अगला नंबर बांस का ही लगाना

रवि अरोड़ा
प्रदेश की योगी सरकार ने इस बार चैत्र नवरात्र को धूमधाम से मनाने का निर्णय लिया है और हर जिले में रामायण और दुर्गा सप्तशती के पाठ के लिए बकायदा बजट भी जारी कर दिया है। पता नहीं इस खबर को सुन कर आपको कैसा लगा मगर मुझे तो जरा सा भी आश्चर्य नहीं हुआ । राम मंदिर का जारी निर्माण, काशी विश्वनाथ कॉरीडोर, दीपावली पर अयोध्या में लाखों दीये और कांवड़ियों पर हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा जैसे कार्यों की अगली कड़ी कुछ ऐसी ही तो होनी थी। अनुमान ही लगाया जा सकता है कि भाजपा के तरकश में अभी और कौन कौन से तीर हैं और आने वाले चार सालों में और क्या क्या ये लोग करेंगे। देश में जिस तरह की राजनीति का आजकल वर्चस्व है, उसमें ऐसे किसी क्रियाकलाप का विरोध भी अब अपेक्षित नहीं रहा मगर फिर भी सवाल तो बनता ही है कि क्या देश का संविधान चुनी हुई सरकारों को इस तरह के आयोजन करने की अनुमति देता है ? हो सकता है कि आप कहें कि कांग्रेस और अन्य पार्टियों ने भी तो सत्तर साल तक मुस्लिमों का तुष्टिकरण किया है और अब भाजपा यह कर रही है तो इसमें हर्ज क्या है ? यदि सचमुच आपका यही खयाल है तो यकीन मानिए कि आप भाजपा के हितैषी नहीं हैं और उसका हश्र भी कांग्रेस जैसा ही चाहते हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत का पूरा इतिहास ही धर्म और सत्ता के घालमेल पर टिका है। पौराणिक दंत कथाओं में ही नहीं उपलब्ध इतिहास के हर काल खंड में भी यही सब कुछ हुआ है। ईसा पूर्व सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए क्या कुछ नहीं किया और फिर उनके पौत्र बृहद्रथ की धोखे से हत्या कर सत्ता कब्जाने वाले पुष्पमित्र शुंग ने वैदिक धर्म को बढ़ाने के लिए निर्ममता पूर्वक बौद्धों का सर्वनाश किया । दक्षिण के राजा महाराजा हों या उत्तर के राजपूत और मराठा शासक, सभी धर्म की गोद में बैठे नजर आते हैं । बाद में गुलाम वंश, खिलजी, तुगलक, लोदी और मुगल शासकों ने भी इसी नीति को अपनाया । एक धर्म का समर्थन और दूसरे का दमन। हालांकि अकबर जैसे इक्का दुक्का धर्म निरपेक्ष शासक भी आए मगर उनकी गिनती बेहद कम है । अंग्रेज तो खैर फूट करो और राज करो कि नीति के साथ ही भारत आए थे और हमें लड़ाते रहे । देश आजाद हुआ और हमने अपना नया संविधान बना लिया । हमने तय किया कि हम पंथ निरपेक्ष होंगे और भारत का कोई अधिकारिक धर्म अथवा पंथ नहीं होगा । मगर अफसोस कि हम एक दिन के लिए भी अपने संविधान के अनुरूप नहीं चले । तमाम प्रधान मंत्रियों द्वारा मंदिरों और मजारों की ड्योयियो पर शीश नवाने से शुरू हुई बात शाहबानो केस तक आ कर ही रुकी, जब राजीव गांधी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही उलट दिया । मुस्लिम तुष्टिकरण को क्षेत्रीय पार्टियां तो उनसे भी आगे बढ़ गईं और हर वह कार्य हुआ जिससे बचने की हिदायत संविधान बार बार देता है। उत्तर प्रदेश समेत अनेक राज्यों में सरकारी खर्च पर अनगिनत हज हाउस बने और हर साल इफ्तार पार्टियां हुईं। अब योगी जी भी वही सब कर रहे हैं। पुराने लोग मुस्लिमों को सहला रहे थे तो नए वाले हिन्दुओं को बहला रहे हैं। कीजिए योगी जी आप भी जो मन में आए कीजिए मगर कम से कम इतना तो बता दीजिए कि क्या आप भी एक धर्म निरपेक्ष गणराज्य में यह सब जायज मानते हैं ? क्या धर्म और राज्य के बीच एक सैद्धांतिक दूरी का संविधान का मूल विचार आपके लिए भी कोई मायने नहीं रखता ? अब ऐसे सवालों पर आप भी यदि पुराने लोगों के क्रियाकलाप गिनवाना चाहते हैं तो कृपया एक काम कीजिए । अगली बार संविधान ही बदलवा दीजिएगा। न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।

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