तोता रंटत से आगे की दुनिया

रवि अरोड़ा बचपन जिस मोहल्ले में बीता वहाँ एक विद्वान पंडित जी रहते थे । उनके यहाँ अक्सर सुंदर काण्ड का पाठ होता रहता था । साल में कई बार सम्पूर्ण राम चरित मानस का भी सस्वर अखंड वाचन होता था । यह सब बक़ायदा लाउडस्पीकर लगा कर किया जाता था अतः आसपास खेलते कूदते मानस की अनेक चौपाइयाँ कंठस्थ भी हो गईं । कई बार एसा भी अवसर आया कि पाठ कर रही मोहल्ले की किसी चाची अथवा मौसी को अचानक घर से बुलावा आ गया तो इशारे से उसने मुझे बुला लिया और अपनी जगह मानस के पाठन को गद्दी पर बैठा दिया । किस स्वर में कैसे चौपाइयाँ पढ़नी हैं यह तो आता ही था सो बेधड़क तब तक गद्दी पर विराजमान रहता था , जब तक मोहल्ले की कोई और महिला अथवा पुरुष मुझे उठा कर गद्दी पर बैठने स्वयं नहीं आ जाता । सच कहूँ तो कई चौपाइयाँ याद होने के बावजूद मुझे उनका मतलब नहीं मालूम था । कई का तो शायद आज भी नहीं पता । मुझे पक्का यक़ीन है कि मानस ग्रंथ का पेज पलटते पलटते अगले पेज की चौपाइयाँ बिना पढ़े बोल देने वाली मोहल्ले की अधिकांश महिलाओं का भी मेरे जैसा ही हाल होगा । थोड़ा बड़ा हुआ तो माँ के साथ गुरुद्वारे भी जाने लगा । हालाँकि वहाँ ग्रंथ साहब का गद्दी पर बैठकर पाठ करने का मौक़ा तो कभी नहीं मिला मगर जपुजी साहब जैसे बहुत से पाठ मुझे कंठस्थ हो गए । हालाँकि मतलब तब भी नहीं पता था । शायद गुरुद्वारे आने वाले अधिकांश लोगों का भी यही हाल था । क़रीब दस साल पहले एक हिन्दी फ़िल्म आई- रॉकस्टार। फ़िल्म में एक गाना है- कुन फायाकुन । न जाने किस मूड में आकर अपने कई मुस्लिम दोस्तो को फ़ोन मिला दिया और क़ुरान की इस आयत का अर्थ पूछ लिया । देख कर हैरानी हुई कि सुबह शाम दोहराने के बावजूद अधिकांश को उसका मतलब नहीं मालूम था । उसी दिन यह अहसास हुआ कि हमारी तरह पता-वता इन्हें भी कुछ नहीं । ये भी हमारी तरह तोता रटंट ही हैं । फिर तो अनेक अवसरों पर मैंने अपने मुस्लिम दोस्तों की इस्लाम और क़ुरान के बाबत परीक्षा ली और हर बार इसी नतीजे पर पहुँचा कि सारी आदम जात एक जैसी ही है । धर्म की दुहाई तो ख़ूब देती है मगर धर्म ग्रंथों में क्या लिखा है , यह उन्हें बिलकुल भी नहीं पता । कल एक टिक टॉक देखा । उसमें तीन विदेशी मुस्लिम लड़के कोरोना को अल्लाह का एनआरसी बता रहे हैं । यानि अब अल्लाह तय करेगा कि कौन इस दुनिया में रहेगा और कौन जाएगा । कमाल की बात है कि देश के मुस्लिम युवाओं ने इसे बढ़ चढ़ कर शेयर किया । हालाँकि डिजिटल लैब वाइज़र इंफ़ोसेक ने गृह मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में आशंका जताई है कि यह एक विदेशी साज़िश का हिस्सा है । पश्चिमी बंगाल के कथित धर्मगुरु अब्बास सिद्दकी एक वीडियो में ख़्वाहिश जता रहे हैं कि भारत में कोरोना से चालीस पचास करोड़ लोग मरने चाहिये । पाकिस्तान के धर्मगुरु जैद हामिद सईद एक वीडियो में दावा कर रहे हैं कि कोरोना-वोरोना कुछ नहीं है और इसके बहाने से मुस्लिमों की जासूसी हो रही है । किसी वीडियो में दावा किया जा रहा है कि कोरोना से चीन में एक भी आदमी नहीं मरा । किसी में कहा जा रहा है कि भारत में भी कोरोना से मुस्लिमों की मौत नहीं हो रही । कहीं दावा किया जा रहा है कि अल्लाह से डरें कोरोना से नहीं । कहीं कहा जा रहा है कि हाथ मिलाने और गले मिलने से बीमारियाँ ठीक होती हैं । हवा में मास्क उड़ाने का वीडियो भी मुस्लिमों में ख़ूब वायरल हो रहा है । सोशल मीडिया पर पसरी और दिनोंदिन फैल रही इस जहालत का नतीजा मुस्लिम इलाक़ों में दिख भी रहा है । कहीं मेडिकल टीम पर पथराव की वारदात हो रही है तो कहीं मनाही के बावजूद सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़ी जा रही है । समझ नहीं आता कि सारी उम्र क़ुरान शरीफ़ की जिन बातों को दिन में पाँच बार दोहराया उन पर तो यक़ीन कर नहीं रहे और साज़िशन बनाये जा रहे इन वीडियोज पर यक़ीन कर रहे हैं ?

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