(आख़री कड़ी )

उस दौर के अखबार नवीसों में गजब की एकता भी उन दिनों थी । अनेक पत्रकार संगठन तब सक्रिय थे । वर्ष 1978 में क्रोनिकल समाचार पत्र के संपादक श्री नाहर सिंह चौधरी के निधन पर उनके परिवार को आर्थिक सहायता देने के लिए पत्रकारों ने बकायदा बड़ा सांस्कृतिक कार्यक्रम यहां बसंत सिनेमा हॉल में आयोजित किया था । इस कार्यक्रम में सिनेमा जगत के मशहूर अभिनेता सुनील दत्त , वैजयंती माला , मनोरमा , कमलजीत , शोभा आनंद और सुरेंद्र पाल शामिल हुए थे । कार्यक्रम में सांस्कृतिक कार्यक्रम टी सीरीज़ कंपनी की और से पेश किया गया था। खास बात यह थी कि कार्यक्रम में शामिल होने के लिए किसी भी फिल्मी कलाकार ने एक रुपया भी पारिश्रमिक के रूप में नहीं लिया था । अपने पत्रकार साथियों के दुख दर्द में शरीक होने के अतिरिक्त अपनी आन बान शान की भी उस दौर के पत्रकारों को बेहद परवाह रहती थी । आठवें दशक के ही शायद किसी साल की यह बात है जब तत्कालीन जिलाधिकारी चंद्रपाल ने एक पत्रकार को ब्लडी सिली स्टूडेंट कह दिया था । यह वही चंद्रपाल हैं जो बाद में प्रदेश के मुख्य सचिव भी बने थे । इस मामले ने इतना तूल पकड़ा की पूरे जिले के पत्रकारों ने सरकारी कार्यक्रमों का बहिष्कार कर दिया । बात लखनऊ तक पहुंची और जिलाधिकारी को मुआफ़ी मांगनी पड़ी । कल्याण सिंह सरकार की पहली पहली पारी में गाजियाबाद के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शेलजा कांत मिश्र ने भी पत्रकारों से उलझने का प्रयास किया तो तो उन्हें भी मुंह की खानी पड़ी और प्रदेश के तत्कालीन गृह राज्य मंत्री बालेश्वर त्यागी के निवास पर धरने पर बैठे पत्रकारों के पास जाकर उन्हें खेद व्यक्त करना पड़ा । उन दिनो शहर में गाजियाबाद जनर्लिस्ट एसोसिएशन और बाद में गाजियाबाद जनर्लिस्ट क्लब जैसी संस्थाएं बेहद सक्रिय थी । जर्नलिस्ट क्लब तरफ से लगभग एक दशक तक यहां भव्य होली मिलन समारोह आयोजित किए जाते रहे । इस कार्यक्रम में हजारों की संख्या में दूर दूर से लोग उमड़ते थे । आसपास के जिले ही नहीं पूरी कमिश्नरी के अधिकारी इस कार्यक्रम में शिरकत करने आते थे । ज़िले का शायद ही कोई ऐसा नेता होता होगा जो वहां उस कार्यक्रम में ना पहुंचे अथवा अपनी खिंचाई ना करवाए । कुर्सियों भर जाने के बाद बड़े बड़े अधिकारी और नेता खड़े होकर पूरा कार्यक्रम देखते थे ।इसके अतिरिक्त दीवाली पर भी एक शानदार कवि सम्मेलन आयोजित होता था । अच्छा काम कर रहे पत्रकारों को सम्मानित भी हर साल किया जाता था । इन वर्षों में प्रेस क्लब बनाने का भी अनेक बार प्रयास हुआ जो असफल रहा ।

नई शताब्दी के शुरुआत के साथ ही गाजियाबाद में पत्रकारिता का माहौल भी बदलना शुरू हुआ । राष्ट्रीय समाचार पत्रों ने अपने यहां कार्यालय खोलने शुरु किए तो टीवी चैनल्स ने भी अपने संवाददाता यहां नियुक्त किए । अमर उजाला , दैनिक जागरण , हिंदुस्तान , नवभारत टाइम्स , राष्ट्रीय सहारा और नई दुनिया ने स्थानीय एडिशन भी निकाले जिनसे में अनेक आज भी अनवरत छप रहे हैं । देश के अन्य प्रमुख अखबारो ने भी यहाँ अपने ब्यूरो खोले । समाचार चैनल्स की देश में बढ़ती संख्या के चलते यहाँ संवाददाताओं की संख्या में भी बेहद इज़ाफ़ा हुआ । पत्रकारिता के प्रशिक्षण कोर्स भी संचालित होने लगे और सैंकड़ों की संख्या में युवक युवतियां इस क्षेत्र में अपना हुनर दिखाने के लिए आगे आने लगे । गाजियाबाद से ही राजेश कौशिक , प्रवीण साहनी , विद्या शंकर तिवारी और प्रमोद शर्मा जैसे लोग इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में काफी आगे तक बढ़ गए । हालांकि राजेश कौशिक एक सड़क दुर्घटना के चलते जल्दी ही दुनिया से विदा हो गए थे मगर उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के क्षेत्र में गाजियाबाद का नाम ख़ूब रौशन किया । प्रिंट मीडिया में भी कमल सेख़री , राज कौशिक , राकेश पाराशर , डीसी पंत , शेखर कपूर , विद्या शंकर तिवारी , प्रमोद शर्मा , अरुण कानपुरी , अशोक निर्वाण , हेमंत कुमार , आलोक यात्री , अजय औदिचय , योगेंद्र यादव , विनय संकोची , हेमंत त्यागी , ओपी गर्ग , चेतन आनंद , सलामत मियाँ , राकेश शर्मा , ललित कुमार , फ़रमान अली , मुनीश बिल्सवी और रणवीर गौतम जैसे हुनरमंद और जुझारू पत्रकार गाजियाबाद के चप्पे-चप्पे पर निगाहें रखे हुए थे । तौशिक़ कर्दम , शिवम् पप्पू , राजकुमार , अशोक शर्मा और अजय रावत जैसे कुशल फ़ोटोग्राफ़र अखबारो को वाणी दे रहे थे । हालांकि इस दौरान अरुण कानपुरी , जसपाल सिंह बिट्टू , श्रीकांत शर्मा जैसे कई जुझारु पत्रकार बहुत जल्दी दुनिया से विदा भी हो गए मगर अपने हिस्से का काम उन्होंने भी बखूबी निभाया । सच कहूँ तो दर्जनों साथी और भी थे जिन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया मगर जल्दबाज़ी , कमज़ोर पड़ गई यादें और अल्पज्ञान के चलते उनकी चर्चा यहाँ नहीं कर पा रहा हूँ । मैं अच्छी तरह जानता हूँ की इसके लिए मुझे बाद में शर्मिंदा ही होना पड़ेगा । लिहाज़ा पहले ही माफ़ी माँग लेता हूँ ।

उधर , आज परिस्थितियां बेहद बदली हुई हैं । नए-नए लोग इस क्षेत्र में भरपूर ऊर्जा के साथ आए हैं आए पूरी ताकत , मेहनत और काबिलियत से जनता की आवाज ऊपर तक पहुंचाने के कार्य में जुटे हुए हैं । अब छोटी से छोटी घटना तुरंत ही पूरे देश और दुनिया के सामने पहुंच जाती है । खबरों की यह तीव्रता आज से 20 साल पहले तक अकल्पनीय ही थी । हालांकि आज ऐसे अनेक लोग मीडिया में दिखाई देते हैं जो अल्प ज्ञान अथवा अपने छोटे छोटे लालच के चलते पूरे मीडिया जगत की रुसवाई का सबब बनते हैं मगर मूल्यों में गिरावट तो अब हर क्षेत्र में आई है सो पत्रकार भी उनसे कैसे बच सकते हैं । दुखद ही है कि अपराध जगत और राजनीति की तरह गिरोहबंदी अब मीडिया में भी हो रही है । पुरानी पीढ़ी के प्रति नई पीढ़ी में आदर और सद्भाव का भाव तो दूर नए लोग अपने वरिष्ठों को पहचानते तक नहीं हैं । चलिए इस विषय को छोड़िए और बात अच्छे कार्यों की ही करें । यह तो मानना ही पड़ेगा कि तमाम विसंगतियों के बावजूद पिछले 50 सालों में गाजियाबाद में मीडिया एक सजग प्रहरी के रूप में उभरा है और उसने अर्श से फर्श तक का सफ़र बिना थके पूरा किया है । इसमें भी मुझे कोई संदेह नहीं है कि आने वाले समय में गाजियाबाद से निकले हुए युवक और युवतियां देश के मीडिया जगत में मार्गदर्शन की भूमिका में नजर आएंगे। जाहिर है मेरी शुभकामनाएं अपने इन सभी साथियों के साथ ही होंगी।। (समाप्त )

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