कुछ और भी दिखा लेह में
रवि अरोड़ा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लेह लद्दाख यात्रा से मैं बहुत प्रसन्न हूँ । प्रसन्नता के तमाम अन्य कारण तो हैं हीं मगर सबसे अधिक प्रसन्नता मुझे अपने प्रधानमंत्री की फ़िटनेस को देख कर हुई । लेह में मोदी जी जिस तरह से सीना फुला कर सेना के अधिकारियों के साथ चलते दिखाई दिए, उससे साफ़ नज़र आया कि बेशक अन्य बातें अपनी जगह हों मगर कम से कम हमारा प्रधानमंत्री तंदुरुस्त तो भरपूर है । सयाने कहते हैं कि स्वस्थ्य शरीर ही स्वस्थ्य फ़ैसले ले सकता है और एसे में जब देश युद्ध के कगार पर खड़ा है तब देश के सर्वोच्च नेता की सेहत भी बहुत मायने रखती है । अब हो सकता है कि शुक्रवार को लेह में प्रधानमंत्री की चाल-ढाल में आपको एसा कुछ ख़ास न लगा हो और आप कहें कि मोदी जी तो हमेशा ही इसी तरह अकड़ कर चलते हैं । यदि आप एसा सोच रहे हैं तो यह सर्वथा ग़लत होगा । जनाब साढ़े ग्यारह हज़ार फ़ुट की ऊँचाई पर बसा लेह एक ठंडा रेगिस्तान है और यहाँ ऑक्सीजन की बेहद कमी रहती है । हवाई मार्ग से लद्दाख पहुँचने वाले को मौसम के अनुरूप शरीर को ढालने के लिए कम से कम एक दिन विश्राम करने के बाद ही घूमने फिरने की सलाह दी जाती है । मगर मोदी जी लेह पहुँचते ही पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुरूप सैनिकों के बीच घूमते फिरते दिखाई दिये ।
मोदी जी की लेह यात्रा से यक़ीनन सैनिकों और देश के नागरिकों में उत्साह का संचार हुआ है । चीन समेत अनेक देशों को भी इस यात्रा से एक महत्वपूर्ण संदेश गया होगा । हालाँकि विपक्ष कह रहा है कि चीन के प्रति कोमल रूख रखने के आरोपों के मद्देनज़र ही मोदी जी ने एसा किया । उनका यह आरोप भी अपनी जगह खड़ा है कि मोदी जी ने चीन से लोहा ले रहे सैनिकों के बीच जाकर भी चीन का नाम क्यों नहीं लिया ? सवाल जवाब कुछ भी हों मगर अपना ध्यान तो मोदी जी की फ़िटनेस पर ही है । हालाँकि मोदी जी पहले प्रधानमंत्री नहीं हैं जो युद्ध के माहौल में सैनिकों के बीच गए हों । 1971 की लड़ाई में इंदिरा गांधी भी सैनिकों का उत्साहवर्धन करने लेह आईं थीं । हालाँकि उस समय उनकी उम्र मात्र 54 साल थी । वैसे आख़िरी समय तक वे तंदुरुस्त रहीं और हवाई जहाज की सीढ़ियाँ दौड़ते हुए चढ़ने उतरने उन्हें पूरा देश हैरानी से देखता था । सन 1965 के युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी भी मोर्चे पर गये थे और उस समय उनकी उम्र भी केवल 61 साल थी । सन 1999 के कारगिल युद्ध के समय अटल बिहारी वाजपेई भी प्रधानमंत्री के तौर पर तीन दिन तक कारगिल में जमे रहे और उनके कुशल नेतृत्व में ही देश ने यह युद्ध जीता । हालाँकि उस समय उनकी उम्र 76 साल हो गई थी और उनकी सेहत कुछ ढीली रहती थी मगर फिर भी वे कहीं भी कमज़ोर नहीं पड़े । अपने मोदी जी भी इन दिनो सत्तर साल के होने वाले हैं और शुक्र है कि उनकी सेहत भी ग़ज़ब है ।
प्रधानमंत्रियों की उम्र और सेहत के मद्देनज़र उनके फ़ैसलों का आकलन करूँ तो पाता हूँ कि महत्वपूर्ण फ़ैसलों पर उसका सीधा प्रभाव पड़ता है । राजीव गांधी मात्र चालीस साल के थे जब प्रधानमंत्री बने । जवाहर लाल नेहरु भी पहले प्रधानमंत्री की शपथ लेते समय केवल 58 साल के थे । इंदिरा गांधी भी मात्र पचास साल की थीं जब पहली बार प्रधानमंत्री बनीं । इतिहास गवाह है कि उम्र बढ़ने के साथ साथ नेहरु और इंदिरा गांधी के फ़ैसले भी कुछ शिथिल हुए । बड़ी उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाले मोरारजी देसाई क़ाबलियत के बावजूद कुछ नया नहीं कर सके । अपवाद के तौर पर नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह को भी याद किया जा सकता है जिन्होंने क्रमशः 70 और 77 साल की उम्र मे देश की कमान सम्भाली और महत्वपूर्ण फ़ैसले भी लिये । लेकिन नरसिम्हा राव के पहले दो साल और बाद के तीन साल और उधर मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल व दूसरे कार्यकाल पर उम्र और सेहत का प्रभाव साफ़ नज़र आता है । अटल जी की गिरती सेहत ने ही उनकी लगातार दूसरी सरकार नहीं बनने दी । प्रधानमंत्री ही क्यों अन्य किसी भी राजनीतिज्ञ अथवा महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति की उम्र और सेहत का उसके द्वारा लिए गये फ़ैसलों पर सीधा प्रभाव तो पड़ता ही है । अब इसी के मद्देनज़र ही तो मुझे मोदी जी का अकड़ कर चलना बहुत अच्छा लगा ।