अपनी ही कमर छलनी करती धामी सरकार
रवि अरोड़ा
पिछले दो दिनों से मैं कॉर्बेट नेशनल पार्क में हूं। यहां लगभग ढाई सौ रिसॉर्ट हैं। इनमें से 73 पिछले एक महीने से सील हैं। विगत 18 सितम्बर को ऋषिकेश के एक रिसॉर्ट वनंत्रा की रिसेप्शनिस्ट अंकिता भंडारी की हत्या के बाद प्रदेश भर में हुए बवाल से घबराई राज्य सरकार का नजला पूरे प्रदेश के रिसोर्ट्स पर उतर रहा है। चूंकि हत्या भाजपा नेता के बेटे ने अपने साथियों के साथ मिल कर की थी , इसलिये पुष्कर सिंह धामी की सरकार दबाव में है और गुस्साई राज्य की जनता को संदेश देना चाहती है कि वह न केवल इस मामले को लेकर बेहद गंभीर है अपितु राज्य में पुनः ऐसी कोई वारदात न हो इसके लिए भी संकल्पित है। अपने दामन पर लगे दाग को छुड़ाने के लिए सरकार ने जो चाबुक रिसोर्ट्स पर चलाया है उससे हर सूरत उसी की कमर छलनी होगी।
हालांकि यह तो किसी सरकारी रिकॉर्ड से तस्दीक नहीं हो पा रहा कि उत्तराखंड में कुल कितने रिसॉर्ट, होटल और गेस्ट हाऊस हैं और धामी सरकार की तिरछी नजर के चलते कितनों को सील किया गया है मगर अनुमान है कि जबरन बंद कराए गए रिसोर्ट्स और होटलों की संख्या सैकड़ों में है। जिलेवार उपलब्ध आंकड़ों के अनुरूप राज्य के सभी 34 प्रमुख पर्यटन स्थलों पर सीलिंग की कार्यवाई की गई है। ऊधम सिंह नगर में 73, ऋषिकेश में 36 और नैनीताल में 5 रिसॉर्ट को सील करने की खबरें तो अखबारों में भी प्रमुखता से छपी थीं। राज्य सरकार का कहना है कि सील किए गए रिसॉर्ट बिना अनुमति के चल रहे थे अथवा उनके बाबत एनजीटी की शिकायतें मिली थीं। ऊपरी तौर पर सीलिंग की यह कार्रवाई वाजिब ही जान पड़ती है मगर कुछ रिसॉर्ट संचालकों की मानें तो सरकार ने अपने अफसरों को खाने कमाने का एक और सुनहरा अवसर दे दिया है और मोटा खर्चा पानी लेकर खुद सरकारी आदमी तमाम अनापत्तियां उपलब्ध करा रहे हैं और पूरे राज्य में शायद ही कोई ऐसा रिसॉर्ट होगा जो हमेशा के लिए बंद हो सकेगा । बकौल उनके करोड़ों रूपए निवेश कर कोई जुआ भला क्यों खेलेगा ? सरकार जिस फूड लाइसेंस अथवा फायर की एनओसी के रिन्यू न होने जैसी छोटी मोटी औपचारिकता के नाम पर हमेशा के लिए तो ये बड़े बड़े प्रोजेक्ट बंद नहीं करा सकती। हां इसका यह असर जरूर होगा कि राज्य में नए रिसॉर्ट खुलने बंद हो जाएंगे और प्रदेश को ही इससे राजस्व की हानि होगी।
यह किससे छुपा है कि उत्तराखंड राज्य की माली हालत बेहद नाजुक है और केन्द्र सरकार की योजनाओं और एक्साइज ड्यूटी व जीएसटी से ही उसका गुज़ारा होता है। राज्य की 2 करोड़ 31 लाख की आबादी में से अधिकांश परिवार राज्य से बाहर काम कर रहे अपने लोगों के मनीआर्डर, अपने फौजियों द्वारा भेजे गए वेतन और विभिन्न पेंशनों से ही गुजारा करते हैं। राज्य में उद्योग धंधे न के बराबर हैं जिसका नतीजा है कि गांव के गांव खाली हो रहे हैं और रोजगार के लिए युवा पीढ़ी दूसरे राज्यों में जाकर बस रही है। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार पिछले दस सालों में पांच लाख से अधिक लोग यहां से पलायन कर गए । उधर, पिछले कुछ दशकों में सड़कों का अच्छा जाल बिछ जाने के कारण पर्यटन के व्यवसाय ने जरूर तेजी पकड़ी है। कुदरती खूबसूरती में यूं भी उत्तराखंड का कोई सानी नहीं है। इसी खूबसूरती को देखने लोगबाग देश दुनिया से इतनी बड़ी तादाद में आते हैं कि सीजन में मुंह मांगे दामों पर भी रहने की जगह नहीं मिलती। राज्य सरकार द्वारा चलाए गए ताजा हंटर से यकीनन नए रिसॉर्ट और होटल खुलने में दिक्कत आएगी और इससे सरकार को राजस्व और जनता को रोज़गार से हाथ धोना पड़ेगा ।