नमामि गंगे

रवि अरोड़ा

केंद्रीय मंत्री डॉक्टर सत्यपाल सिंह के बारे में लोगों की राय एक बड़बोले नेता की है जो कभी भी कहीं भी कुछ भी बोल देते हैं । मगर इस बार वे बड़े पते की बात कह गए । बात भी एसी कि उनकी पार्टी का बड़े से बड़ा नेता भी शायद उसे कहने का साहस नहीं कर सकता था। देहरादून में नमामि गंगे से जुड़ी विभिन्न योजनाओं के लोकार्पण कार्यक्रम में उन्होंने लोगों से अपील की कि गंगा को निर्मल बनाए रखने के लिए अस्थियों को उसमें प्रवाहित न करें और अस्थियों को जमीन पर इकट्ठा करके अपने पूर्वजों के नाम का पौधे लगायें । मंत्री जी की बात में बेहद दम है । उन्होंने जो कहा देर सवेर उस दिशा में हमें सोचना ही होगा । अपनी परम्पराओं और मान्यताओं के नाम पर कब तक हम प्रकृति से खिलवाड़ करेंगे ? एक मृतक के अंतिम संस्कार में लगभग दो पेड़ तो हम फूँक ही डालते हैं साथ ही अस्थियाँ प्रवाहित करने के नाम पर गंगा को और प्रदूषित करते हैं ।

पतित पावनी और मैया कही जाने वाली हमारी गंगा की हालत किसी से छुपी नहीं है । हाल ही में एक रिपोर्ट में कहा गया है की हरिद्वार से आगे आने के बाद गंगा का जल पीना तो दूर नहाने योग्य भी नहीं रहता । अपने किनारे बसे विभिन्न राज्यों के दर्जनों शहरों के चालीस करोड़ लोगों की जीवन रेखा गंगा को अब बीमारियों का सबसे बड़ा कारण माना जाने लगा है । अकेले उत्तर प्रदेश की बारह फ़ीसदी बीमारियाँ गंगा जल से हो रही हैं । इसके किनारे बने दो परमाणु बिजली घर , दर्जनों रासायनिक उद्योग और सैंकड़ों चमड़ा कारख़ानों के कचरे के अतिरिक्त छोटे बड़े शहरों के हज़ारों सीवरयुक्त नाले भी इसमें हर समय गिरते रहते हैं । बताया जाता है कि प्रतिदिन तीन करोड़ लीटर कचरा हम लोग गंगा में डालते हैं । जली-अधजली लाशों के अतिरिक्त लाखों लोगों की अस्थियाँ भी हम हर साल गंगा के हवाले करते हैं । अकेले वाराणसी में सालाना तेतीस हज़ार शव और उनकी अस्थियाँ गंगा में डाली जाती हैं । एसे ही तमाम कारण है जिनके चलते गंगा को दुनिया की सबसे अधिक प्रदूषित पाँच नदियों में अब गिना जाता है ।

बेशक मंत्री , मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री आए दिन गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने के लम्बे चौड़े दावे करते रहते हैं मगर सच्चाई यही है कि गंगा तो फिर भी मैली ही है । यह तो तब है जब गंगा में बैक्टीरोफ़ेज़ नामक विषाणु है जो जीवाणुओं को ज़िंदा नहीं रहने देता और इसके चलते गंगा अपनी सफ़ाई ख़ुद करती है । उधर , मुल्क में पहले गंगा एक्शन प्लान के नाम पर रुपयों की बंदर बाँट हुई और अब नमामि गंगे योजना के नाम पर सिर्फ़ राजनीति हो रही है । कांग्रेसी सरकारों ने एक्शन प्लान के नाम पर बीस हज़ार करोड़ फूंके तो मोदी सरकार में इससे उलट नमामि गंगे मंत्रालय तो बनाया मगर उसका बजट ख़र्च ही नहीं हो रहा और बैंक में ही पड़ा सड़ रहा है । सरकार को ना जाने कब समझ आएगा कि आरतियाँ करने से गंगा साफ़ हो सकती तो शायद प्रदूषित ही ना होती । आज ज़रूरत है पाखंड और आडंबर छोड़ कर ठोस कार्य करने की मगर सरकार को इसकी ज़रूरत ही दिखाई नहीं देती । उसका हित तो ड्रामेबाजी से ही ठीक ठाक सध रहा है ।

शास्त्र कहते हैं कि गंगा विष्णु के चरणों से निकली और राजा भगीरथ अपने साठ हज़ार पूर्वजों के उद्धार को भगवान शिव के सहयोग से इसे धरती पर लाए मगर क्या सचमुच युगों युगों तक हमारी अस्थियाँ ढोने का ठेका गंगा ने लिया था ? पाप धोने के नाम पर अपनी मैल कब तक हम गंगा के उदर में उतारेंगे ?

उम्मीद के अनुरूप सत्यपाल सिंह के बयान पर तीखी प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हो गई हैं और सम्भवत मंत्री जी को भी अब तक अहसास हो गया होगा कि उन्होंने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है । वोट बैंक खिसकता देख पार्टी नेतृत्व से उन्हें अब तक डाँट भी पड़ चुकी होगी । हो सकता है कि एक आध दिन में मंत्री जी का बयान आ जाए कि मीडिया ने उनकी बात को तोड़ मोड़ कर पेश किया । यह भी हो सकता है कि वे अपने बयान पर मुआफ़ी माँग लें मगर फिर भी उन्होंने देश को एक नई बहस तो दे ही दी है और इस बहस को अब आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी हमारी और आपकी भी है ।

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