असली कश्मीर फाइल्स

रवि अरोड़ा
भगवान न करे कि जब तक आप ये पंक्तियां पढ़ें, संख्या बढ़ चुकी हो , मगर इन्हे लिखते समय तक तो कश्मीर के दस घरों में मातम छाया हुआ है । वैसे मातम तो कश्मीर के लाखों परिवारों में पसरा हुआ है मगर ये दस घर वे हैं जिनके किसी न किसी सदस्य को हाल ही में आतंकियों ने सरे आम गोली से उड़ा दिया । जी हां टारगेट किलिंग का शिकार हुए अधिकांश लोग वही कश्मीरी पंडित थे जिनके नाम पर आपको एक जहर भरी फिल्म हाल ही में दिखाई गई और मजबूर किया गया कि आप फिल्म देख कर रोएं और कुछ खास इतिहास पुरुषों को गाली दें । कश्मीर फाइल्स नाम की इस फिल्म के प्रचार प्रसार में खुद प्रधान मंत्री तक कूद पड़े थे और भगवा पार्टी की अधिकांश राज्य सरकारों ने भी इसे टैक्स फ्री कर दिया तथा पार्टी के तमाम सदस्यों को जैसे अघोषित टास्क दे दिया गया कि कैसे लोगों को सिनेमा घर तक लाना है और फिल्म की समाप्ति के बाद कौन कौन से नारे लगाने हैं । कश्मीरी पंडितों के दुखों पर बनी इस फिल्म के निर्माता ने सैंकड़ों करोड़ कमा लिए और उस पर राजनीति करने वालों ने वोट बटोर लिए मगर सवाल मौजू है कि पीड़ितों के हाथ आखिर क्या आया ? फिल्मी नहीं असली जीते जागते कश्मीरी पंडित तो अब भी रोज़ मारे जा रहे हैं और जो बचे हैं वे पानी पी पी कर सरकार को कोस रहे हैं और आए दिन सड़कों पर जुलूस निकाल रहे हैं और धरने दे रहे हैं ।

5 अगस्त 2019 को जब केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35 ए हटाई थी तो उम्मीद बंधी थी कि अब शायद घाटी के हालात सुधर जाएंगे । स्वयं गृह मंत्री ने संसद में दावा किया था कि 1990 में पलायन कर चुके कश्मीरी कश्मीरी की ही न केवल घर वापसी होगी अपितु भारत के हर कोने का आदमी अब कश्मीर में बस सकेगा । कारोबार, उद्योग धंधे , पूंजी निवेश, पर्यटन और अन्य सेवा क्षेत्रों के संपूर्ण विकास का भी खाका खींच कर लोगों को भरमाया गया था मगर हाय री भाजपा सरकार , हर बार की तरह इस बार भी न कोई वादा निभाया गया और न ही किसी घोषणा को अमली जामा पहनाया गया । महबूबा मुफ्ती के साथ गठबंधन सरकार चलाने और राज्यपाल शासन के तहत सरकार चाहती तो काया पलट कर सकती मगर हुआ कुछ नहीं । धारा 370 हटने के बाद तो राह में कोई कांटा भी नहीं बचा था मगर इन तीन सालों में भी सरकार ने तिनका तक नहीं तोड़ा । हां कश्मीरी पंडितों के नाम पर जितनी राजनीति की जा सकती थी , वह की और फिर उन्हें उन्हीं के हाल पर छोड़ दिया । नतीजा अब घाटी के बचे खुचे कश्मीरी पंडित भी पलायन शुरू कर चुके हैं और यदि घाटी के अन्य सवा लाख हिन्दू भी यही फैसला लेते हैं तो यह 1990 से भी बड़ी त्रासदी होगी । क्या दुर्भाग्य ही है कि उस समय की वी पी सिंह सरकार में भी भाजपा सत्ता की भागीदार थी और अब भी वही सत्ता में है । सवाल लखटकिया है कि धारा 370 हटाए जाने का देश , कश्मीर और कश्मीरी पंडितों को क्या फायदा हुआ ? इस बड़े राजनैतिक कदम का कहीं भी कोई लाभ यदि हुआ है तो क्या भाजपा के अतिरिक्त कोई और उसका साझीदार है ?

क्या विडंबना है कि जिन कश्मीरी पंडितों के नाम पर भाजपा ने अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकी , वही अब उसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं । घाटी के सरकारी दफ्तरों में काम कर रहे ये कश्मीरी पंडित साफ कह रहे हैं कि सरकार उनकी सुरक्षा करने में असफल रही है अतः अब हमारा तबादला घाटी से जम्मू क्षेत्र में कर दिया जाए । पता नहीं सरकार के कानों तक उनकी यह आवाज पहुंचेगी कि नहीं । वैसे पता नहीं क्यों मुझे तो लगता है कि कुछ न कुछ तो झूठा सच्चा उसे करना ही पड़ेगा । जम्मू कश्मीर का परिसीमन हो चुका है । किसी भी दिन वहां चुनावों की घोषणा हो सकती है और राज्य में अपनी सरकार और हिंदू मुख्यमंत्री बनाने के अपने इरादे के चलते हवा में ही सही मगर भाजपा को गांठ तो बांधनी ही पड़ेगी । अब बात हवा में गांठ बांधने की ही हो तो भला कौन उसका मुकाबला कर सकता है ।

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