एक वहम की मौत

रवि अरोड़ा
चलिये अच्छा हुआ । यह वहम भी दूर हुआ कि देश में क़ानून का राज है । एक एक करके जब सारे भ्रम इनदिनो टूट रहे हैं तो यह भी कब तक बचता ? ग़नीमत है कि आज सीबीआई की विशेष अदालत ने यह फ़ैसला सुना दिया कि बाबरी मस्जिद किसी ने नहीं गिराई । फ़ैसला यही आएगा वैसा इसका गुमान तो उसी दिन हो गया था जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने विवादित ज़मीन हिंदू संघटनों को सौंप दी थी मगर फिर भी दिल के किसी कोने में यह बात थी कि कोई भी अदालत आसानी से सभी अभियुक्तों को कैसे बरी कर सकती है ? मगर यह काम भी आज हुआ । पता नहीं किस भुलावे में आकर सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया था कि बाबरी मस्जिद विध्वंस आपराधिक घटना थी । भला हो इस विशेष अदालत का जिसने आज स्पष्ट कर दिया कि यह अपराध तो हुआ ही नहीं । शुक्र है कि अदालत ने यह नहीं कहा कि छः दिसम्बर 92 को मस्जिद हवा के झोंके से गिर गई होगी अथवा मौक़े पर मौजूद तीन लाख कार सेवकों की आहों से ही पाँच सौ साल पुरानी इमारत ज़मींदोज़ हो गई होगी । यह भी ठीक ही हुआ कि सीबीआई ने अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह और विनय कटियार आदि तमाम अभियुक्तों के छः दिसम्बर से पहले के किसी भी भाषण, बयान और बैठक का संज्ञान नहीं लिया । उन चश्मदीद गवाहों के भी बयान नहीं कराये जो इन नेताओं की पोल लिब्राहम आयोग के सामने पहले ही खोल चुके थे ।
तारीफ़ तो बनती ही है कि बाबरी मस्जिद गिराने के बाद देश भर में हुए दंगों और 18 सौ लोगों की निर्मम हत्या के लिये किसी को गुनहगार नहीं पाया गया । मंदिर वहीं बनाएँगे के उद्घोष के साथ देश भर में ख़ून की लकीर खींचती हुई आडवाणी की कथित रथयात्रा को भी अदालत ने सबूत नहीं माना । मस्जिद गिराए जाने पर गर्व महसूस करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, विध्वंस से पहले उसकी रिहर्सल को अपने घर बैठक करने वाले विनय कटियार, जगह समतल करने की बात करने वाले वाजपेयी और विध्वंस के समय मिठाइयाँ खा और खिला रहे आडवाणी-जोशी जैसे तमाम बड़े नेताओं को निर्दोष पाया । घटना की कवरेज करने गए सैकड़ों पत्रकारों की पिटाई, मस्जिद की नींव कमज़ोर करने के लिये उसके चारों ओर खोदा गया गड्ढा भी अदालत ने नहीं देखा । बिहार की उस महिला पत्रकार रुचिरा को भी अदालत ने न बुला कर ठीक किया जिसने पहले बयान दिया था कि कार सेवकों ने महिला पत्रकारों से बलात्कार करने की कोशिश की और अपने फटे कपड़ों के साथ जब वह आडवाणी जी के पास गई तो उन्होंने कहा कि आज ख़ुशी का दिन है और मिठाई खाओ । सीआरपीएफ को शहर में न घुसने देने के आडवाणी के आह्वान और परिणाम स्वरूप शहर में की गई आगज़नी को भी अदालत ने महत्व नहीं दिया । मुरली मनोहर जोशी का तो कोई दोष था ही नहीं जिन्होंने चार दिसम्बर को अलीगढ़ में ही एलान कर दिया था कि परसों की कार सेवा सांकेतिक नहीं वरन डिसाईडिंग होगी । बिना डायमाईट के मात्र छः सात घंटे में इतनी ऊँची और विशाल इमारत कैसे ख़ाली हाथों से खील खील हो गई , यह तो ख़ैर सवाल था ही नहीं ।
ख़ैर जो हुआ सो हुआ । मुझे तो बस इस बात का दुःख है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जल्दी क्यों मचाई ? क्यों आज यानी तीस सितम्बर तक फ़ैसला सुनाने की अंतिम तारीख़ सीबीआई कोर्ट को दे दी ? अच्छा ख़ासा देश अदालत-अदालत खेल रहा था । सैकड़ों लोगों को रोज़गार मिला हुआ था । थोड़ा सा तो सब्र करना चाहिये था । 28 साल तक चली सुनवाई के दौरान 49 आरोपियों में से जब 17 मर ही चुके हैं तो बाक़ी बचे 32 के ईश्वर को प्यारे होने का इंतज़ार नहीं किया जा सकता था क्या ? काहे न्याय के राज जैसे भुलावे दे रहे हैं ? अब देखिये खामखाह सीबीआई को इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ ऊपरी अदालत में अपील करनी पड़ेगी । वह तो भगवान भला करे हमारे मोदी जी का जो शायद अब इसकी ज़रूरत ही न समझें ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED POST

बात निकलेगी तो…

रवि अरोड़ाकई साल पहले अजमेर शरीफ यानी मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाना हुआ था । पूरा बाजार हिंदुओं की…

नायकों के चुनाव की भूल भुलैया

रवि अरोड़ाइस बार दीपावली रणथंबोर नेशनल पार्क में मनाई। जाहिरा तौर पर तो खुले जंगल में बाघों को विचरण करते…

सिर्फ बोल गंगा मैया की जय

रवि अरोड़ागुरुवार का दिन था और मैं हापुड़ की ओर जा रहा था । छिज़ारसी टोल प्लाज़ा पर गाड़ियों की…

योर बॉडी माई चॉइस का नया संस्करण

रवि अरोड़ाबेशक उत्तर प्रदेश और अमेरिका में किसी किस्म की कोई समानता नहीं है मगर हाल ही में दोनों जगह…