खलनायक की तलाश

खलनायक की तलाश
रवि अरोड़ा
पहलगाम में हुए आतंकी हमले से मन बेहद व्यथित है। गुस्सा, क्षोभ और बदले की भावना रगों में वैसी ही है जैसी इन दिनों प्रत्येक भारतीय के खून में दौड़ रही है । मगर हाय रे मेरा दुर्भाग्य कि मैं अभी तक इस हादसे का सही सही खलनायक ही नहीं ढूंढ सका, जिसके खिलाफ अपनी मुट्ठियां भींच सकूं। पता नहीं लोगबाग इतने समझदार कैसे हैं कि हादसे के एक घंटे के भीतर ही उन्हें अपने खलनायक मिल गए और वे उसके खिलाफ आग उगलने लगे ? जैसा हर आतंकी हमले के बाद होता है, वैसे ही इस बार भी पूरी मुस्लिम कौन को ही दोषी ठहरा दिया गया और देश भर में नफरत की आग भड़काने की कोशिशें की गईं। जाहिर है कि जब धर्म पूछ कर केवल हिंदुओं को ही मारा जाएगा तो मुस्लिमों के प्रति उंगली उठाने से आसानी से रोका भी कैसे जाता । आतंकियों की मंशा भी यही थी मगर भारतीय जन मानस की समझदारी से यह नैरेटिव दो दिन में ही फुस्स हो गया । देश भर के मुस्लिमों ने जुम्मे की नमाज़ के बाद बाजू पर काली पट्टियां बांध कर जिस प्रकार धरने प्रदर्शन किए उससे भी हमलावरों के मंसूबे पर पानी फिर गया । घटना स्थल पर और कश्मीर में फंसे लाखों पर्यटकों की स्थानीय कश्मीरियों ने जिस प्रकार जान बचाई और उनकी मदद की उससे भी आपस में लड़ाने के इस घातक षड्यंत्र की हवा निकल गई । खलनायक की तलाश में लगा भारतीय जन मानस अब धीरे धीरे उन सवालों की ओर मुखातिब हो रहा है, जिनका रास्ता रोकने के लिए ही शायद हिन्दू मुस्लिम का एंगल हवाओं में फैलाया गया था ।
आम भारतीय अब यह जानने को इच्छुक है कि जब नोटबंदी और धारा 370 के हटने से कश्मीर में आतंकवाद की कमर टूट चुकी है तो फिर ये यह कैसे हुआ ? दावा किया गया था कि कश्मीर में पांच लाख से अधिक सुरक्षाबल तैनात हैं तो फिर पहलगाम के प्रमुख पर्यटन बैसरन घाटी में जब 26 लोगों की निर्मम हत्या हो रही थी तब वहां होम गार्ड का एक सिपाही तक तैनात क्यों नहीं था ? सवाल मौजू है कि जब बार्डर पर फैंसिंग है, जगह जगह ड्रोन हैं, सब तरफ कैमरे लगे हैं और चप्पे-चप्पे पर फौजी तैनात हैं तो चार सौ किलोमीटर भीतर तक आतंकी कैसे चले आए ? मीडिया में महीनों से खबरें छप रही थीं कि कश्मीर में इस समय दो सौ आतंकी छुपे हुए हैं, उनकी तलाश में सरकार ने क्या किया ? स्वयं आरएसएस की साप्ताहिक पत्रिका पाञ्चजन्य जब लिख रही थी कि कश्मीर में कुछ बड़ा होने वाला है, तो उसे गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया ? बैसरन में दो दिन पहले से हजारों पर्यटक पहुंच रहे थे । वे आकाश से उड़ कर तो वहां पहुंचे नहीं होंगे । फिर चप्पे चप्पे पर सुरक्षा के इंतज़ाम का दावा करने वाली सरकार ने यह कैसे कह दिया कि 22 अप्रैल को उसे पर्यटकों की आमद की कोई जानकारी नहीं थी ? इतना बड़ी वारदात हो गई और यह घोर लापरवाही बरतने वाले एक भी व्यक्ति का नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया ? सरकार ने पीड़ितों के इस सवाल का जवाब अब तक क्यों नहीं दिया कि बड़बोले सांसद निशिकांत दुबे की 25वीं वर्षगांठ पर जब गुलमर्ग में हजारों सुरक्षा कर्मी तैनात किए जा सकते हैं तब दो हजार पर्यटकों के लिए एक सिपाही का भी इंतजाम क्यों नहीं हुआ ? जिस समय कश्मीर के बाशिंदे पर्यटकों के लिए निःशुल्क खाने, पीने और ठहरने का इंतजाम कर रहे थे, उस समय किसकी शह पर हवाई यात्रा का भाड़ा तीन तीन गुना तक बढ़ा दिया गया ? आखिर क्या कारण था कि मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि और उनके परिजनों को ढ़ाढस बंधाने की बजाय प्रधानमंत्री मोदी को ठीक उसी समय बिहार में रैली करना ज्यादा जरूरी लगा ? क्या सुरक्षाबलों की संख्या में कटौती और सेना में नई भर्तियां ख़त्म करने का असर है यह हादसा ? आज जब फौज में डेढ़ लाख से अधिक जवानों की कमी है, ऐसे में क्या तब भी अग्निवीर जैसी बकवास योजना को ढोया जाना जरूरी है ? आखिरी मगर सबसे जरूरी सवाल तो यह भी है कि इस हमले के उद्देश्य के साथ साथ यह भी तो पता चले कि इसका फायदा किस किस को हुआ ? पाकिस्तान तक तो ठीक है मगर क्या हमारे यहां भी कुछ ऐसे लोग अथवा राजनीतिक दल हैं, जिन्हें इस हमले से फायदा हुआ ?
सरकार पाकिस्तान को लेकर अपने गाल बजाएगी, यह हर कोई जानता था मगर सिंधु नदी का पानी रोकने जैसा बड़ा दावा उसने जो कर दिया है, उसे कैसे वह अंजाम देगी ? विशेषज्ञ तो बता रहे हैं कि देश में इस नदी का पानी रोकने का इंतजाम करने में ही वर्षों लगेंगे और यूं भी दुनिया के तमाम देश करोड़ों लोगों से उनका पेयजल छीनने की छूट भला भारत को कैसे दे देंगे ? सवाल तो अनेक और भी हैं मगर इनमें से कुछ का भी सही सही जवाब मिल जाए तो शायद मुझ जैसे कमअक्ल लोगों को अपने दुश्मनों की सही सही शिनाख्त करने में आसानी हो । आपकी आप जानें मगर मुझे पूरा यकीन है कि इन तमाम सवालों के जवाब कम से कम ब्लैक एन व्हाइट के नजरिए से तो नहीं मिलेंगे ।

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