नए सिरे से सीखिए गिनती गिनना
नए सिरे से सीखिए गिनती गिनना
रवि अरोड़ा
लीजिए कुंभ में स्नान करने वालों की संख्या साठ करोड़ पार कर गई और देखते ही देखते लगभग आधा भारत पाप मुक्त हो गया । पाप मुक्तियों की यह संख्या भी अंतिम नहीं है और 26 फरवरी को जब कुंभ मेले की समाप्ति होगी तब तक यह तादाद यकीनन सत्तर करोड़ तक पहुंच जाएगी। गूगल बाबा बताता है कि यह संख्या अमेरिका, रूस, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, ब्राज़ील, और बांग्लादेश जैसे देशों की कुल आबादी से ज़्यादा होगी। यही नहीं यदि इस आयोजन में शामिल होने वाले लोगों की संख्या को एक देश माना जाए, तो आबादी के लिहाज़ से यह भारत और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाला देश होगा ।
अब इन आंकड़ों को देख कर आप यह मत पूछने लगना कि भला यह संख्या इतनी अधिक कैसे हो सकती है ? आप विघ्नसंतोषी ही होंगे यदि कहेंगे कि देश की 109 करोड़ की हिन्दू आबादी में से सत्तर करोड़ कुंभ नहा आएं तो सारी दुनिया में तहलका क्यों नहीं मचा ? भला ऐसे कैसे हुआ कि जो हिंदू कर्मकांडी नहीं हैं, वे भी हो आए ? जो नास्तिक हैं वे भी धर्म लाभ ले चुके और जो जातीय बंधनों के चलते ऐसे आयोजनों से दूर रहते हैं वे भी नहा आए ? वे अस्सी करोड़ भारतीय जो मुफ्त के पांच किलो अनाज पर जिंदा हैं , उन्होंने भी धर्म लाभ लिया ? उत्तरी भारत तो चलिए माना बहुतायत में सनातनी है मगर नॉर्थ ईस्ट और दक्षिणी भारत के भी सभी हिंदू प्रयाग हो आए तो कैसे इन उन राज्यों में कोई हलचल नहीं हुई ? डेढ़ महीने तक देश यूं ही चलता रहा , कोई काम नहीं रुका और हम यूं ही विकास की राह पर सरपट कुलांचे भरते रहे ? न स्कूल बंद हुए न उद्योग धंधे, न सरकारी छुट्टियां हुईं और न ही किसी जगह लोगों की हाजरी कम हुई फिर कैसे सारा देश चुपके से गंगा में डुबकी लगा आया और किसी को कानों कान खबर न हुई ? मैं भी नहा आया, आप भी नहा आए और हमें भी पता नहीं चला ? यदि ऐसा ही कोई सवाल आपके मन में आ रहा है तो जनाब तय समझिए कि आप सरकार को हल्के में ले रहे हैं । सरकार ही तो सरकार होती है, उसकी नजरों से भला आप कैसे बच सकते हैं ? बेशक आपने खुल्लम खुल्ला अथवा चोरी चुपके से, खयालों में अथवा ख्वाबों में, घर पर अथवा किसी सार्वजानिक स्थल पर भी स्नान किया हो आपकी उपस्थिति सरकार द्वारा दर्ज कर ली गई है । सरकार ने न केवल आपको देख लिया है, बल्कि गिन भी लिया और यही नहीं अगले दिन अखबारों और टेलीविजन को भी बता दिया है ।
अब बकवास तो करो नहीं कि पांच आदमियों के परिवार में से तीन लोग कुंभ नहा आए और बाकी घर वालों को पता क्यों नहीं चला ? हर स्कूल जाते दो में से एक बच्चा प्रयाग हो आया और स्कूल में छुट्टी की अर्जी भी जमा नहीं हुई ? मुल्क में लगभग नौ फीसदी बूढों की आबादी भी हारी बीमारी के बावजूद पहुंच गई ? दुधमुहे बच्चे किसके साथ गए ? जो जेल में बंद हैं , उन्हें कौन ले गया और अस्पताल में भर्ती लोगों के लिए कौन सी स्पेशल ट्रेन चली ? सत्तर करोड़ तक गिनती पहुंचाने के लिए तो सभी को शामिल करना पड़ा होगा ? किसी को भी छोड़ा होगा तो संख्या कैसे इतनी पहुंचेगी ? हिंदुओं से अलग 35 करोड़ की मुस्लिम, ईसाई , सिख और बौद्धों की आबादी ने भी अपना परलोक सुधारा है क्या ?
अब यह तो आप सरासर बकवास कर रहे हैं कि हमारे पहचान के तो अधिकांश लोग वहां गए नहीं, फिर कौन लोग वहां गए ? हमारे मोहल्ले से तो कुल तीन चार लोग ही गए बाकी किस मोहल्ले के थे ? क्या हमारे तमाम पूर्वज भी जो परलोक सिधार चुके हैं और आने वाली वे औलादें भी जिन्हें अभी पता भी नहीं कि वे भगवा झंडे के नीचे पैदा होंगे, उन्हें भी गिना जा रहा है क्या ? देखिए यदि आपके दिमाग में ऐसे ही ऊल जलूल सवाल उठ रहे हैं तो कृपया आप अपना इलाज करवाइए। आप समझ ही नहीं रहे हैं कि कैसे हमारे देवतुल्यों ने बड़े जतन से आधुनिक काल को आदि काल से जोड़ा है। यही तो वह रीति काल है जिसे भक्ति वादी हुए बिना समझा ही नहीं जा सकता । यदि आपको जरा सी भी समझ है तो आप अविलंब हास्य रस में श्रृंगार रस ढूंढने की कला सीखिए वरना किसी दिन आपकी इन्हीं हरकतों से कुपित होकर कोई भक्ति वादी अपना रौद्र रस दिखा देगा आपकी भयानक रस सी गति हो जाएगी । आप यह उम्मीद मत रखिएगा आपके साथ हुए इस वीभत्स रस को देख कर शांत रस वालों में थोड़ा बहुत करूणा रस उत्पन्न होगा । भूल जाइए जनाब भूल जाइए और अच्छी तरह समझ लीजिए कि अद्भुद रस का दौर अब गुजर चुका है । गुजर चुका मतलब पूरी तरह गुजर चुका है।