दूसरों का ‘ भला ‘ करने निकले लोग

रवि अरोड़ा
सोशल डिसटेंसिंग जैसा शब्द हाल ही में देश-दुनिया में पॉपुलर हुआ है। इसी शब्द का एक भाई-बंधु और है जो बेशक अभी पॉपुलर नहीं हुआ है मगर सोशल डिसटेंसिंग से अधिक उसने अपनी पैठ बना ली है । वह शब्द है- कम्यूनल डिसटेंसिंग । जी हाँ तमाम निर्देशों और हिदायतों के बावजूद लोगबाग़ सामाजिक दूरी तो बेशक नहीं बना रहे मगर धार्मिक दूरी का जम कर पालन कर रहे हैं । बेशक एसा कोई सरकारी आदेश नहीं हो सकता और न ही है मगर देश के दो प्रमुख धर्मों के बीच जो खाई इस कोरोना काल मे चौड़ी हुई है वह पिछले कई दशकों में भी चाह कर कुछ ख़ास लोग नहीं कर पाये थे । यक़ीनन कोरोना जैसी महामारी जिस तरह आई है उसी तरह चली भी जाएगी मगर अविश्वास का जो माहौल इसने बनाया है वह पता नहीं कभी दुरुस्त हो भी पाएगा अथवा नहीं । कहते हैं न कि सौ बार बोला गया झूठ अपने आपक सच मान लिया जाता है । मगर यहाँ तो एक एक झूठ लाखों करोड़ों बार दोहराया जा रहा है तो बताइये उसकी असत्यता कैसे साबित की जा सकती ?
इसमें कोई दो राय नहीं कि देश में कोरोना को फैलाने में तबलीगी जमात के लोगों का बड़ा हाथ है । सरकारी आँकड़े दावा करते हैं कि लगभग तीस फ़ीसदी मरीज़ जमात के कारण बढ़े । यह भी सत्य है कि इंदोर , मुरादाबाद और राजस्थान में जाँच को गई मेडिकल टीम अथवा पुलिस के साथ मुस्लिमों द्वारा पथराव किया गया । दोनो तरह के ही मामले बेहद संगीन थे और उसमें दोषियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई भी की गई । मुस्लिमों के कई टिक टोक एवं अन्य वट्सएप मैसेज भी प्रकाश में आये जिसमें दावा किया गया कि पाँच वक़्त की नमाज़ पढ़ने वालों का कोरोना कुछ नहीं बिगाड़ सकता । यक़ीनन यह भी मूर्खता की पराकाष्ठा ही है मगर इस सभी तथ्यों की आढ़ में एक बहुत बड़ा खेल देश में और शुरू हो गया है । अब एसे एसे वीडियो फैलाये जा रहे हैं जिन्होंने मुस्लिमों के प्रति देश की बड़ी आबादी को पूरी तरह अविश्वास से भर दिया है । सुबह से शाम तक मिलने वाले सोशल मीडिया के संदेशों में से अधिकांश यही होते हैं कि मुस्लिम सब्ज़ी वाले से सब्ज़ी मत ख़रीदो, वे इसपर थूकते हैं अथवा पेशाब करते हैं । मुस्लिम नाई से बाल न कटवाने की ताक़ीद भी सुबह शाम मिलती है । किसी संदेश में जमाती द्वारा पुलिस पर थूकते हुए दिखाया जाता है तो किसी में नोटों पर थूक लगाते दिखाया जाता है ।
विभिन्न जागरूक संस्थाओं और मीडिया हाउस द्वारा हाल ही में की गई जाँच में पाया गया कि ये तमाम वीडियो फ़र्ज़ी , विदेशी अथवा पुराने हैं । कोरोना और जमात से उनका कोई लेना देना नहीं है । यह भी पाया गया कि रियल हिंदू , वेकअप हिंदू, एक्सपोज द देशद्रोही व रिसर्ज हिन्दुइज़्म जैसे पंद्रह फ़ेसबुक एकाउंट द्वारा इन्हें पूरे देश भर में फैलाया जाता है । ये लोग प्रतिदिन एसे वीडियो देश दुनिया के ढूंढ़ते हैं जिसमें मुस्लिम वेशभूषा पहने किसी भी व्यक्ति द्वारा कोई बेहूदगी की गई हो और फिर उसे देश के मुस्लिमों , जमात अथवा कोरोना काल से जोड़ कर फैला देते हैं । समाज में अविश्वास की खाई इतनी चौड़ी हो चुकी है कि लोगबाग़ उसे सत्य मान लेते हैं और अपनो का ‘ भला ‘ करने की गरज से उन्हें भी यह संदेश बिना किसी जाँच के आगे भेज देते हैं । और इसीतरह यह सिलसिला आगे बढ़ता ही जाता है । जब तक मामले की जाँच होती है और वीडियो फ़र्ज़ी, पुराना अथवा विदेशी साबित होता है तब तक वह अपना काम भली भाँति कर चुका होता है और उसके फ़र्ज़ी होने की सच्चाई नक्कारखाने की तूती बन चुकी होती है । पिछले एक महीने में आये एसे तमाम वीडियो की पोल खुल चुकी है मगर अफ़सोस उसमें अब किसी की रुचि नहीं । कम्यूनल डिसटेंसिंग के हिमायती लोगों को तो बस इंतज़ार रहता है एसे ही किसी और मनमुताबिक़ वीडियो का , जिसे फैला कर वह अपना सामाजिक दायित्व पूरा कर सकें । यदि कुछ न हो तो कम से कम अपने लोगों को तो ताक़ीद कर ही दें कि सावधान ! इन लोगों का कोई भरोसा नहीं ।

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