एक छोटी सी सलाह
रवि अरोड़ा
कल जब से प्रधानमंत्री जी का देश को सम्बोधन सुना है तब से सिर चकरा रहा है । उन्होंने देश के एक सौ तीस करोड़ लोगों में से अस्सी करोड़ को ग़रीब स्वीकार करते उन्हें मुफ़्त अनाज देने की घोषणा की है । हालाँकि यह तो पहले से ही सबको मालूम था कि देश में ग़रीबों की संख्या इतनी ही होगी मगर अब मोदी जी को क्या हुआ जो उन्होंने पूरी दुनिया के सामने मान लिया कि भारत के साठ फ़ीसदी से अधिक लोग ग़रीब हैं और उसके सामने पेट भरने की भी दिक्कत है । हालाँकि भारत की सच्चाई पूरी दुनिया को पता है और संयुक्त राष्ट्र भी अपने एक सर्वे में बता चुका है कि भारत में 68 फ़ीसदी लोग ग़रीब हैं मगर सवाल तो यह है कि मोदी जी को क्या हुआ , उन्होंने इस सच्चाई को कैसे सबके सामने स्वीकार कर लिया ? वही मोदी जी जो भारत को विश्व गुरु बनाने के दावे करते थे और उनके मुरीद अखंड भारत के नाम पर न जाने कौन कौन से देश को भारत की सीमाओं के भीतर लाना चाहते हैं , क्या यह है उनके सपनों की हक़ीक़त ? पेट भूख से तड़प रहा है और ख़्वाब आसमान सरीखे ?
नीति आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि 2018 के बाद से भारत में तेज़ी से ग़रीबी बढ़ी है । बक़ौल आयोग 2030 तक ग़रीबी मुक्त भारत के लक्ष्य में हम लगातार पिछड़ते जा रहे हैं । बेशक उनसे अनुसार देश में केवल 21 फ़ीसदी लोग ही ग़रीबी की रेखा से नीचे हैं मगर स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा बार बार अस्सी करोड़ लोगों का ज़िक्र कर अब सच्चाई से पर्दा हटा दिया गया है। उधर संयुक्त राष्ट्र के मानक के अनुरूप भारत में ग़रीबों की संख्या 91 करोड़ से भी अधिक है । उसके अनुसार भारत में 244 रुपये प्रतिदिन से कम कमाने वाले को ग़रीब माना गया है और इस हिसाब से 68 परसेंट लोग देश में ग़रीब हैं । उसके सर्वे के अनुसार भारत में केवल 22 फ़ीसदी लोग ही एसे हैं जिनकी प्रतिदिन की आमदनी 1. 9 डालर से अधिक है । संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भारत में केवल पचास करोड़ लोग ही कामकाज़ी हैं और उनमे से भी 90 फ़ीसदी असंघटित क्षेत्र में काम करते हैं व लाकडाउन के बाद से अधिकांश बेरोज़गार हैं । उसने माना है कि लाकडाउन के बाद भारत में कम से कम आठ फ़ीसदी ग़रीब और बढ़ जाएँगे । यानि पहले जो 81. 2 करोड़ ग़रीब थे, अब ताज़ा हालात से ग़रीबों की तादाद लगभग 91.5 करोड़ हो गई है जो दुनिया के तमाम ग़रीबों की लगभग आधी है ।
बचपन से ही देश के नेताओं को ग़रीबी और ग़रीबों की बात करते सुन रहा हूँ । ग़रीबी हटाओ जैसे नारे से देश में सरकारें भी बन गईं मगर ग़रीबी फिर भी टस से मस नहीं हो रही । हर नई सरकार आकर नए आँकड़े दिखा कर ग़रीबी कम करने की बात करती है मगर ज़मीनी हक़ीक़त वही है कि हम सत्तर साल पहले भी ग़रीब थे और आज भी ग़रीब हैं । चंद बड़े शहरों की चकाचौंध को छोड़ दें तो आज भी तीस करोड़ लोगों का परिवार मनरेगा जैसी ख़ैरात से चल रहा है जिसमें कुल 18 हज़ार 200 रुपये साल के मिलते हैं । चूँकि काम अधिकतम सौ दिन मिलता है अतः यह धनराशि पचास रुपये रोज़ भी नहीं बैठती । उस पर तुर्रा यह है कि ग्राम प्रधान से लेकर अफ़सर तक कमीशन देना पड़ता है सो अलग । भुगतान कितने दिन में मिलेगा इसकी भी कोई गारंटी नहीं ।
उधर अमीरों की अमीरी का कोई ठिकाना ही नहीं । देश के 68 अरबपतियों की सम्पत्ति इतनी है जितना देश का सालाना बजट है । इस कमरतोड़ ग़रीबी में भी अमीरों की सम्पत्ति बढ़ रही है । आज जब छोटे व्यापारी की पूँजी और नौकरीपेशा लोगों की बचत कम हो रही तब अम्बानी जैसों की सम्पत्ति बढ़ रही है । इस लाकडाउन में ही मुकेश अम्बानी कई सीढ़ियाँ ऊपर चढ़ कर दुनिया के सबसे अमीर आदमियों की सूची में ग्यारहवें स्थान पर पहुँच गये हैं । चलिये छोड़िये ये सब बातें , मोदी जी आप तो बस एक छोटी सी सलाह मान लीजिये । मुझे मालूम है कि आपको बनने सँवरने का शौक़ है और लोग कहते हैं कि आप एक कपड़ा दोबारा भी नहीं पहनते मगर फिर भी यदि सार्वजनिक रूप से कहीं अवतरित हों तो कृपया कम से कम उस दिन इसका परहेज़ किया करें । क्या है कि ग़रीब व भूखे देश के प्रधानमंत्री को यह सब जंचता नहीं है न ।