इन गारंटियों की क्या गारंटी !

रवि अरोड़ा
किसानों और सरकार के बीच हुई वार्ता का परिणाम आना अभी बाकी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कोई संतोषजनक हल निकल ही आएगा । उम्मीद के अनुरूप किसान साल इस बार भी 2020-2021 के अपने आंदोलन जैसा ही शांति पूर्ण आचरण कर रहे हैं और उधर सरकार इस बार भी वही सब भूलें कर रही है जो पिछली बार उसकी छीछालेदर का कारण बनी थीं। इस बार भी भाजपा के आई टी सेल, मीडिया व सोशल मीडिया के जरिए किसानों पर खालिस्तानी, आंतकवादी, विदेशी धन से पोषित और भारत विरोधी टूल किट के समर्थक का आरोप मढ़ा जा रहा है। इस बार भी सड़कों पर कंटीले तार , बड़ी बड़ी कीलें, बेरिकेड्स, वाटर कैनल और आंसू गैस का सहारा तो लिया ही जा रहा है साथ ही ड्रोन से भी हमले किए जा रहे हैं। हरियाणा सरकार सड़कें व इंटरनेट बंद किए बैठी है और प्रदेश पुलिस घर घर जाकर किसानों को धमका रही है कि उन्होंने इस आंदोलन में हिस्सा लिया तो उनके पासपोर्ट और ट्रेक्टर जब्त कर लिए जाएंगे तथा उनके बच्चों की नौकरी और पढ़ाई भी छुड़वा दी जायेगी। पता नहीं मोदी जी के सलाहकार कौन हैं जो जानबूझ कर एन चुनाव की बेला में उनका भट्टा बैठाने पर तुले हुए हैं ।
दुनिया जानती है कि 2014 के चुनावों से पहले मोदी जी न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी के सबसे बड़े समर्थक थे । इंटरनेट पर उनके ऐसे पचासों वीडियो पड़े हैं, जिसमें वे दावा करते दिख रहे हैं कि उनकी सरकार बनी तो एमएसपी लागू होगा ही साथ ही किसानों की आमदनी भी दोगुनी कर दी जायेगी। दस साल बाद भी मोदी जी ने अपने वादे पर अमल नहीं किया तो उन्हें उनका वादा याद दिलाने के लिए किसान अब दिल्ली आना चाहते हैं तो इसमें गैर कानूनी क्या है ? किसान जो आंदोलन कर रहे हैं, उसकी इजाजत तो देश का संविधान भी उन्हे देता है मगर किसानों के साथ सरकार जो बर्ताव कर रही है, वह संविधान की किस धारा के तहत है ? क्या यह मजाक नहीं है कि जिस कृषि वैज्ञानिक स्वामी नाथन को सरकार भारत रत्न देने की घोषणा करती है, उसी के सिफारिशें डस्टबिन में फेंकना चाहती है । किसानों के सबसे बड़े नेता चौधरी चरण सिंह को भी राजनीतिक लाभ के लिए भारत रत्न से सरकार नवाजती है मगर साथ ही उनके अनुयायियों पर आंसू गैस के गोले भी छोड़ती है ।
सरकार के लिए यह राहत भरी खबर ही है कि हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान अभी पंजाब के किसानों के साथ पूरी तरह नहीं आए हैं मगर जिस तरह से उनके बीच भी पंचायतें और महापंचायते हो रही हैं उससे वे कब तक आंदोलित नहीं होंगे कहा नहीं जा सकता । मगर पता नहीं क्या कारण है कि केंद्र सरकार पूर्व की भांति इस बात भी यही साबित करने पर तुली हुई है कि किसानों की मांगें अव्यवहारिक हैं और उन्हें मानने से देश की अर्थव्यवस्था चरमरा जायेगी। यदि सचमुच ऐसा ही है तो 2014 में किसानों को ऐसा ख्वाब ही क्यों मोदी जी ने दिखाया था ? काला धन की वापसी और दो करोड़ नौकरियों जैसी बातें तो माना कि चुनावी जुमले ( अमित शाह की स्वीकारोक्ति ) थे मगर देश की आधी आबादी किसानों के साथ भी छल कहां तक उचित है ? देश की चौथी सबसे बड़ी जाति ( स्वयं मोदी जी द्वारा परिभाषित ) किसानों से किया गया दस साल पुराना वादा भी यदि जुमला ही था तो क्यों नहीं मोदी जी दिल बड़ा कर अपने उस झूठ के लिए किसानों से बिना शर्त मुआफ़ी मांगते ? यदि ऐसा नहीं तो फिर उनके इन सभी दावों की क्या गारंटी है जो हजारों करोड़ रुपए खर्च कर आजकल सुबह शाम अखबारों और टेलीविजन पर ” मोदी की गारंटी ” ” मोदी की गारंटी ” के रूप में प्रचारित किए जा रहे हैं ? अविश्वास के माहौल में इन गारंटियों की भी गारंटी भला कौन देगा ?

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