तोड़क दस्ते
रवि अरोड़ा
हाल ही में मुम्बई जाना हुआ । मित्रों की सलाह पर घारापुरी गुफाएँ यानि एलीफेंटा केव्स भी देखने चला गया । गेट वे ऑफ इण्डिया से लगभग बारह किलोमीटर दूर समुन्दर के बीच एक टापू पर स्थित ये गुफाएँ अपनी कलात्मकता के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। यहाँ कुल सात गुफाएँ हैं और मुख्य गुफा में 26 स्तंभ हैं, जिसमें शिव को कई रूपों में उकेरा गया हैं। पहाड़ियों को काटकर बनाई गई ये मूर्तियाँ दक्षिण भारतीय मूर्तिकला से प्रेरित है। वैसे इसका ऐतिहासिक नाम घारपुरी जो अग्रहारपुरी से निकला है । जानकार बताते हैं कि इसे एलिफेंटा नाम पुर्तगालियों द्वारा यहाँ पर बने पत्थर के एक बड़े हाथी के कारण दिया गया था । यहाँ पर हिन्दू धर्म के अनेक देवी देवताओं कि मूर्तियों के साथ साथ भगवान शंकर की भी नौ बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ हैं जो शंकर जी के विभिन्न रूपों तथा क्रियाओं को दिखाती हैं। दुःख का विषय है कि छठी से आठवीं सदी के बीच बनाई गई ये मूर्तियाँ अब खंडित अवस्था में हैं । ज़ाहिर है कि ये स्वतः नहीं टूटीं और उन्हें बलपूर्वक तोड़ा गया है । उफ़ क्या इतिहास का कोई भी काल खंड विरक्त नहीं है इन विध्वंसक शक्तियों से ?
पूछने पर कोई बता नहीं पाता कि इन विशाल मूर्तियों को किसने तोड़ा । बस यही माना जाता है कि सोलहवीं सदी में जब पूरा कोंकणी क्षेत्र पुर्तगालियों के आधीन था , तब उन्होंने ही इन्हें तोड़ा होगा । इस टापू को वे चाँदमारी के लिए इस्तेमाल करते थे और अपने जानवरों का चारा आदि भी यहीं जमा करते थे । चूँकि इन मूर्तियों का महत्व वे नहीं जानते थे इसलिये अपना हित साधने के लिए उन्होंने जहाँ से चाहा वहाँ से इन्हें तोड़ दिया । वैसे एलिफ़ेंटा गुफाएँ ही नहीं देश भर में सैकड़ों एसे एतिहासिक- पौराणिक स्थल हैं जिन पर विध्वंसकारियों की तिरछी नज़र पड़ी । धार्मिक स्थलों पर यह क़हर कुछ अधिक ही बरपा । हर बार हमारी समृद्ध विरासत उन लोगों के हाथों खंडित हुई जो इसको उपयोगी नहीं मानते थे या जो इसे नापसंद करते थे । कई मायनों में ये लोग वे भी थे जो हमारी संस्कृति पर अपनी संस्कृति थोपना चाहते थे ।
चलिये मूल बात पर आता हूँ । आज की बात करते हैं और आज के तोड़क दस्तों पर निगाह डालते हैं । सवाल यह है कि क्या केवल मंदिर-मस्जिद, मूर्तियाँ, क़िले, पेड़, पहाड़ और जंगल आदि ही हमारी विरासत हैं या इस विरासत में आदमी और आदमियत भी कहीं आते हैं ? यदि आदमी-आदमियत, उसके दुःख-सुख में सामूहिक भागीदारी, युगों युगों से चला आ रहा सर्वे भवंतु सुखिनः का मूल भाव भी हमारी विरासत ही है तो आज कौन उसे खंडित कर रहा है ? कौन हैं जो जहाँ से चाहें इसे तोड़ रहें हैं ? क्या मूर्तियाँ तोड़ना ही विध्वंस है ? तोड़क शक्तियाँ क्या वो भी नहीं हैं जो दिलों को तोड़ रही हैं ? तोड़क दस्ते क्या वो भी नहीं हैं जो सुबह शाम ज़हर उगल कर आपसी सोहार्द के टुकड़े टुकड़े कर रहे हैं ?
अच्छे चुनाव हुए दिल्ली में । सब कुछ टूट फूट गया । खंडित खंडित हो गया । चलो अब तो चुनाव भी ख़त्म हो गये , अब क्यों नहीं रुक रहीं तोड़क दस्ते ? कोई कमीना पंद्रह करोड़ बनाम सौ करोड़ की बात कर रहा है तो कोई अपनी ही पुलिस को तीन दिन का अल्टीमेटम दे रहा है । तोड़क दस्तों के अगुआ बेशक ये छुटभैया लोग नज़र आ रहे हैं मगर ये लोग सिर्फ़ प्यादे हैं । ये शक्तियाँ बहुत बड़ी हैं और इस विखंडन में ही अपना हित देख रही हैं । अकेले दिल्ली में डेड दर्जन लोग मर गये और दो सौ घायल हो गये । बात अभी थमी नहीं । पता नहीं हमारे आपसी सौहार्द का महल अभी और कहाँ कहाँ से टूटेगा । सच कहूँ तो एलिफ़ेंटा की मूर्तियों का टूटना आपसी भाईचारे के टूटने के सामने अब बड़ा छोटा सा दिख रहा है ।