहा है।
गुजरात की 21 वर्षीय बिल्किस बानो उस समय पांच माह के गर्भ से थी जब उनसे सामूहिक बलात्कार किया गया और उसकी तीन वर्षीय बेटी समेत परिवार के सात सदस्यों की निर्मम हत्या की गई । सीबीआई कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुए इस नृशंस कांड में कुल 11 लोगों को दोषी पाया और आजीवन कैद की सजा सुनाई थी। मगर तकनीकि दांवपेच का इस्तेमाल कर गुजरात की भाजपा सरकार ने सजा पूरी होने से पूर्व ही इन सभी दरिंदों को स्वतंत्रता दिवस पर रिहा कर दिया । खास बात यह है कि जिस दिन लाल किले से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं के सम्मान पर लंबा चौड़ा भाषण देश को पिलाया ठीक उसी दिन उनकी पार्टी की राज्य सरकार ने इन सामूहिक बलात्कारियों को छोड़ दिया । रेमिशल पॉलिसी के तहत जिस 11सदस्यीय कमेटी की सिफारिश पर इन बलात्कारियों को रिहा किया गया उनमें दो भाजपा विधायक भी हैं। बताना फिजूल होगा कि इन अपराधियों में से भी अनेक भाजपा के सदस्य अथवा समर्थक थे। बेशर्मी की इंतेहा देखिए कि महिलाओं के बीच आतंक का पर्याय बने इन वहशियों का विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठन अब इस तरह जोरदार स्वागत कर रहे हैं और मिठाइयां बांट रहे हैं जैसे देश के लिए कोई बड़ी कुर्बानी देकर वे लौटे हों।
गुजरात में चार महीने बाद चुनाव होने हैं। बिल्किस बानो मुस्लिम है और सभी अपराधी हिंदू। जाहिर है चुनाव के दौरान धार्मिक ध्रुवीकरण तेज करने की नीयत से भाजपा द्वारा इस शर्मनाक कृत को अंजाम दिया गया । कहना न होगा कि इसी मामले को नज़ीर बता कर गुजरात दंगों के अब वे तमाम लोग भी छुट जायेंगे जिन्होंने हजारों लोगों का कत्ल किया अथवा महिलाओं की अस्मत से खिलवाड़ किया । पता नहीं इस तुलना पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है मगर कम से कम मुझे तो यही लगता है कि जेलों में बंद जिन अपराधियों को हम खूंखार कहते हैं, उनमें तो फिर भी कुछ न कुछ इंसानियत है मगर खद्दर पहन कर हमारे बीच आकर बड़ी बड़ी बातें करने वाले कतई असली खूंखार हैं।