नायकों के चुनाव की भूल भुलैया
रवि अरोड़ा
इस बार दीपावली रणथंबोर नेशनल पार्क में मनाई। जाहिरा तौर पर तो खुले जंगल में बाघों को विचरण करते देखने गया था मगर आंखें वहां उस काले हिरण को भी ढूंढ रही थीं जो देश के मानस पर आजकल छाया हुआ है। राजस्थान और उस पर भी रणथंबोर का विशाल नेशनल पार्क, यही तो वह जगह थी जहां काले हिरण के मिलने की सबसे प्रबल संभावना बताई गई थी। खैर मुझे न बाघ के दीदार हुए और न ही काले हिरण के । भालू, जंगली सूअर, सांभर, चीतल और नील गाय जैसे सामान्य जानवरों से रूबरू होकर ही संतोष करना पड़ा । बेशक जानवरों को सामान्य अथवा असामान्य की श्रेणी में बांटना कतई अनुचित है मगर जिन जानवरों को हम लगभग खो चुके हैं अथवा कुछ दशकों में जिनके लुप्तप्राय होने की आशंका हो तो उन्हें सामान्य कहें भी तो कैसे ? अब इसे देश का दुर्भाग्य न कहें तो और क्या कहें कि लुप्तप्राय की श्रेणी में शुमार यह काला हिरन भी देश वासियों के जहन में इसलिए जगह बना सका कि इसके शिकार के एक मामले में एक नामी गिरामी फिल्म स्टार को एक कुख्यात गैंगस्टर ने जान से मारने की धमकी दी हुई है। हद देखिए कि इस फिल्म स्टार को तो करोड़ों लोग अपना नायक मानते हैं ही, अब इस गैंगस्टर के चाहने वालों की भी कोई कमी नहीं रही। हां! अब काले हिरणों की कमी होती है तो होती फिरे।
यह देखना बेहद कष्टकारी है कि हमारा समाज अपने नायकों के चुनाव में अब पूरी तरह पथभ्रष्ट हो चला है । छिछोरे फिल्मी कलाकारों और समाज को बांटने वाले घटिया राजनेताओं तक तो फिर भी गनीमत थी मगर अब तो कुख्यात गैंगस्टर भी नायकों की सूची में स्थान पाते जा रहे हैं। अखबारों, टीवी चैनल्स और सोशल मीडिया ही नहीं कवि सम्मेलनों में भी आजकल लॉरेस विश्नोई का महिमा मंडन हो रहा है। बेशक इस गैंगस्टर की आरती उतारने वाले वही लोग हैं जो हर शय को सांप्रदायिक नजरिए से देखते हैं। उनके लिए तो बस इतना ही काफी है कि जिसे धमकी मिली हुई है वह फिल्मी सितारा दूसरे धर्म का है और जिसने धमकी दे रखी है, वह उनके अपने धर्म का है। उन्हें इस बात से कोई लेना देना नहीं कि जेल में बंद होने के बावजूद यह गैंगस्टर कैसे अपने सात सौ शूटर सहयोगियों के साथ मिलकर कानून व्यवस्था को चुनौती दे रहा है और कैसे सरे आम ताबड़तोड़ हत्याएं कराने में सफल होता जा रहा है।
दुनिया भर में जानवरों की 42 हजार प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं। इनमें भारत में पाए जाने वाले तीन सौ से अधिक जानवर भी शामिल हैं। बंगाल टाइगर, एशियाई शेर, हिम तेंदुआ, भारतीय हाथी और काला हिरण इस सूची में सबसे ऊपर हैं। शेरों के संरक्षण पर तो फिर भी देश में काम हो रहा है। चीतों को भी विदेश से लाकर मुल्क में बसाया जा रहा है मगर काले हिरण जैसे जानवर अभी भी उपेक्षा का शिकार हैं। धन्य है वह बिश्नोई समाज जो आज भी पेड़ों और जानवरों के संरक्षण में लगा हुआ है और काले हिरण के प्रति भी उनमें श्रृद्धा का भाव है। इसी समाज के दर्जनों स्वयंसेवक प्रकृति संरक्षण में दिन रात जूते हुए हैं। लोग उनका नाम तक नहीं जानते । विश्नोई समाज के इसी भाव को मिल रहे थोड़े बहुत प्रचार को कैश करने और अपना नाम चमकाने के लिए लॉरेंस विश्नोई जैसे कुख्यात अपराधी मैदान में उतरे हुए हैं। यह कमाल की बात नहीं है क्या कि प्रकृति प्रेम की मिसाल विश्नोई समाज के कर्मठ कार्यकर्ताओं को अपना नायक बनाने की बजाय हम उस गैंगस्टर को अपना नायक मान रहे हैं जिसका इतिहास खून से रंगा हुआ है। अपनी समझ से बाहर है कि नायकों के चुनाव की हमारी यह भूल भुलैया आखिर कब खत्म होगी ?