अहिल्या कोम्पलेक्स
रवि अरोड़ा
पिछले कई साल से एक एसी संस्था से जुड़ा हुआ हूँ जो मेधावी बच्चों को न केवल निशुल्क बेहतरीन शिक्षा उपलब्ध कराती है बल्कि उनका भरण पोषण भी करती है । संस्था के छात्रावास में रह रहे ये पच्चीस बच्चे प्रतिदिन शाम को भजन संध्या करते है और भागवत गीता का भी सस्वर पाठ करते हैं । सुन कर मन कोमल भावनाओं से लबरेज़ हो उठता है । गुरु नानक भी तो कहते थे कि सुनते पुनीत कहते पवित्र । अब गीता के श्रवण भर से पुनीत हो रहा हूँ तो इससे बेहतर क्या हो सकता है । आख़िर कुछ तो है जो मानव जगत युगों से इस गीता से अपना जीवन रौशन कर रहा है । आज भी करोड़ों लोग गीता को अपने जीवन में उतारने के जतन में लगे हैं । छात्रावास के बच्चे एक दिन पाठ कर रहे थे- यदा यदा ही धर्मस्य ..यानि अर्जुन से कृष्ण कह रहे हैं कि जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ। साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ । मैं बचपन से यह श्लोक सुन रहा हूँ मगर उस दिन यह श्लोक सुनने के बाद से मन शंकाओं से भर गया और तब से अब तक दिनप्रतिदिन शंकाओं में इज़ाफ़ा ही हो रहा है ।
सुबह उठते ही जब अख़बार का सामना हो तो वे बलात्कार की ख़बरों से डराने लगते हैं । टीवी भी दिन भर रेप इन इंडिया अथवा रेप कैपिटल की बहस छेड़े रहते हैं । साफ़ नज़र आने लगता है कि धर्म की हानि हो चुकी है और अधर्म अपने चरम पर है । देश में हर घंटे चार बलात्कार सरकारी रिकार्ड के अनुसार ही हो रहे हैं । असली आँकड़ा तो बहुत ही बड़ा होगा । बलात्कारी अब मासूम बच्चियों की जला कर निर्मम हत्या भी कर रहे हैं । यह दरिंदगी रुकने का नाम ही नहीं ले रही । अब इससे उपयुक्त और कौन सा समय चाहिए ईश्वर को जन्म लेने के लिए ? कृष्ण ने साधुओं की रक्षा की बात की मगर अब तो समाज को ही इन बलात्कारी साधुओं से रक्षा की ज़रूरत आन पड़ी है । पाँच हज़ार साल पहले जब ईश्वर ने अवतार लिया था तब तो इतना अधर्म था ही नहीं । आज के दौर से तुलना करें तो वह काल स्वर्णयुग सा ही था । उस दौर में ईश्वर को जब आना पड़ा तो अब क्यों नहीं आ रहे ? अब तो शायद यहाँ उनके स्थाई निवास की ही ज़रूरत आन पड़ी है । द्रोपती की पुकार पर उनका चीर हरण रोकने को ईश्वर दौड़े चले आये थे । उस द्रोपती का अपमान तो आज की द्रोपतियों के समक्ष कुछ भी नहीं है । फिर किस बात का इंतज़ार है ईश्वर को ? ईश्वर ने कहा कि अब वह कल्कि अवतार के रूप में जन्म लेंगे । पता नहीं कि वे लेंगे भी अथवा नहीं । चलिये ले भी लें मगर उनके पुराने अवतार और नए अवतार के बीच के हज़ारों वर्ष के काल की द्रोपतियों ने किस अपराध की सज़ा भोगी ? क्या वे यूँ ही ईश्वर की तमाम मूर्तियों के आगे घंटी बजाती रहीं ? द्रोपती तो कृष्ण की केवल सखा मानती थी । आज की द्रोपतियाँ तो उन्हें अपना पिता, भाई, सखा और सबकुछ मानती हैं । फिर भी इतनी बेरूख़ी ? ईश्वर ने भारत में ग्लानि की बात कही थी यानि भारत पर उनकी विशेष कृपा है मगर अब तो यही भारत दुनिया की रेप कैपिटल हो गया है । ईश्वर की यह कैसी कृपा है हम भारतवासियों पर ?
मन की कहूँ तो मुझे लगता है कि यहाँ भगवान से भूल हुई । उन्हें अर्जुन से कोई वादा करना ही नहीं चाहिये था । नहीं कहना चाहिए था कि पापियों का नाश करने वे आएँगे । इसी का तो परिणाम है कि हज़ारों साल से हमारे अर्जुन ईश्वर के इंतज़ार में हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं और दुशासनों का आतंक बढ़ता ही जा रहा है । अर्जुनों की यह नपुंसक चुप्पी उन्हें तमाम उम्र विहंगला ही बनाए रखती है और गांडीव धरे के धरे रह जाते हैं । क्या ही अच्छा होता कि चीर हरण से कुपित कृष्ण धृतराष्ट्र की पूरी सभा का ही सफ़ाया कर देते । बाद में भी तो उन्होंने पांडवों से यही करवाया । कम से कम युगों तक एक मिसाल तो हमें मिलती रहती । सयानों से कभी सुना था कि इंफ़ीरियोरिटी और सुपीरीयोरिटी कोम्पलेक्स के अतिरिक्त एक अहिल्या कोम्पलेक्स भी होता है । यानि हम तमाम उम्र शापित अहिल्या की तरह इंतज़ार करते रहते हैं कि कभी कोई राम आएगा और हमें इस शाप से मुक्ति दिलाएगा । क्षमा करें प्रभु आपके यदा यदा वाले वादे ने भी हमें अहिल्या कोम्पलेक्स के कगार पर पहुँचाया है ।