नए पाखंड की तैयारी
रवि अरोड़ा
लीजिए अब एक और पाखंड से दो चार होने की तैयारी कर लीजिए। हरिद्वार के जिलाधिकारी ने एलान कर दिया है कि अब जूता चप्पल पहन कर आप हर की पैड़ी पर नहीं जा सकेंगे। पहले आप कोई जूता घर ढूंढिए और फिर घाट पर आइए। ब्रह्म कुण्ड पर तो यह व्यवस्था पहले से ही लागू थी और धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप यह उचित भी था मगर अब गंगा में डुबकी लगाने के लिए भी घाट पर भी नंगे पांव जाएं, यह भक्तों के साथ मजाक सा लगता है। हो सकता है कि आपको यह भी धार्मिक भावनाओं के अनुरूप ही लगे मगर तब इसे आप पाखंड के अतिरिक्त और क्या कहेंगे जब आपको पता चले कि गंगा जिसे हम मां कह कर पूजने का नाटक सदियों से कर रहे हैं, वह हमारी वजह से ही आज दुनिया कि प्रमुख प्रदूषित नदियों में शुमार होती है। एक तरफ तो हम धार्मिक अनुष्ठान, औद्योगिक कचरे, कूड़ा करकट, इंसानी मल, सीवर, तमाम अपशिष्ट और शवों के निस्तारण का सबसे बड़ा केन्द्र इस नदी को बनाए हुए हैं और ऊपर से ढोंग यह कि उसके घाटों पर जाने से पहले झूठा सम्मान दिखाने को अपने जूते चप्पल पहले उतार देंगे।
उक्त तर्क के विरोध में दावा किया जा सकता है कि मोदी सरकार गंगा की सफाई कर रही है और हालात बदलने की पूरी तैयारी है। मेरा अनुरोध है कि ऐसा दावा करने वाले लोग कृपया जमीनी हकीकत पहले अवश्य जान लें। बेशक साल 2014 के चुनाव से पूर्व मोदी जी ने वाराणसी जाकर एलान किया था कि उन्हें मां गंगा ने यहां बुलाया है। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने बीस हजार करोड़ रुपए की लागत से नमामि गंगे परियोजना की शुरुआत कर गंगा की सफाई का बीड़ा भी उठाया था । भाजपा की कद्दावर नेता उमा भारती को गंगा संबंधी मंत्रालय मिला तो उन्होंने भी घोषणा की थी कि साल 2018 तक गंगा निर्मल और अविरल नहीं हुई तो वे इसी नदी में जल समाधि ले लेंगी मगर न गंगा निर्मल हुई और न उमा भारती ने अपने संकल्प की फिर कभी चर्चा की। मोदी जी तो खैर अब गंगा का जिक्र ही नहीं करते । सरकारी फाइलें बताती हैं कि शुरुआती तीन सालों तक तो मंत्रालय की इस विषय पर कायदे से बैठक ही नहीं हुई । फिर लक्ष्य की तारीख आगे बढ़ा पहले 2019 और फिर साल 2020 कर दी गई । मगर वर्तमान गंगा संरक्षण मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने अब स्वीकार किया है कि सरकार अब तक 36513 करोड़ रूपये खर्च कर चुकी है और गंगा से जुड़े 428 प्रोजेक्ट में से मात्र 244 ही अब तक पूरे किए जा सके हैं। बकौल इनके बाकी काम पूरा करने में अभी तीन साल और लगेंगे। इतना खर्च करने के बाद गंगा कितनी साफ हुई है इससे संबंधी एक आरटीआई में खुद सरकार ने स्वीकार किया है कि उसे नहीं मालूम कि गंगा कितनी साफ हुई है। उधर, जल पुरुष राजेंद्र सिंह की मानें तो पैसे बांटने के अलावा जमीनी स्तर पर गंगा सफाई की दिशा में अभी तक कोई काम नहीं हुआ है।
गंगा किनारे के लगभग सभी शहरों में मेरा आना जाना लगा रहता है। लगभग सभी जगह सीवर का गंदा पानी गंगा में आकर गिरते मैंने देखा है। अधजली लाशें गंगा में बहा दिए जाने की गवाही हर वह व्यक्ति भी दे सकता है, जो गंगा किनारे होने वाले किसी एक भी अन्तिम संस्कार में शरीक हो चुका हो । गंगा किनारे परमाणु बिजली घर, चमड़े और खाद के अनगिनत कारखानें देश की इस सबसे महत्वपूर्ण और पौराणिक नदी को दुनिया की संकटग्रस्त नदियों की सूची में अहम मुकाम दिलाए हुए हैं। स्वयं इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में अपने एक फैसले के दौरान कहा कि गंगा का पानी अब आचमन के योग्य भी नहीं रहा मगर हाय रे हमारा ढोंग! गंगा के तमाम अपमान के बावजूद हम फिर भी उसे अपनी मां कहेंगे और उसके निकट जाने से पहले जूते चप्पल उतारेंगे।