टूटता कनेडे जाने का सपना

रवि अरोड़ा
भारत और कनाडा के बीच दिन प्रति दिन खराब होते जा रहे संबंधों को हो सकता है आप कोई अच्छी खबर न मानते हों। मगर मेरी नजर में तो यह कोई घाटे का सौदा नहीं है। आतंकी निज्जर की हत्या के मामले में अमित शाह का नाम उछाले जाने पर भारत ने कनाडा का जो कान उमेंठा है उससे दुनिया में देश की जहां मूंछ ऊंची हो ही रही है वहीं आर्थिक लाभ भी हो रहा है। कम से कम पंजाब के हवाले से तो यह बात सोलह आने सच ही है। पंजाब जहां पर पैदा होने वाले हर बच्चे के कान में पहला शब्द कनेडा ही पड़ता हो, जहां स्कूल जाने से पहले बच्चे को कनेडा जाने का सपना थमा दिया जाता हो, जहां गांव के गांव खाली हो चुके हों और अधिकांश जवान आदमी कनाडा जैसे मुल्कों में जा बसे हों वहां संबंधों में खटास जैसी खबरें कनाडा के प्रति पंजाबियों की दीवानगी थोड़ी बहुत तो कम करती ही हैं। इन ख़बरों से यह उम्मीद भी तो बनती है कि शायद इससे ही सही पंजाब में ब्रेन ड्रेन थम जाए और पंजाब फिर से युवाओं से आबाद हो सके ।
आंकड़े बताते हैं कि कनाडा में अब भारतीयों की आबादी पांच फीसदी से अधिक हो चुकी है और उनमें से अधिकांश पंजाबी हैं। दस साल में पंजाबियों की आबादी वहां डेढ़ गुना बढ़ कर 10 लाख से अधिक हो गई है और स्टूडेंट वीजा पर कनाडा गए 3 लाख 40 हजार युवा इस आबादी को अभी और बढ़ाने की जुगत में हैं। इनमें से 60 फीसदी पंजाबी ही हैं। इन छात्रों के कालेजों की फीस आदि के नाम पर हर साल 68 हजार करोड़ रुपया देश से बाहर जा रहा है। यहां यह बताना बेहद जरूरी है कि पंजाब का सालाना बजट ही सवा लाख करोड़ के आसपास रहता है। हो सकता है कि तस्वीर का यह रुख आपको पसंद न आए और आप कहें कि ये पंजाबी ही तो हैं जो कनाडा जैसे समृद्ध देश में भारतीयों का नाम रौशन कर रहे हैं और अब तो वहां 18 सांसद सिख भी चुने जा चुके हैं । पंजाबी वहां अंग्रेजी और फ्रेंच के बाद सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है और अब कनाडा में भी हम दूसरा भारत बसाने जा रहे हैं । तो जरा ठहरिए और तस्वीर का एक और रुख भी देख लीजिए । ताजा जमीनी हालात यह हैं कि बड़े बड़े सपने लेकर कनाडा गए हमारे लाखों युवा आजकल वहां अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं। छात्र वीजा पर कनाडा गए तीस फीसदी छात्रों को भी आजकल वर्क परमिट नहीं मिल रहा है और वे अपने परिवारों से हर माह पैसे मंगवा कर गुज़र बसर कर रहे हैं। पिछले छह साल में वहां महंगाई तीन गुना से अधिक बढ़ गई है मगर स्थाई नागरिकता के बिना नौकरियां अब वहां सपने सरीखी हो गई हैं। भारतीयों के बढ़ते दबदबे और उदंडता से परेशान कनाडा सरकार अब उन्हीं छात्रों को वर्क परमिट देती है जो सरकारी कालेजों में पढ़ाई करते हैं और प्राइवेट कॉलेज और यूनिवर्सिटी में प्रवेश लेने वाले छात्र खाली बैठे रह जाते हैं। बदले हालात के चलते वहां की सरकार अब नए लोगों को नागरिकता देने की बजाय उन लोगों के प्रति अधिक गंभीर हो रही है जो पहले से ही वहां की नागरिकता पा चुके हैं।
अब से दस पंद्रह साल पहले कनाडा जा बसे लोग पहले साल ही अपनी कार ले लेते थे और एक दशक में घर के मालिक भी बन जाते थे मगर अब बैंक ऋण आसानी से उपलब्ध होने के बावजूद कनाडा में मकान बनाना लगभग नामुमकिन होता जा रहा है। टोरंटो और वेंकूवर जैसे बड़े शहरों में एक कमरे का मकान ही कई कई करोड़ रुपए का हो गया हो तो भला कैसे कोई मकान का सपना देख सकता है । उधर, किराए पर मकान लेने जाओ तो तनख्वाह का आधे से अधिक किराए में ही चला जाता है । हालात यह हो गए हैं कि बीस बीस साल पहले कनाडा गए लोग भी अपने घरों के बेसमेंट में रह रहे हैं और बाकी घर किराए पर देकर बढ़ती महंगाई और बढ़ी बैंक की किश्तों का मुकाबला कर रहे हैं।
कनाडा से दोस्ती की पैरोकारी में व्यापार की दुहाई दी जाती है मगर कनाडा से व्यापार भी भारत के लिए कोई फायदे का सौदा नहीं है। हमारा मुल्क कनाडा से साढ़े चार अरब डॉलर का आयात करता है और केवल पौने चार अरब डॉलर का ही निर्यात करता है। बेशक कनाडा सरकार ने छह लाख करोड़ भारत में निवेश किए हुए हैं और वहां की छह सौ कंपनियां भी भारत में सक्रिय हैं मगर यह सारे आंकड़े भारत से हर साल ट्यूशन फीस के नाम पर कनाडा जाने वाली मोटी रकम के सामने फीके हैं। कुल जमा बात यह है कि भारत कनाडा संबंधों में बनी दूरी कम से कम इतना फायदा तो अब हो ही सकता है कि भारतीयों का कनाडा जाने का नशा शायद कुछ कम हो। और नहीं तो कम से कम पंजाबियों को ही थोड़ी बहुत अक्ल आ जाए ।

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