तुम्हारी यादें
सोते से जगाती हैं तुम्हारी याद
झूठी कहानियां सुना कर
खुद को सुलाने का जतन करता हूं मैं
झिंझोड़ कर फिर उठा देती है तुम्हारी याद
मुझ से पहले कार में आ बैठती हैं तुम्हारी याद
उसे जबरन उतारने के जतन में
छिल जाता है मेरा मन
खाना खाते समय
कोई कोई सब्जी साथ उठा लाती तुम्हारी याद
गर्म कटोरी किनारे सरकाते सरकाते
जला बैठता हूं मैं अपनी रूह
कमीज के टूटे बटन इशारा करते हैं
सिलाई कढ़ाई के डिब्बे की ओर
मगर उसे खोल कर करूं क्या
तुम्हारी याद के सिवा उसमें कुछ भी तो नहीं
मुंह चुराता हूं करवा चौथ के चांद से
बंद कर लेता हूं खुद को कमरे में मगर
मुआ चांद खिड़की से फेंक जाता है तुम्हारी याद
नए कपड़े पहनते ही टटोलता हूं खुद को
किसने चिकोटी काट कर कहा मुझे न्यू पिंच
कांधे पर मुस्कुराती हुई सरसरती है तुम्हारी याद
आधी मांगने पर अब मिलती है आधी ही रोटी
छोटा सा कोना काट कर
पूरी रोटी देने तब फिर
बगल में आ बैठती है तुम्हारी याद
बिस्तर पर सुनने की कोशिश करता हूं
किसने कहा बंद करो खर्राटे
बगल में गुस्साई लेटी मिलती है तुम्हारी याद
नहीं जाता मैं अब उन जगहों पर
जहां छुपी बैठी है तुम्हारी याद
न जानें क्यों फिर
पुरानी तस्वीरों से पुकारती है तुम्हारी याद
आज भी झगड़ती हैं तुम्हारी याद
टीवी के रिमोट को लेकर
आज भी पस्त हो जाता हूं मैं
उन यादों के समक्ष
उफ़ इतनी बेरहम क्यों हैं तुम्हारी यादें
कुछ सिखाती क्यों नहीं इन्हें
कम से कम थोड़ा सा तो बनाओ इन्हें अपने जैसा
रवि अरोड़ा