कौन बनेगा चुनाव बाद भाजपा का चेहरा
उमाकांत लखेड़ा/ रवि अरोड़ा
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी लगभग यह मान चुका है कि अगले चुनावों में भाजपा को उतनी लोकसभा सीटें नहीं मिलने जा रही हैं जितनी उसे 2014 में मिली थी। इसीलिए संघ इस पर विचार कर रहा है कि चुनाव बाद की वैसी स्थिति में किसे भाजपा का चेहरा बनाया जाए। ऐसे में, तीन नामों पर विचार चल रहा है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी इनमें सबसे आगे हैं।
संघ के मुखपत्र आॅर्गनाइजर ने अपने एक लेख में त्रिशंकु लोकसभा की संभावना जताई है। इस तरह की चर्चा के जोर पकड़ने की वजह यह भी है। वैसे भी, मोदी की जगह कौन की बात पिछले छह-सात महीने से जोर पकड़ने लगी है। इसके पीछे संघ के तीन अलग-अलग धड़े हैं। और निश्चित तौर पर इन तीनों ही धड़ों के साथ भाजपा के कुछ नेता हैं।
संघ में केंद्रीय स्तर पर काम कर रहे एक पदाधिकारी का कहना है कि मोदी को केंद्रीय स्तर पर बहुत सोच-समझकर उतारा गया था। हम अब भी यह मानते हैं कि हिन्दुत्व को इस तरह पेश किया जाना चाहिए कि वह विकास के साथ कदमताल करने वाला लगे। इस बार के आॅर्गनाइजर में भी यह बात इस तरह से ही की गई हैः द रीयल चैलेंज फाॅर द बीजेपी इज हाउ टु प्रेजेंट द डेवलपमेंट एंड हिन्दुत्वा एज कंप्लीमेंट्री टु ईच अदर अंडर द लीडरशिप आॅफ मोदी (भाजपा के लिए असली चुनौती यह प्रस्तुत करना ही है कि मोदी के नेतृत्व में विकास और हिन्दुत्व किस तरह एक-दूसरे के पूरक हैं)। लेकिन संघ के इस पदाधिकारी ने यह भी कहा कि पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम से उनलोगों में भी यह आशंका है कि विपक्ष झूठी बातें फैलाकर किसी भी तरह मोदी को बहुमत नहीं आने देने की पुरजोर कोशिश करेगा।
ऐसे में तीन लोगों पर संघ की निगाह है। स्वाभाविक है कि इनमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम भी है। संघ का कट्टर खेमा इन्हें ही आगे बढ़ाना चाहता है। लेकिन इसे ज्यादा वकत नहीं मिल पा रही है क्योंकि कोई भी सहयोगी दल कट्टर हिन्दुत्ववादी नेता को पसंद नहीं कर सकता। योगी की छवि सिर्फ धार्मिक-राजनीतिक नेता की है और इसे भाजपा के काफी सारे लोग भी पसंद नहीं करते। फिर, योगी की दावेदारी तब ही मजबूत बनेगी, अगर यूपी में लोकसभा चुनावों में भाजपा की सीटें इतनी आएं कि वह सहयोगी दलों के साथ बहुमत तक पहुंचने को है। पिछले चुनावों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने यूपी में 80 में से 73 सीटें जीती थीं। हालांकि बाद में हुए उपचुनावों में उसे तीन सीटें गंवानी पड़ी थी। अगले लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा की सीटें कम होनी ही हैं। इस हालत में योगी की प्रधानमंत्री-पद की दावेदारी संभव नहीं दिखती।
एक अन्य खेमा केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को आगे करने के पक्ष में हैं। हाल में उन्होंने राममंदिर बनाने के पक्ष में जिस तरह बयान दिया है, उसके पीछे भी लोग यही कारण मान रहे हैं। अभी दिसंबर के अंतिम सप्ताह में भाजपा संसदीय दल की बैठक में जब उत्तर प्रदेश में घोसी से सांसद हरि नारायण राजभर ने मंदिर निर्माण की मांग की तो राजनाथ ने ही ’थोड़ा इंतजार करें’ वाली बात कही। उस वक्त इस बैठक में मोदी और शाह- दोनों में से कोई नहीं थे। ऐसा आम तौर पर होता नहीं। इससे पहले भी राजनाथ ने हाल में और एकबार सार्वजनिक तौर पर मंदिर के पक्ष में बात कही है। यूं भी राजनाथ संघ के करीबी माने जाते रहे हैं। उन्हें दो बार भाजपा अध्यक्ष बनाया गया। वह 2005 से 2009 तक और फिर, 2013 से 2014 तक इस पद पर रहे। दोनों ही बार संघ से निकटता की वजह से ही यह पद उन्हें मिला। परंतु यूपी में भाजपा की स्थिति ठीक नहीं होने के कारण राजनाथ सिंह के लिए भी मोदी की जगह लेना संभव नहीं दिख रहा है।
लेेकिन माना जा रहा है कि मोदी के विकल्प के तौर पर सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का नाम अभी सबसे ऊपर है। यह मानने की भी वजहें हैं कि वह संघ के इशारे पर ही भाजपा नेतृत्व पर रह-रहकर वार कर रहे हैं। वह महाराष्ट्र के हैं और संघ में वैसे भी महाराष्ट्र की लाॅबी मजबूत है। इस लाॅबी की वजह से ही गडकरी 2010 में भाजपा अध्यक्ष बनाए गए थे। बाद में पूर्ति कंपनियों में कुछ वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों की वजह से उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा था। तब भी यह कहा गया था कि भाजपा के ही कुछ नेताओं ने इसके लिए षडयंत्र किया था। उस गुट में मोदी का नाम भी शामिल था।
वैसे, सार्वजनिक तौर पर गडकरी एकाधिक अवसरों पर मोदी-शाह को लेकर ऐसी टिप्पणी कर चुके हैं जिससे समझ में आता है कि उनकी पीठ पर किसका हाथ है। वैसे तो, गडकरी ने हर अवसर पर सार्वजनिक तौर पर कहा है कि वह 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं। फिर भी, स्वर्गीय वसंत राव नाइक कृषि स्वावलंबन मिशन के अध्यक्ष किशोर तिवारी ने जिस तरह संघ प्रमुख को पत्र लिखकर मोदी की बजाय गडकरी को प्रधानमंत्री-पद का दावेदार घोषित करने की मांग की है, उसके अपने निहितार्थ हो सकते हैं। हालांकि गडकरी ने फिर कहा है कि इसका कोई चांस नहीं और वह जहां हैं, वहीं खुश हैं।
गडकरी के कई दलों के नेताओं से अच्छे रिश्ते हैं। उनसे मुलाकात करने वालों में विपक्षी पार्टियों के सांसदों और नेताओं की अच्छी-खासी संख्या रहती है। गडकरी के एक करीबी कार्यकर्ता का कहना है, ’साहब किसी को भी विपक्षी पार्टी के सांसद को अपने दरवाजे से खाली हाथ नहीं लौटाते।’ एक विपक्षी सांसद का भी मानना है कि ’जब भी हम जैसे सांसद अपने क्षेत्र की राष्ट्रीय राजमार्ग संबंधी जनसमस्याओं और सुझावों को लेकर गडकरी से मिले, हमारी समस्या तत्काल निपटा दी गई। भले ही गडकरी भाजपा के हों, उन्होंने हमेशा हमें पूरी तवज्जो दी।’ वैसे भी, गडकरी स्वयं उद्योगपति रहे हैं और इस वजह से काॅरपोरेट लाॅबी में भी सक्रिय हैं। उन्हें जब-तब संघ मुख्यालय आते-जाते देखा जा सकता है, यह भी सच है। ऐसे में, यह मानना गलत भी नहीं है कि संघ उन्हें आगे करने को सोच सकता है।