दूरियाँ

रवि अरोड़ा

हाल ही गुरुग्राम जाना हुआ । एक मित्र ने बताया कि यहाँ एक नामचीन कम्पनी के कपड़ों की सेल भी लगी हुई थी । उसी मित्र की इच्छा के अनुरूप सेल में जाने का निर्णय लिया । बस फिर क्या था, गूगल मैप पर लोकेशन डाली और उसी के बताये रास्ते पर गाड़ी लेकर चल दिये । मगर यह क्या गुरुग्राम जैसे अति आधुनिक शहर में भी यह गूगल मैप हमें गाँवों और खेतों में लेकर क्यों चल दिया ? पगडंडी नुमा टूटी फूटी और पानी से लबालब सड़क ने रुला सा दिया । हालाँकि हमें जिस जगह जाना था वह राष्ट्रीय राजमार्ग पर थी और जहाँ से हम चले थे, वह भी एक राजमार्ग ही था । फिर पता नहीं गूगल वालों को क्या सूझी जो बैठे बैठाये हमें बेवक़ूफ़ बना दिया । बहरहाल आर्टिफीशियल इंटैलीजेंस को कोसते हुए दस मिनट की दूरी हमने आधे घंटे में पूरी की । अपनी इस हालत पर क़सम से वह पुराने दिन बहुत याद आये जब कहीं भी जाना हो, लोगों से पूछते-पुछाते आराम से पहुँच जाते थे । इस बहाने चार लोगों से राम राम श्याम श्याम हो जाती थी सो अलग । गूगल ने लोगों की दुआ सलाम ही ख़त्म कर दी है । वैसे वो भी क्या दिन थे जब पुरानी किसी जगह जाना हो तो दिमाग़ में नक़्शा पहले से तैयार मिलता था । रोड मैप जैसी तमाम निशानियाँ रास्ते में बिखरी होती थीं । वहाँ पान की दुकान है और तो वहाँ स्कूल है । कोने पर पीपल का पेड़ है और सड़क के बीच में फ़लाँ देवता का चबूतरा । नुक्कड़ पर मनियारी वाला बैठता है और मोड़ पर बैंड बाजे वाले का ठीया है। मगर अब जब से यह मुआ गूगल मैप आया है , तब से न कुछ याद रहता है और न ही इसकी ज़रूरत अब पड़ती है । मगर गुरुग्राम की तरह कभी फँसो तो पुराने दिन याद ज़रूर आते हैं ।

स्कूल के दिनो में पाँचवी क्लास तक ही पच्चीस तक के पहाड़े याद हो गए थे । तब केलकुलेटर की कल्पना भी नहीं की थी और पल भर में बड़ी से बड़ी रक़म का टोटल कर लेते थे । मगर अब चार रक़म भी जोड़नी हों तो हाथ केलकुलेटर ढूँढने लगते हैं । तब सुविधा के नाम पर ले देकर लैंडलाईन फ़ोन ही थे और सैंकड़ों फ़ोन नम्बर ज़बानी याद रहते थे । मगर अब लम्बी चौड़ी फ़ोन डायरी की कृपा से अपने घर वालों का भी नम्बर याद नहीं रहता। टीवी, मोबाइल , कम्प्यूटर और इंटरनेट जैसी तमाम आधुनिक चीज़ों ने आसानियाँ इतनी बढ़ा दी हैं कि सभी सुविधाएँ बटन दबाने भर की दूरी पर रह गई हैं । ख़ास बात यह है कि हमें इनकी इतनी आदत भी पड़ गई है कि इनके बिना बेचैन हो जाते हैं । पिछले महीने प्रशासन ने एक दिन के लिए इंटरनेट बंद करवाया तो जैसे सबकी खोपड़ी ही हिल गई थी । मेरी पीढ़ी ने अपना जीवन जब शुरू किया तब इनमे से कुछ भी नहीं था । शायद अभी कुछ और बड़े अविष्कार देख कर ही हमारी पीढ़ी दुनिया से रुखसत होगी । ज़ाहिर है कि यह सब देख कर किसे अच्छा नहीं लगेगा मगर फिर भी इन सुविधाओं की वजह से आदमी और आदमी के बीच बढ़ती दूरी बेचैन तो करती ही है।

अमेरिका की एक यूनीवर्सिटी में एक सर्वे हुआ था और उसकी रिपोर्ट के अनुसार जिस घर में सामान जितना ज़्यादा है , उस घर के बाशिंदों में उतनी ही अधिक दूरियाँ हैं । हर बेडरूम में निजी टेलीविजन को भी इस सर्वे ने आपसी प्यार का दुश्मन माना था । यही नहीं सर्वे ने बड़े बनाम छोटे घर के बाबत भी यह पाया कि घर जितना बड़ा होगा , दिलो के बीच दूरियाँ भी उतनी अधिक होंगी । एक अन्य सर्वे ने यह पाया कि आधुनिक सुविधाओं ने हमें सूचनाओं से तो भर दिया है मगर विवेक से दूर कर दिया है । यही वजह है कि इन तमाम आधुनिक सुविधाओं से हमारे बच्चे इंटेलीजेंट तो बन रहे हैं मगर उनमे विसडम का अभाव है । अब आप भी कहेंगे कि मैं शायद कोई पुरातनपंथी हूँ और आज भी अतीत की पथरीली पगडंडियों में ही सुख ढूँढ रहा हूँ । नहीं जनाब एसा नहीं है । जीवन में आसानियाँ कौन नहीं चाहेगा । मगर उसकी क़ीमत भी तो तय हो । अब अधिक क़ीमत पर थोड़ा सामान मिलेगा तो बुरा तो लगेगा ही ।

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