ताकि दिमाग़ ख़राब न हो
रवि अरोड़ा
हमेशा की तरह आजकल भी देर से उठता हूँ । सच कहूँ तो टीवी धारावाहिक रामायण के टाइटल गीत से नींद खुलती है । कमरे में केवल दो जगह पर ही ध्यान जाता है । एक टेलिविज़न और दूसरी वह जगह जहाँ रामायण के पात्रों के आगे दोनो हाथ बाँधे पत्नी बैठी मिलती है। हालाँकि रामायण मैं भी बड़े चाव से देखता हूँ मगर अचानक धारावाहिक की तेज़ धुन से नींद में व्यवधान पड़ने से थोड़ी चिड़चड़ाहट भी कभी कभी होती है । वैसे कुछ ही मिनटों में टीवी के आगे मैं भी जम जाता हूँ । अक्सर सोचता हूँ कि टीवी पर इन दिनो रामायण व महाभारत जैसे अति लोकप्रिय धारावाहिक न आ रहे होते तो लॉकडाउन के ये दिन कैसे कटते ? अब तो शाम यूँ कट जाती है कि इन धारावाहिकों में देखें आज क्या होता है और सुबहें तो यूँ ही इनके आनंद से सराबोर रहती हैं । बेशक इस धारावाहिकों के दोबारा प्रसारण से पहले जैसी दीवानगी दर्शकों में अब नहीं है मगर फिर भी इतना क्रेज़ तो अब भी है कि लॉकडाउन के दिन ज़्यादा चुभ नहीं रहे ।
मेरे कई विद्वान दोस्त लॉकडाउन में रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिकों के प्रसारण के पीछे भी कोई पोलिटिकल एजेंडा तलाशते हैं । हो सकता है कि एसा हो भी मगर मुझे तो लगता है कि इससे तो जनता जनार्दन का ही हित सधा है । संकट में जैसे भी सही सरकार ने लोगों को व्यस्त तो रखा है । ख़ाली बैठेंगे तो कुछ अच्छा तो सोचेंगे नहीं ? यूँ भी सयाने बता रहे हैं कि कोरोना के बाद अगला संकट लोगों के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा होगा । पिछले पंद्रह दिनो में ही देश में बीस फ़ीसदी मानसिक रोगी बढ़ गए हैं । लॉकडाउन अभी और लम्बा खिंचा तो स्थिति और बिगड़ेगी ।
ताज़ा सर्वे बता रहे हैं कि भारत में हर पाँचवा व्यक्ति मानसिक रोगों का शिकार है । भावनात्मक अस्थिरता , अवसाद , तनाव , उदासी , चिंता , घबराहट , ग़ुस्सा और नींद न आने जैसी अनेक समस्याएँ हम भारतीयों को मनोरोगी बना रही हैं । लॉकडाउन ने इनमें तीन चीज़ें और जोड़ दी हैं । क़ोविड 19 का ख़ौफ़, अकेलापन और अपने नौकरी छिनने व व्यावसायिक नुक़सान ने लोगों को भविष्य की चिंता में और धकेल दिया है । जिन्हें आईसोलेशन अथवा कवारंटीन में रखा गया है , उनके मानसिक स्वास्थ्य का तो भगवान ही मालिक है । विदेशों के अनुभव बता रहे हैं कि उनके मानसिक रोगी होने की सम्भावना तो 73 फ़ीसदी है । उस पर तुर्रा यह कि वे इस अवस्था से बरसों तक नहीं उभर पाएँगे ।
तमाम तरह की बीमारियाँ, अकाल और प्राकृतिक आपदाएँ इंसान के पीछे युगों से लगी हुई हैं मगर हम लोग सौभाग्यशाली हैं कि तमाम मेडिकल सुविधाओं के साथ साथ आज हमारे पास संचार के भी तमाम तरीक़े हैं जिनकी बदौलत अपनों से दूर होकर भी हम उनसे जुड़े रह सकते हैं । भला हो उनका जिन्होंने टीवी , इंटरनेट, यूट्यूब , नेटफ़्लिक्स , फ़ेसबुक और वट्सएप जैसे जुड़ाव के तरीक़े इजाद किये । वे लोग उम्रदराज़ हो सुबह शाम नए नए चुटकुले घडते हैं अथवा सोशल मीडिया पर इन्हें शेयर कर हमारे होंठों पर मुस्कान लाते हैं । इन सबके बिना पता नहीं हम लोग लॉकडाउन का यह समय काट भी पाते अथवा नहीं । अपनी तमाम बातों के लिए हम ईश्वर को तो सुबह शाम धन्यवाद करते ही हैं मगर मुझे लगता है कि हमें इंसान और इंसानियत के जज़्बे और सबसे बढ़ कर विज्ञान को भी सलाम करना चाहिये जिसने परीक्षा की इस घड़ी में हमारा हाथ और सख़्ती से पकड़ लिया है और कहीं न कही हमें हिल्ले लगा रखा है ।