अंटी में क्या है
रवि अरोड़ा
चुनाव की बेला है । प्रत्याशी धड़ाधड़ नामांकन दाखिल कर रहे हैं । कई चरणों में चुनाव होने हैं सो यह क्रम अभी लंबा चलेगा । परंपरा ही कुछ ऐसी है नामांकन दाखिल होते ही अखबार प्रत्याशी की घोषित जन्मकुंडली छापते हैं । किसके पास कितनी चल अचल संपत्ति , कितने मुकदमे, शिक्षा और कौन कौन सी गाड़ी है वगैरह वगैरह । इस वैगरह वगैरह के क्रम में यह भी लिखा होता है कि प्रत्याशी के पास कौन कौन से हथियार हैं । पता नहीं क्या गंदी आदत है कि मेरा ध्यान हथियार वाली बात पर सबसे पहले जाता है । दरअसल मुझे लगता है कि बाकी तमाम घोषणाओं में तो हेर फेर होगा मगर यह इकलौती ऐसी बात है जिसमे कोई लाग लपेट नहीं हो सकती । जैसे बेनामी संपत्ति का लेखा जोखा कोई ढूंढ नहीं सकता । माल मत्ता कितना दिखाना है यह प्रत्याशी से अधिक उसके चार्टेड एकाउंटेंट की काबिलियत पर निर्भर करता है । शिक्षा वाले कॉलम में तो राष्ट्रीय स्तर के नेता भी झोल कर लेते हैं । मुकदमों की संख्या भी फाइनल रिपोर्ट लगवा कर कम की जा सकती है । ले देकर हथियार ही ऐसा कॉलम है जिसमें चाह कर भी कोई प्रत्याशी झूठी घोषणा नहीं कर सकता । हां हथियार अवैध हो तो बात अलग है ।
मेरे शहर समेत पहले राउंड की तमाम विधान सभा सीटों पर नामांकन हो चुका है । अपनी बुरी आदत के अनुरूप इसबार भी मेरा ध्यान केवल इसी बात पर है कि किस प्रत्याशी के पास कौन सा हथियार है ? वैसे थोड़ी हैरानी भी होती है कि राजनीति तो सेवा कार्य है फिर इसमें ऐसा कौन सा जान का खतरा है कि हमारे नेताओं को हथियार रखना पड़ जाता है ? यूं भी तो गांधी जयंती और दूसरे तमाम राष्ट्रीय उत्सवों में ये नेता हमें अहिंसा का पाठ पढ़ाते रहते हैं , फिर हिंसा के इस औजार की उन्हें क्या जरूरत है ? अब तक मैं सैकड़ों प्रत्याशियों का चुनाव अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत बायोडाटा खंगाल चुका हूं , अधिकांश के पास पिस्टल, रिवाल्वर, दोनाली अथवा राइफल मौजूद है । अच्छी खासी भली सूरत वाले प्रत्याशियों के पास भी गन है । उनके पास भी है जिनके पास कोई माल असबाब भी नहीं है । पता नहीं क्या लुटने का खतरा उन्हें है ? और तो और महिला प्रत्याशियों के पास भी हथियार है । मुख्यमंत्री , पूर्व मुख्यमंत्री स्तर के ऐसा नेता भी हथियार लिए बैठे हैं जिनकी सुरक्षा में पूरा अमला दिन भर लगा रहता है । अहिंसा का राग अलापने वाले देश का यह हाल है । कमाल है , कैसे लोग आ गए हैं राजनीति में ?
बेशक प्रदेश में मात्र प्वाइंट 63 फीसदी लोगो को हथियार का लाइसेंस मिला हुआ है । मगर यहां के बाशिंदों के सिर हथियार का भूत ही सवार है । हर जिले में असला बाबू की औकात कलक्टर जैसी है । जिनके पास लाइसेंस है अथवा जिन्होंने इसके लिए आवेदन किया हुआ है, उन्हें पता है कि सामान्य आदमी की जूतियां घिस जाती हैं एक अदद लाइसेंस बनवाने में । सारे नियम कानूनों का पालन करने के बावजूद यह जिलाधिकारी के मूड पर निर्भर करता है कि आपको लाइसेंस मिलेगा अथवा नहीं । अधिकांश नेता भी बताते हैं कि उनके पास आने वाली आधी सिफारिशें हथियार के लाइसेंस की ही होती हैं । पूरे प्रदेश में हथियार का ऐसा क्रेज है कि देश भर में सर्वाधिक हथियार इसी सूबे में हैं । कई जिले तो ऐसे हैं कि बंदे के पांव में जूता हो अथवा नहीं , मगर कंधे पर बंदूक जरूर होगी । अब ऐसी आबोहवा हो तो नेता जी पहले अपना लाइसेंस ही तो बनवाएंगे । गण तंत्र दिवस आ रहा है । इस बार भी हम शहर शहर गली गली शांति, अहिंसा , प्रेम और सद्भावना पर छोटे बड़े नेताओं के भाषण सुनेंगे । यदि मन करे तो आप भी इसबार मेरी तरह नेता जी की अंटी पर ध्यान देना और पता करने की कोशिश करना कि उनकी पेंट में रिवाल्वर है या पिस्टल ?