गंदा है पर धंधा है ये
रवि अरोड़ा
चलिये आज एक सवाल का जवाब दीजिये । आपमें से कितने लोग नोर्थ कोरिया गए हैं ? नहीं गये तो कोई बात नहीं चलिये ये बताइये कि आपमें से कितने लोग बिना किसी मशक़्क़त के ग्लोब में नोर्थ कोरिया ढूँढ कर दिखा सकते हैं ? नहीं ढूँढ सकते तब भी कोई बात नहीं चलिये ये बताइये कि पाकिस्तान के उस मौलाना से आपका क्या लेना देना है जो सुबह शाम आपकी टीवी स्क्रीन पर रो रो कर बताया है कि कोरोना जैसी बीमारी हमारी कर्मों की वजह से फैली है ? इस बार भी आपके पास कोई जवाब नहीं तो यह तो बता ही दीजिये कि जमात के मौलाना साद के पूरे ख़ानदान, उसकी पिछली सात पीढ़ियों और आने वाले पुश्तों के बाबत आपकी कितनी रुचि है ? अच्छा ये तो आप बता ही दोगे कि यूपी पुलिस के किस दरोग़ा ने कल अपनी बीवी से बाल कटवाए थे ? कमाल है आपको यह भी नहीं पता ? कमाल है ! फिर आपका दिन भर टीवी के आगे जमे रहने का क्या फ़ायदा ? क्या कहा कि आपकी एसी ख़बरों में रुचि नहीं है ? अच्छा रुचि नहीं है तो फिर क्यों देखते हो एसी बेहूदा ख़बरें ? क्यों नहीं फ़ोन करते इस न्यूज़ चैनल वालों को कि बस बहुत हुआ । बंद करो यह बकवास । अब हमारी बात करो, हमारे सुख-दुःख की ख़बरें दिखाओ ?
आज तमाम अख़बारों में एसी ख़बरें थी कि कवारंटीन किए गए लोगों को भोजन नहीं मिल रहा । सैंकड़ों रपटें न्यूज़ साइट पर आ रही हैं कि करोड़ों लोग एक वक़्त की रोटी को तरस रहे हैं । किसानों की फ़सल खेत में बर्बाद हो रही है , यह पूरे देश को पता चल रहा है । नौकरीपेशा रो रहे हैं कि उन्हें वेतन नहीं मिल रहा और नौकरीदाता कह रहे हैं कि हमारी ख़ुद की जेब ख़ाली है तो कहाँ से दें । लाखों लोग आज भी पैदल अपने पैतृक घरों के रास्ते में हैं । कल ही एक आदमी कर्नाटक से पैदल चलता हुआ यहाँ पहुँचा । कहीं किसी न्यूज़ चैनल दिखीं आपको एसी कोई ख़बर ? केजरीवाल कहते हैं कि मैं रोज़ाना एक करोड़ लोगों को मुफ़्त खाना खिला रहा हूँ । केंद्र सरकार कहती है उसने कोरोना से जूझने को पौने दो लाख करोड़ ख़र्च कर दिये जबकि डाक्टर सुबह शाम चिल्ला रहे हैं कि उनके पास बचाव के उपकरण ही नहीं हैं । प्रदेश सरकार कहती है कि हम हर ग़रीब को खाना दे रहे हैं । मेरे अपने शहर में जितना खाना रोज़ बँटने के दावे समाजसेवी और नेता कर रहे हैं उस हिसाब से तो मेरे आपके घरों में भी भोजन के पैकेटों के ढेर लग जाने चाहिये थे । कहीं कोई न्यूज़ चैनल अपने स्तर से जाँच करने का प्रयास करता दिखता है इन दावों की ?
मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि तमाम न्यूज़ चैनल फ़्री टू एयर हैं और केवल विज्ञापनों से उनका पेट नहीं भरता । ईमानदारी से न्यूज़ चैनल चलाना आसान नहीं शायद इसलिए ही किसी न किसी राजनैतिक दल की गोद में बैठना इनकी मजबूरी है । कुछ हुक्म अपने आका मुकेश अम्बानी का भी बजाना पड़ता है जिसका अधिकांश न्यूज़ चैनल में पैसा लगा है । दो चार दस बीस की नहीं देश के लगभग सभी नौ सौ चैनल्स में से अधिकांश की यही कहानी है । जिन्हें कोई गोद में नहीं बैठाता वह ब्लैक मेलिंग से अपने बच्चे पाल रहे हैं । कुल मिला कर इस खेल में मूर्ख आप हम ही हैं जो उनके द्वारा परोसे गये बेहूदा विषयों पर दिन भर एक दूसरे के कपड़े फाड़ते हैं । समझ ही नहीं पाते ही गंदा है पर धन्धा है ये ।