गाजर और छड़ी

रवि अरोड़ा

कारण तो पता नहीं मगर आज सुबह से अंग्रेज़ी का मुहावरा कैरट एंड स्टिक बहुत याद आ रहा है । इंटरनेट पर ढूँढने बैठा तो पता चला कि अट्ठारवीं सदी की शुरुआत में किसी अंग्रेज़ कार्टूनिस्ट ने पहली बार इस पर एक कार्टून बनाया था । इस कार्टून में दिखाया गया था कि अपने गधे को गाड़ी ढोने को प्रोत्साहित करने के लिए गाड़ीवान ने एक छड़ी से गधे के पाँच-छः इंच आगे एक गाजर बाँध रखी है और गाजर को पाने के लालच में गधा सरपट दौड़ रहा है । विस्टन चर्चिल ने पहली बार इसे शब्द दिए और उन्नीसवीं सदी में कैरेट एंड स्टिक शब्द का प्रयोग किया । बाद में इसे रशिया के तानाशाह स्टालिन ने बार बार दोहराया और अब दुनिया भर में कैरट एंड स्टिक मुहावरे का चलन है । राजनीति में तो इस मुहावरे के ख़ास ही मायने हैं । अब आप कहेंगे कि मैं आज ये गधा चालीसा क्यों ले बैठा ? तो चलिए यह भी बता देता हूँ ।

देश में चहुँओर चुनावी माहौल है । अधिकांश राजनीतिक दल अपना घोषणापत्र जारी कर चुके हैं । कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में न्याय योजना की बात ज़ोर शोर से कही है । अपनी इस योजना का कांग्रेस बढ़चढ़ कर प्रचार भी कर रही है । बहत्तर हज़ार रुपए सालाना ग़रीबों को देने के बड़े बड़े विज्ञापन भी अख़बारों में नज़र आ रहे हैं । भाजपा का घोषणा पत्र या यूँ कहिए संकल्पपत्र भी आ चुका है । इस बार भी पार्टी ने धारा 370 हटाने और राम मंदिर बनाने का वही वादा किया है जो वह हर चुनाव में करती है मगर चुनाव जीतने के बाद अगले चुनाव तक उसका ज़िक्र भी नहीं करती । अन्य तमाम दल भी आसमान से तारे तोड़ कर लाने जैसी बातें कर रहे हैं । हालाँकि यह तो सबको पता है कि अपने मुल्क में घोषणापत्र के कोई ख़ास मायने नहीं हैं । सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश में कुछ हज़ार कापियाँ ही इनकी सभी दल छपवाते हैं और वह भी उसे जारी करने की तस्वीरें अख़बार में छपवाने भर के लिए । दरअसल झूठे चुनावी वादे घोषणापत्र में करने को लेकर अब चुनाव आयोग सख़्त है । उसका स्पष्ट निर्देश है कि केवल एसे ही वादे किए जायें जो पूरे किए जा सकें । यही वजह है कि असली हवा हवाई वादे जो मीठी गाजर हैं , वे तो केवल जनसभाओं में ही किए जाते हैं । जन सभाओ में कोई कुछ भी कहे , इस पर हमारे यहाँ कोई रोक नहीं है । यानि जनता जनार्दन को गधा समझ उसे कोई भी गाजर दिखा दो , कोई पूछने वाला नहीं है ।

नेहरु और शास्त्री के शुरुआती दौर को छोड़ दें तो बाद के सभी चुनाव हमारे आगे गाजर बाँध कर लड़े गए । इंदिरा गांधी ग़रीबी हटाओ के नारे के साथ सत्ता में आईं और पचास साल बाद उनके पोते को भी ग़रीबी हटाने की गाजर पसंद आ रही है । नरेंद्र मोदी तो सपनों के सौदागर ही हैं और एक से बढ़ कर एक रसीली गाजर सबको दिखाते हैं । हालाँकि जनता को इन्होंने एक भी नहीं खिलाई । किसी दल के पास मुफ़्त रुपये लुटाने की गाजर है तो किसी के पास अच्छे दिन की । किसानों की क़र्ज़माफ़ी वाली गाजर में तो इतना दम है कि वह बार बार कई कई राज्यों की सरकारें बदल देती है । अब ये मत पूछिए कि ये गाजर सचमुच हमें मिलती भी हैं क्या ? अजी क्या फ़र्क़ पड़ता है ? हमारे हाथ कुछ आया अथवा नहीं मगर जिन्हें सत्ता चाहिये थी , उन्हें तो सत्ता मिल ही जाती है । अजब खेल है कि सरकारों द्वारा चुनावी वादे पूरे न करने पर विपक्षी दल भी सवाल नहीं करते । दरअसल उन्हें मालूम है कि अगली बार हम आए तो हमें भी इस स्थिति का सामना करना पड़ेगा । चुनाव से पहले जिन्हें जेल भेजने के दावे किए जाते हैं , अगले चुनाव में उन्ही से गठबंधन करने पड़ते हैं । अब एसे में किससे क्या उम्मीद करें ? तो चलिए कल्पना ही कर लेते हैं कि जिसे गधा समझा गया वह कभी रस्सी तुड़ा कर सारी गाजरें खा जाए तो ? या कभी एसा हो कि गाजर दिखा कर मुफ़्त में दौड़ाने वाले गाड़ीवान को पलट कर गधा काट ले तो ? अब आप कहेंगे कि एसा नहीं हो सकता लेकिन जनाब जब गाजर का लोभ हमें दौड़ा सकता है तो काटने का डर गाड़ीवाले को भी तो हमसे डरा सकता है । अजी कल्पना करने में क्या हर्ज है ?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED POST

भक्तों का मार्ग दर्शक मंडल

भक्तों का मार्ग दर्शक मंडलभगवान अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं। हमारे मोदी जी भी लेते हैं। भगवान विपरीत परिस्थित…

भारत पाक युद्ध के नायक प्रतिनायक

रवि अरोड़ाशुक्र है कि युद्ध विराम हो गया । इतिहास गवाह है कि युद्ध किसी मसले का हल नहीं वरन्…

खलनायक की तलाश

खलनायक की तलाशरवि अरोड़ापहलगाम में हुए आतंकी हमले से मन बेहद व्यथित है। गुस्सा, क्षोभ और बदले की भावना रगों…

माचिस थामे हाथ

माचिस थामे हाथरवि अरोड़ामुर्शिदाबाद में हुई हिंसा और आगजनी से मन व्यथित है। तीन हत्याएं हुईं और कई सौ घर…