काश आप भी साथ होते
रवि अरोड़ा
गोवर्धन पूजा के दिन परमार्थ संदेश के सम्पादक वीके अग्रवाल के यहाँ इस बार भी अन्नकूट प्रसाद की व्यवस्था थी । दीपावली की थकान के बावजूद प्रसाद ग्रहण करने शहर के सैंकड़ों गणमान्य लोग वहाँ पहुँचे हुए थे । गोल मेजों के इर्दगिर्द भोजन ग्रहण कर रहे अधिकांश लोगों के पास चर्चा का एक ही विषय था- बीती रात दीपावली पर पटाखों से हुआ प्रदूषण। कोई अख़बारों में छपे प्रदूषण के आँकड़े बता रहा था तो कोई प्रशासन को गरिया रहा था कि सर्वोच्य न्यायालय के आदेश के बावजूद वह लोगों को रात दस बजे के बाद पटाखे फोड़ने से नहीं रोक सका । कोई सर्वोच्य न्यायालय को ही कोस रहा था कि उसे एसा आदेश देना ही नहीं चाहिए था जिसका पालन न हो सके । कुछ कट्टरपंथी इस बात पर भी नाराज़ दिखे कि सारे आदेश हम हिन्दुओं के त्यौहारों के लिए ही क्यों आते हैं , दूसरे धर्म वालों के त्योहारों पर हो रहा प्रदूषण किसी को दिखाई क्यों नहीं देता ? वैसे इस विचार के लोगों की संख्या सबसे अधिक थी । सबसे रोचक बात कही प्रदेश के खाद्य एवं रसद मंत्री अतुल गर्ग ने । उन्होंने अपनी टेबल के पास जमे लोगों पर सवाल दागा कि यह बताओ आतिशबाज़ी को हिंदी में क्या कहते हैं ? अपने सवाल पर लोगों की प्रश्नवाचक निगाहों को ताड़ कर हालाँकि उन्होंने बात को हँसकर घुमा भी दिया और तुरंत ही दूसरा सवाल उछाल दिया कि अच्छा यह बताओ कि एसा सवाल करने से क्या मेरे वोट तो कम नहीं हो जाएँगे ?
हालाँकि मंत्री जी के सवाल का उत्तर मुझे तुरंत देना चाहिए था मगर महफ़िल में कट्टरपंथियों की अधिक संख्या और उनके वाचाल रूख को देख कर उनसे पंगा लेने की हिमाक़त मैं कर नहीं सका। क्या करता ततैये की तरह वे मुझसे चिपट जाते और भोजन करना भी मुहाल कर देते । हालाँकि मेरी भरपूर इच्छा थी कि उन्हें बताऊँ कि जिस बाबर के नाम से जुड़ी बंद पड़ी मस्जिद को देखना भी आप लोगों ने गवारा नहीं किया और ज़मींदोज़ कर दिया, यह पटाखे वही बाबर पहली बार भारत में लाया था । उसी की सेना ने भारत की भूमि पर पहले-पहल तोपों का इस्तेमाल किया और जीत की ख़ुशी में पटाखे फोड़े । स्थानीय लोगों की बात हो तो मैसूर के शासक हैदर अली और टीपू सुल्तान के नाम यह रिकार्ड है । फिर हिंदू धर्म में पटाखे कहाँ से आ गए ? जहाँ तक शास्त्रों का सवाल है तो वहाँ रावण पर विजय प्राप्त अयोध्या लौटे भगवान राम के स्वागत में दीये जलाने का ज़िक्र भर है । पटाखे तो उस त्रेता युग में थे ही नहीं । पटाखों का अविष्कार भी हमने नहीं वरन चीनियों ने किया और सन 1040 में खाना बनाते समय एक रसोईये के हाथों दुर्घटनापूर्वक पहला पटाखा बना। सन 1258 में पटाखे यूरोप पहुँचे और बाद में पन्द्रहवीं सदी में बाबर के साथ भारत आये । ख़ास बात यह कि प्रदूषण के चलते अपने अविष्कारक देश चीन में ही पटाखे फोड़ने पर अब प्रतिबंध है मगर हम इसे अपने धर्म से ही जोड़े बैठे हैं । आधुनिक भारत में इसका निर्माण अंग्रेज़ों ने अपने लिए करवाया और कर्नाटक का शिवकाशी जहाँ देश के नब्बे प्रतिशत पटाखे बनते हैं आतिशबाजी तैयार करते लगभग रोज़ कोई न कोई दुर्घटना होती है और सालाना सैंकड़ों लोग घायल होते हैं । शिवकाशी में बाल मज़दूरी का कोढ़ सर्वाधिक है सो सैकड़ों बच्चे हर साल अपंग हो जाते हैं ।
दिवाली के दौरान कई घरों में जाना हुआ । अनेक घरों में एयर प्यूरीफ़ायर चलते देखे । हालाँकि फिर भी लोग परेशान थे कि हवा में प्रदूषण कम नहीं हो रहा । दमे के कई मरीज़ भी मिले जिनकी हालत दयनीय ही दिखी। महफ़िल में ऊँची ऊँची आवाज़ में हिंदू-हिंदू का राग अलाप रहे कट्टरपंथियों को मैं बता सकता था कि साँस को तरस रहे ये सभी लोग देश के उन्ही 79 लोगों में से थे जिन्हें आप हिंदू कहते हैं । उन्हें बता सकता था कि पीएम 2.5 का जो आँकड़ा नॉर्मल गिनती 60 से बढ़कर 4689 तक यानि 77 गुना अधिक बढ़ गया , वह केवल 19 फ़ीसदी मुस्लिमों की ही नहीं जान नहीं ले रहा है मगर साहस नहीं जुटा सका। अब क्या करूँ मैं कायर जो हूँ । काश आप भी साथ होते । फिर बात बनती ।