एसे काम चलने वाला नहीं है जी
रवि अरोड़ा
हम में से बहुत से लोग आरएसएस को पसंद नहीं करते । उसके बाबत पूर्वग्रह रखने वालों की तादाद देश में बहुत अधिक है । उधर जालीदार गोल टोपी वालों के प्रति भी एक बड़ी आबादी के मन में नफ़रत का भाव है । तबलीगी जमात के निज़ामुद्दीन मरकज़ वाले हादसे के बाद देश भर में एसी हवा सी चली जिसमें बड़ी आबादी के मन में दुराग्रह के ही बीज पड़े । उधर , किसी भी क़िस्म की कट्टरता के विरोधी मुझ जैसे करोड़ों लोगों के मन दोनो ध्रुवों पर खड़े इस तरह के तमाम संघटनों और लोगों के प्रति भी क़तई साफ़ नहीं हैं । मगर कोरोना काल में संघ और मुस्लिम संघटनों के लोगों ने आगे बढ़ कर जो ज़रूरतमंदों की मदद की है , उससे कम से कम मेरा मन तो मोहब्बत से भीग गया है ।
बुज़ुर्गों से सुनते आए थे कि विभाजन के समय में संघ के लोगों की ज़रूरतमंदों की बहुत मदद की थी । देश भर में समय समय पर आई विभिन्न आपदाओं और विपदाओं में भी संघ के काम की चर्चा सुनता रहा हूँ मगर अपनी आँखों से यह सब देखने का अनुभव इस उम्र में आकर ही हुआ । मेरे अपने शहर में संघ से जुड़े लोग जिस तरह से हज़ारों ग़रीबों के यहाँ राशन और भोजन के पैकेट पहुँचा रहे थे वह बेमिसाल है । संघ के ही संघटन राष्ट्रीय सेवा भारती के पाँच सौ से अधिक कार्यकर्ता दिन भर राशन और भोजन के पैकेट हज़ारों लोगों तक प्रतिदिन पहुँचाते नज़र आये । एसा देश भर में हुआ । ख़ास बात यह रही कि इस संस्था ने यह सब करते हुए अपना तनिक भी प्रचार नहीं किया और चुपचाप अपने कर्तव्य का पालन करते रहे । लॉक़डाउन में अब शिथिलता आ गई है मगर संघ का सेवा कार्य अभी भी निर्बाध चल रहा है ।
कोरोना महामारी ने बेशक ईद का मज़ा किरकिरा कर दिया हो मगर देश के लाखों मुस्लिमों ने इस संकटकाल को सेवाकाल में बदल दिया । टिकटॉक पर हज़ारों एसे वीडियो भरे पड़े हैं जिसमें जालीदार गोल टोपी वाले दौड़ दौड़ कर लोगों की मदद कर रहे हैं । मज़दूरों के क़ाफ़िलों को कोई भोजन के पैकेट दे रहा है तो कोई फल और अन्य सामान दे रहा है । मज़दूरों को चप्पल भेंट करने के भी अनेक वीडियो नज़र आ रहे हैं । दूसरों की मदद करने का जज़्बा जो मुस्लिमों में दिख रहा है वह मज़बूत हृदय वालों को भी रुला देने की कूव्वत रखता है । एसा नहीं है कि केवल ईद की ज़कात के लिए वे एसा कर रहे हों , ईद से पहले से ही उनका यह सेवा कार्य देश भर में चल रहा है । हालाँकि जमाते इस्लामी हिंद और ज़मीयत उल उलमाय हिंद जैसे बड़े मुस्लिम संघटन भी ग़रीबों की मदद कर रहे हैं मगर अधिकांश जगहों पर यह कार्य स्वतफूर्त ही हो रहा है ।
देश की तमाम राजनीतिक पार्टियों ने सेवा कार्यों के लिये अपने संघटन बना रखे हैं मगर इस महामारी के समय उनमे से कोई सामने नहीं आया । कवारंटीन के बहाने सभी बयानवीर एयरकंडिशनरों में बैठे रहे और संकट में केवल वे लोग आगे आये जिन पर हमेशा उँगलियाँ उठती रही हैं । हो सकता है आरएसएस में बहुत ख़राबियाँ हों , मुस्लिम संघटन भी अच्छे न हों मगर मित्र तो वही है न जो संकट में काम आये । हो सकता है कि संघ का एजेंडा हिंदू राष्ट्र हो । यह भी हो सकता है कि मुस्लिम संघटन भी गजवा ए हिंद का ख़्वाब देखते हों मगर उस ग़रीब को इससे क्या जिसके भूखे बच्चे को इन्होंने रोटी दी । जिसके नंगे पाँव को इन्होंने चप्पल दी । जिसे अपने अपने वाहन में बैठा कर घर तक छोड़ कर आये । उसे तो बस वह चेहरा तमाम उम्र याद रहेगा जो संकट में उसके सामने मसीहा बन कर आया । क्रिशचन मिशनरीज़ पर सैंकड़ों सालों से यह आरोप है कि सेवा कार्य की आढ़ में वे ज़रूरतमंदों का धर्म परिवर्तन कराते हैं । हो सकता है कि वे एसा करते भी हों मगर और धर्म वालों को किसने रोका है ? वे भी सेवा करें । बेशक अपने धर्म को सुदृढ़ करने के लिए करें मगर पहले सेवा करें तो सही । ग़रीब का हाथ पकड़े बिना उसे हमेशा धर्म पर बड़े बड़े व्याख्यान देने से अब काम चलने वाला नहीं है जी ।