अतीत
बच्चे अक्सर नाराज़ हो जाते हैं
माँ-बाप से
आख़िर एसे क्यों हैं माता-पिता
क्यों हैं
कुछ अधिक ही दोस्ताना
डाँटते क्यों नहीं उन्हें
कोसते क्यों नहीं
उसके आलस्य पर
प्रोत्साहित क्यों नहीं करते
कुछ कर गुज़रने को
पुरानी पीढ़ी ही बिगाड़ रही है
नौजवानों को
उलाहना देते हैं बच्चे अक्सर
जीवन में असफल हुए
तो माँ-बाप ही होंगे
उसका कारण
घोषणा ही कर देते हैं
कभी कभी
माँ-बाप क्या करें
चाह कर भी डाँट नहीं पाते
अपने बच्चों को
प्रोत्साहन के नाम पर
नहीं मार पाते ताने
सोते को उठाते नहीं
जागते को दौड़ाते नहीं
बच्चों से सहमत हैं अभिभावक
मगर बेबस हैं
उससे चिपटा है
उनका अतीत
उनका संघर्ष
भूखे पेट की अंधी दौड़
पूँछ में लगी आग
पूरी कूद फाँद
इधर से उधर
बंद दरवाज़ों की ख़ामोशी
एक द्वार से दूसरे द्वार
ना दिन दिन थे
ना रात थी रात
पेट की लड़ाई ने
शुरू ही नहीं करने दिया
कोई और युद्ध
आज का दिन कटे
कल की कल देखेंगे
इसी भाव में गुज़र गई पूरी पीढ़ी
ख़ौफ़नाक लगता है
माँ-बाप को अपना अतीत
उससे मुक्त होना चाहते हैं
वह लोग
बदलना भी चाहते हैं उसे
भरी दुपहर में सोते बच्चों को
शायद इसलिए ही नहीं उठाते वे
कहीं खो गई जवानी की अपनी नींद
बच्चों की नींद में खोजते हैं
सफ़ेद पके बाल
बच्चे नाराज़ होते हैं
माँ-बाप ख़ुश होते रहते हैं
बदलते रहते हैं
अपना अतीत