ज़रा सी बात ऊँटनी की भी
रवि अरोड़ा
चलिये आज आपको एक कहानी सुनाता हूँ । पंजाब के किसी गाँव की लगभग सौ साल पुरानी बात है । हुआ यूँ कि गाँव में ऊँची जाति के एक लड़के को गाँव की ही एक लड़की से इश्क़ हो गया । मगर समस्या यह थी कि लड़की जिस जाति की थी वह छोटी समझी जाती थी । ज़ाहिर है इस रिश्ते को सामाजिक स्वीकृति तो मिल नहीं सकती थी मगर इश्क़ इतना गहरा था कि दोनो एक दूसरे के बिना एक पल भी रहने को तैयार न थे । कोई अन्य रास्ता न सूझने पर दोनो ने घर से कहीं दूर भाग जाने का फ़ैसला लिया । तय हुआ कि अमावस्या की रात लड़का अपने कपड़े लत्ते और कुछ पैसे लेकर लड़की के घर के बाहर रात के दूसरे पहर आएगा और कबूतर की आवाज़ मुँह से निकालेगा । इसके बाद लड़की अपना सामान और अपने पिता की ऊँटनी खोल कर बाहर आ जाएगी और फिर दोनो उस पर सवार होकर कहीं दूर निकल जाएँगे ।
जैसा तय हुआ था वैसे ही हुआ और लड़का-लड़की अमावस्या की रात ऊँटनी पर सवार होकर अपने घरों से भाग गये । मीलों तक ऊँटनी को दौड़ाने के बाद उन्हें एक मुसीबत सामने मुँह बाए दिखी । समस्या यह थी कि सामने एक विशाल नहीं हिलोरे ले रही थी । युवक को चिंतित देख कर लड़की मुस्कुराई और बोली घबराओ नहीं । मेरी ऊँटनी तैरना जानती है और यह कह कर उसने अपनी ऊँटनी पानी में उतार दी । मगर यह क्या बीच नदी के पहुँचते ही ऊँटनी बैठने लगी । युवक फिर भयभीत हुआ कि अब तो हम डूब जाएँगे । इस पर युवती फिर मुस्कुराई और बोली कि डरो नहीं, ऊँटनी डूब नहीं रही बल्कि मस्ती कर रही है । नदी में तेज़ धार के साथ यह एसे ही मस्ती करती है । इसकी माँ भी हमारे घर है और वह भी बीच धार पहुँच कर एसा करती है । पिता जी बताते हैं कि उसकी माँ भी हमारे दादा के पास थी और वह भी एसा ही करती थी ।
यह बात सुन कर युवक बड़ा अचंभित हुआ और फिर कुछ सोच कर उसने लड़की से कहा कि ऊँटनी वापिस गाँव की ओर ले ले । युवती ने कारण पूछा तो युवक बोला कि वह मैं बाद में बताऊँगा मगर पहले तू गाँव वापिस चल । ख़ैर रात के चौथे पहर तक दोनो गाँव वापिस पहुँच गये । गाँव पहुँचते ही युवक ऊँटनी से उतरा और अपनी पोटली बग़ल में दबाई तथा लड़की को अलविदा कह कर अपने घर की ओर चल दिया । यह सब देख कर लड़की बहुत हैरान हुई और उसने पूछा कि कल तक तो तुम साथ जीने मरने की क़समें खाते थे और अब एसा क्या हुआ जो तुमने नाता तोड़ दिया । इस पर युवक बोला कि जब ऊँट जैसा प्राणी पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी आदत नहीं छोड़ सकता तो तू तो आदम जात है । तेरे ख़ून में जो आदतें हैं वो तेरी आने वाली नस्लों में भी होंगी । आज तू अपने बाप के मुँह पर कालिख पोत कर घर से भाग रही है और आने वाले वक़्त में तेरी बेटी और उसकी भी बेटी मेरे मुँह पर कालिख पोत कर घर से भागेंगी और यह मुझे क़तई मंज़ूर नहीं । इसलिए मेरा आख़िरी सलाम ।
अब बेशक पहली नज़र में यह कहानी प्रेम विवाह और अंतरजातीय विवाहों के ख़िलाफ़ खड़ी दिखती है और उन्हें हेय दृष्टि से देखती है मगर इसके मायने इससे बहुत आगे के हैं । आज के माहौल में देखूँ तो यह कहानी मौजू भी दिखती है । कोरोना की आमद के बाद पूरी दुनिया बदल गई है । ज़ाहिर है हमारा जीवन, हमारे ख़्वाब और हमारे लक्ष्य भी अब बदलेंगे । यही वह वक़्त है जिसमें हमें ज़रा ठहर कर सोचना पड़ेगा कि हम अपने जीवन में जिस दिशा में दौड़ रहे थे क्या सचमुच वही हमारी चाहत थी अथवा हम यूँ ही अपनी ऊँटनी को एड़ लगाये जा रहे थे । बीच धार के अब जब हम सबकी ऊँटनियाँ बैठ रही हैं , हमें सोचना तो पड़ेगा ही कि यूँ ही इसी दिशा में आगे बढ़ना है या ऊँटनी वापिस मोड़नी है । अपनी ऊँटनी का आप जानो मैंने तो अपनी के बारे में सोच लिया है ।