ग़लत गाड़ी का मुसाफ़िर
रवि अरोड़ा
शायद सन 2005 की कोई गुलाबी सुबह थी जिस दिन अनिल अम्बानी के दादरी पावर प्रोजेक्ट का धौलाना में भूमि पूजन होना था । मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और उनके हमसाया अमर सिंह दिल्ली से कार द्वारा कार्यक्रम स्थल पर पहुँच चुके थे मगर कम्पनी के मालिक अनिल अम्बानी अभी मुम्बई में ही थे । शायद उनके पास कार्यक्रम में शामिल होने का समय नहीं था मगर अमर सिंह ने उन्हें फ़ोन कर अनुरोध किया कि नेता जी यानी मुख्यमंत्री आपका इंतज़ार कर रहे हैं अतः आप आ ही जाइये । अनिल अम्बानी ने बताया कि उन्हें पहुँचने में दो-तीन घंटे लगेंगे । अमर सिंह ने फ़ोन होल्ड कराकर मुलायम सिंह को यह बात बताई । मुलायम सिंह ने जब कहा कि वे इंतज़ार कर लेंगे , इस पर अनिल अम्बानी अपने निजी जहाज से मुम्बई से दिल्ली को रवाना हुए । दिल्ली पहुँच कर उन्होंने अपने दो हेलीकाप्टर लिये और कार्यक्रम स्थल पर दोपहर तक पहुँच सके । देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री ने उनका, उनकी पत्नी टीना अम्बानी और आधा दर्जन लोगों की उनकी टीम का ख़ूब स्वागत किया । घंटों इंतज़ार करने का ज़रा भी दुःख अथवा नाराज़गी न मुलायम सिंह के चेहरे पर थी और न ही अमर सिंह के । अधिकारियों, नेताओं, पत्रकारों और आम जनता की तो ख़ैर क्या मजाल जो इस लंबे इंतज़ार का रंज प्रकट कर सकें। पैसे वाले का जलवा क्या होता है , क़ायदे से मैंने भी यह पहली बार उसी दिन महसूस किया । निजी हवाई जहाज़ों और हेलीकाप्टरों वाले इसी अनिल अम्बानी की आज अख़बार में मुफ़लिसी की ख़बर पढ़ी तो बहुत दुःख हुआ । पता चला कि अनिल अम्बानी के पास अब बस एक कार है और वकीलों की फ़ीस चुकाने को भी उन्हें अपनी बीवी के ज़ेवर बेचने पड़ रहे हैं । देर सवेर वे दिवालिया भी घोषित हो जाएँगे और कोई बड़ी बात नहीं कि विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी जैसे दर्जनों बड़े बिज़नसमैनों की तरह देश ही छोड़ दें ।
2005 में अनिल अम्बानी जब बड़े भाई मुकेश अम्बानी से अलग हुए तो उनके पास 45 अरब डालर की सम्पत्ति थी मगर अब सब कुछ डूब चुका है । हालाँकि शुरुआती दिनो में सभी यही मानते थे कि अनिल अपने भाई को बहुत पीछे छोड़ देंगे मगर हुआ उसका उल्टा । मुकेश आज दुनिया के सातवें सबसे बड़े रईस हैं और अनिल कंगाल हो गये । हालाँकि बड़े बिज़नेसमैनों की गुड्डी चढ़ने और नीचे आने के तमाम कारण होते हैं और कोई भी उनसे बच नहीं सकता मगर फिर भी आज के दौर में तो एक महत्वपूर्ण कारण यह भी हो चला है कि आप किस राजनीतिक दल की गोद में बैठे हैं । यूँ तो आज़ादी के समय से ही यह खेल हो रहा है और बिरला जैसे घरानों के आगे बढ़ने में उनकी कांग्रेस पार्टी पर पकड़ की भी बड़ी भूमिका है मगर अब तो बिना राजनीतिक संरक्षण के कोई भी बिज़नेस ग़्रुप एक हद से आगे नहीं बढ़ सकता । हालाँकि शुरुआत अनिल अम्बानी ने भी इसी तरीक़े से की थी और उन्होंने मुलायम सिंह और अमर सिंह जैसों को अपना बनाया । उनके खेमे में सुब्रत राय सहारा और अमिताभ बच्चन जैसे दिग्गज भी थे मगर ये सभी मोहरे पिट गये । जबकि गुजरात में अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए मुकेश अम्बानी ने नरेंद्र मोदी से नज़दीकियाँ बढ़ाईं और जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो उसका भी जम कर लाभ लिया । मोदी जी से नज़दीकियों का लाभ गौतम अडानी को भी मिल रहा है और आज उनकी तूती बोल रही है जबकि कुछ साल पहले तक देश के बड़े क़र्ज़दारों में वे शुमार होते थे । हालाँकि बड़े भाई की मेहरबानी से अनिल अम्बानी भी अब मोदी जी के नज़दीकियों में शुमार हो गये हैं और शायद यही वजह है कि उन्हें राफ़ेल जहाज बनाने वाली फ़्रांस की दसाँ कम्पनी ने अपना ओफसेट पार्टनर बनना भी तय किया है मगर बात फिर भी नहीं बन रही। कम्पनी ने वादा किया था कि वो अपने ओफसेट पार्टनर को तीस हज़ार करोड़ के काम देगी मगर उसने अभी तक यह वादा पूरा नहीं किया है । शायद अनिल अम्बानी का वक़्त ही ख़राब है । काश समय रहते उन्होंने मोदी जी की गाड़ी पकड़ी होती तब यूँ रुसवा न होना पड़ता ।