इतिहास

इतिहास मुझे डराता है
इससे भी अधिक डराता है मुझे
ख़ुद इतिहास हो जाना
तमाम सुख लुभाते हैं
यूँ ही चुपके से फ़ना होने के
गुमनामी की हैं
तमाम सिफ़तें

अनंत में बेचैन तो रहते होंगे
सभी इतिहास पुरुष
कैसे देते होंगे
उठे सभी सवालों के जवाब
कैसे मोड़ते होंगे
उठी उँगलियों के रूख
टोलियों में बँटे हैं लोग
कोई ज़िंदाबाद वाला
तो कोई मुर्दाबादी
कोई भी तो बरी नहीं
कोई भी तो छूटा नहीं

क़ुदरत क्रूर दिखती है
मगर है प्रेममयी
मार कर भी
कर देती है अमर
इंसान प्रेममयी दिखता है
मगर है बड़ा क्रूर
बख़्शता नहीं अपने पूर्वजों को भी
मार देता है अमर को भी

लीजिए
अपने निकम्मे होने का
ढूँढ लिया है मैंने एक और बहाना
मैं नहीं करूँगा एसा कुछ
जो ले जाए मुझे इतिहास में
जीते जी तो झेल लूँ
थुक्का फ़ज़ीहत
अनंत से कैसे दूँगा जवाब
क्या करूँ
मुझे लगता जो है
इतिहास से डर

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