आख़िर खेल क्या है इनका

रवि अरोड़ा
अरसे बाद श्मशान घाट जाना हुआ । कोरोना महामारी के चलते महीनों से ख़ुद को घर में क़ैद सा किया हुआ है । मगर इस बार नज़दीकी रिश्तेदारी में मौत के चलते जाना ही पड़ा । हालाँकि हिंडन नदी किनारे के इस अंत्येष्टि स्थल पर पिछले पचास सालों से जा रहा हूँ मगर पहली बार ऐसा दृश्य देखा । घाट पर हज़ारों लोगों की भीड़ थी और मृतकों की तादाद अधिक होने के कारण शवों को वहाँ लाइन में लगा कर रखा गया था । मोक्ष स्थली के प्रभारी पंडित मनीष शर्मा को फ़ोन किया और वे तुरंत आ भी गये । उन्होंने बताया कि इस समय कोरोना से मरे लोगों का अंतिम संस्कार हो रहा है और सामान्य मृतकों का नम्बर बाद में आएगा । हमारा नम्बर सामान्य वालों में छठा था । सुबह के साढ़े ग्यारह बजे थे और मनीष के अनुसार अब तक कोरोना से मरे बारह लोगों का संस्कार हो चुका है । लम्बी चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि आजकल बीस बीस घंटे काम करना पड़ रहा है । सामान्य दिनो में पंद्रह से बीस शव यहाँ आते थे मगर आजकल इनकी संख्या साठ तक पहुँच जाती है । बक़ौल उनके कोरोना से संक्रमित शव हम केवल उनको मानते हैं जो सीधे अस्पताल से कोरोना मृतक के रूप में यहाँ आते हैं । घर में मरे मरीज़ को चाहे वह कोरोना से ही क्यों न मरा हो, उसे सामन्य मृतक ही माना जाता है । शवों की बहुतायत के कारण लगभग बीस शव यहाँ से प्रतिदिन वापिस भी लौट जाते हैं जो गढ़ गंगा की ओर प्रस्थान करते हैं । ज़ाहिर है कि इस शमशान घाट पर मुस्लिमों और ईसाइयों के शव नहीं आते । अतः उनके बाबत वहाँ के स्टाफ़ को कोई जानकारी नहीं थी । दफ़नाए अथवा नदी में बहाए गए बच्चों के शवों का आँकड़ा भी किसी के पास नहीं । शहर से सटे अधिकांश बड़े गाँवों में अपने अलग श्मशान घाट हैं और वहाँ हो रहे अंतिम संस्कारों का भी कोई आँकड़ा किसी के पास नहीं है । घाट के स्टाफ़ की मानें तो शहर में प्रतिदिन कम से कम सौ लोगों की मौत हो रही है और उनमे से लगभग एक तिहाई कोरोना के मरीज़ होते हैं । यह सारी बात मैं आपको उस दो दिन पहले की बता रहा हूँ जिस दिन तक जनपद में कोरोना से मरने वालों का सरकारी आँकड़ा सौ तक भी नहीं पहुँचा था । हाँ यह बात और है कि कोरोना पिछले आठ महीने से मौत का तांडव कर रहा है और जो वाक़या मैंने आपको बताया ऐसा लगभग रोज़ शहर में उपस्थित हो रहा है ।

दशकों तक अख़बारों में क़लम घसीटने के कारण मुझे पता है कि सरकारी आँकड़ों की हक़ीक़त क्या होती है । फ़ील्ड रिपोर्टिंग के दौरान किसी भी हादसे अथवा दंगों में मरने वालों की तादाद बेशक अख़बारों में कुछ भी छापनी पड़े मगर हम रिपोर्टर आपस में तो यही चर्चा करते थे कि सरकारी आँकड़े में एक ज़ीरो और जोड़ लें तो मृतकों की सही संख्या निकल आएगी । देश भर के श्मशान घाटों की ख़बरें और वीडियो रोज़ आँखों के सामने से गुज़र रहे हैं मगर मृतकों का सरकारी आँकड़ा ऐसे ही मैनेज हो रहा है जैसे तमाम प्रदेश सरकारें अपने यह हुए अपराधों के आँकड़ों को करती हैं । जैसा मेरे शहर में दिख रहा है , देश भर का सूरते हाल वैसा नहीं होगा , यह मानने की कोई वजह मेरे पास नहीं है । समझ नहीं आ रहा कि सच्चाई को छुपाया क्यों जा रहा है ? महामारी दुनिया भर में फैली है तो इसमें सरकार का क्या दोष है ? सही जानकारी लोगों तक पहुँचे तो शायद लोग बाग़ डरें भी और कोरोना को लेकर कम से कम ऐसी लापरवाही भी न बरतें जैसी आजकल दिखाई पड़ रही है ।
सच कहूँ तो अपनी सरकारों की माया मेरी समझ से बाहर है । मार्च-अप्रैल के महीने में जब कुछ भी नहीं था तब इतना डरा दिया था कि जैसे प्रलय आ गई है और अब जब मौत का तांडव शहर-शहर गली-गली हो रहा है तब ऐसा अभिनय कर रहे हैं कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं । हे ईश्वर या तो इन्हें सदबुद्धि दे या कम से कम मुझे ही इतना हुनर दे दे कि मैं इनके खेल को समझ सकूँ ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED POST

जो न हो सो कम

रवि अरोड़ाराजनीति में प्रहसन का दौर है। अपने मुल्क में ही नहीं पड़ोसी मुल्क में भी यही आलम है ।…

निठारी कांड का शर्मनाक अंत

रवि अरोड़ा29 दिसंबर 2006 की सुबह ग्यारह बजे मैं हिंदुस्तान अखबार के कार्यालय में अपने संवाददाताओं की नियमित बैठक ले…

भूखे पेट ही होगा भजन

रवि अरोड़ालीजिए अब आपकी झोली में एक और तीर्थ स्थान आ गया है। पिथौरागढ़ के जोलिंग कोंग में मोदी जी…

गंगा में तैरते हुए सवाल

रवि अरोड़ासुबह का वक्त था और मैं परिजनों समेत प्रयाग राज संगम पर एक बोट में सवार था । आसपास…