अग्निपथ : मूर्खता बनाम महामूर्खता

रवि अरोड़ा
देश में आजकल जो हो रहा है , उसके संकेत अच्छे नहीं हैं । सरकार ने मूर्खता की तो नवयुवक महामूर्खता कर रहे हैं । विरोध जताने को कोई अपना ही घर फूंकता है क्या ? चलो देश का तो जो नुकसान हुआ सो हुआ, इन नवयुवकों के हाथ भी क्या आयेगा ? पहल छात्रों ने की है तो सरकारी तंत्र भी भला कब तक चुप बैठ सकता है । बेशक सरकारी मंशा के तहत दंगाइयों जितनी बेरहम कार्रवाई न हो मगर गिरफ्तारियां और उत्पीड़न तो होना लाजमी है। अजब हालात हैं, लंबे अर्से से देश को जिस नफरत की भट्टी में झौंका जा रहा था उससे तैयार हुआ बारूद ऐसा लक्ष्य हीन होगा यह तो उसके निर्माताओं ने भी नहीं सोचा होगा । उम्मीद कीजिए कि सरकार को अब कुछ अक्ल आ जाए और वह फौज में भर्ती की अपनी इस विनाशक योजना अग्निपथ को वापिस ले ले अथवा उसे इतना लचीला बना दे कि नौजवानों को स्वीकार हो जाए , वरना न जाने अभी और कितनी अशांति और बवाल देखने को हम अभिशप्त होंगे ।

पता नहीं सरकार यह कैसे दावा कर रही है कि उसने लम्बी सलाह मशवरे के बाद यह स्कीम शुरू की है , जबकि सेना के ही अधिकांश पूर्व अफसर इसे विनाशकारी बता रहे हैं । जाहिर है उनसे इस बाबत नहीं पूछा गया । मेजर जनरल गगन दीप बक्शी मोदी सरकार के बड़े हिमायतियों में शुमार होते हैं और न्यूज चैनलों पर छाए रहते हैं , अग्निपथ का जिस तरह से उन्होंने विरोध किया है , उससे उनकी अनभिज्ञता भी स्पष्ट होती है । जनरल वी के सिंह उन चुनिंदा पूर्व सेनाध्यक्षों में शामिल हैं जिनका नाम आम आदमी को आज भी याद है । पिछले आठ सालों से वे मोदी सरकार में महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्री हैं मगर उनके बयान से भी स्पष्ट है कि उसने इस बाबत राय नहीं ली गई । ऐसे में भला वे कौन लोग थे जिनकी राय पर सरकार यह योजना लाई ? क्या केवल शहरों में रहने वाले उन चंद पिट्ठू अफसरों की राय पर जो कभी गांव नहीं गए जहां से सैनिक आते हैं ? क्या केवल उनकी राय पर जिन्होंने कभी कोई युद्ध नहीं लड़ा ? फ़ौज की जरुरत युद्ध काल में ही मूलतः होती है , क्या 1962 , 1965 अथवा 1971 के युद्ध में शामिल किसी आला फौजी से भी इस योजना के इम्पेक्ट के बाबत पूछा गया ?

सबको मालूम है कि पेंशन पर खर्च होने वाली एक बड़ी राशि को बचाने के लिए सरकार यह योजना लाई है मगर क्या यह अच्छा नहीं होता कि यह योजना अन्य सरकारी विभागों से पहले शुरू होती और सबसे आखिर में सेना को लिया जाता ? वैसे क्या ही अच्छा होता कि शुरूआत विधायकों और सांसदों पर खर्च होने वाली बड़ी राशि को बचाने से की जाती ? इन जन प्रतिनिधियों में ऐसा क्या है कि दो दिन के लिए भी सांसद अथवा विधायक बनने पर उन्हे आजीवन पेंशन और तमाम अन्य सुविधाएं मिलती हैं जबकि उनका काम नौकरी की श्रेणी में भी नहीं आता ?

लगता है कि सरकार के सारे सलाहकार भस्मासुर ही हैं जिन्होंने यह तथ्य अपने आकाओं से छुपाया कि अग्निपथ योजना से बेस्ट यूथ अब फ़ौज को नहीं मिलेगा । ऐसा क्यों नहीं होगा कि गांवों की सड़कों पर दौड़ रहा नवयुवक पहले पैरा मिलिट्री की तैयारी करेगा जहां कम से कम पक्की नौकरी की गारंटी तो है ? वहां नम्बर नहीं आया तो अपने राज्य की पुलिस में ही चला जाएगा ताकि अपने घर के निकट रहे । कहीं भी नम्बर नहीं आया तब जाकर वह चार साल के लिए अग्निवीर बनना स्वीकार करेगा । क्या दोयम दर्जे के सैनिकों के हवाले होगी अब देश की सुरक्षा ? हे राम ! भगवान ही मालिक है अब तो इस देश का ।

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