छल्ला
पंजाबी लोकगीत * छल्ला * आपने जरूर सुना होगा । भारत और दुनिया भर में इसे पहुँचाने का श्रेय प्रसिद्ध गायक गुरदास मान को जाता है । वैसे गुरदास मान से पहले ही पाकिस्तान में गीत संगीत की महफ़िलों की यह लोकगीत जान डालने की कुव्वत रखता था ।
दरअसल पाकिस्तान में एक थियेटर कम्पनी थी । नाम था पाकिस्तान थियेटर और उसके मालिक थे फज़ल शाह । फजल शाह ने छल्ला का जो वर्जन लिखा वो आज तक हर कोई गा रहा है. फजल शाह के लिखे गाने पर संगीत दिया उनकी बीवी ने, उन दोनों का गोद लिया एक बेटा था आशिक हुसैन जट्ट. आज से 84 साल पहले उसने वो गाना गाया. तब 1934 में एलपी पर गाना रिलीज किया था HMV ने.
कुछ साल बीते. फिर वही पाकिस्तान, वही पंजाब, जिला मंडी बहाउद्दीन. वहां हुए इनायत अली. सत्तर के दशक की शुरुआत थी. लाहौर के रेडियो स्टेशन पर इनायत अली ने छल्ला वाला गाना गाया. अपने अंदाज़ में. गाना इतना फेमस हुआ कि इनायत अली खान का नाम ही इनायत अली छल्लेवाला पड़ गया.
अब पढ़िये छल्ले की लोक कथा –
पाकिस्तान में बह रही सतलुज नदी के साथ एक गांव है “हरि का पत्तन ” ( पहले जिन गांवों के साथ नदी का पाट उथला होता था वहां मल्लाह नदी पार कराने के लिए नाव लगाते थे )
हरि के पत्तन में एक मल्लाह था झल्ला उसका बेटा हुआ तो उसकी पत्नी प्रसव में गुजर गई। उसने बेटे को प्यार से बड़ा किया और उसका नाम रखा *छल्ला*
एक दिन झल्ला मल्लाह बीमार था तो उसने अपने किशोर बेटे को अनुमति दे दी कि वो सवारियों को पार उतार आये।
दुर्भाग्य से वापसी में उसकी नाव भंवर में फंस गई और नदी उसे निगल गयी।
उसके न आने के दुख से मल्लाह पागल जैसा हो गया और प्रतिदिन नदी किनारे जाकर अपने बेटे को पुकारना ही उसका जीवन बन गया।
इसी दीवानगी में वो यह छल्ला गीत गाता रहता था।
आज भी उसकी कब्र मौजूद हैं और नवविवाहित जोड़े तथा बेऔलाद वहां सन्तान के लिए दुआ मांगने आते है ।
पूत मिठडे मेवे, वे मौला सब नू देवे ।
वे गल सुन छल्या, माँवा वे मांवा: ठंड़ीया छांवा . . . . . . .
( बेटे मीठे फलो की तरह होते है, ईश्वर सबको आस औलाद दे।
सुन छल्ले मां शीतल छाया की तरह होती हैं )
( यह पोस्ट जाने माने राजनीतिक समीक्षक प्रमोद पाहवा ने अपनी वाल पर आज डाली थी और उसी में जोड़घटा कर उसे यहाँ पुनः प्रसारित करने की हिमाक़त मैंने की है )