हार की जीत का रिमेक

रवि अरोड़ा


बचपन में स्कूली कोर्स में थी एक कहानी- हार की जीत । इस कहानी पर कई वीडियो फ़िल्में भी बाद में बनीं । कहानी शायद आपको भी याद हो कि कैसे बाबा भारती के पास एक सुंदर घोड़ा था-सुल्तान । इलाक़े के मशहूर डाकू खड़क सिंह का सुल्तान पर दिल आ गया और एक दिन जब बाबा भारती सुल्तान पर सवार होकर कही जा रहे थे तभी रास्ते में उन्हें एक अपाहिज मिला और उसने बाबा से अनुरोध किया कि मुझे वैद्य के पास ले चले । बाबा अपाहिज को घोड़े पर सवार कर पैदल ही साथ साथ चलने लगते हैं और तभी अपाहिज घोड़े को भगा ले जाता है । दरअसल अपाहिज और कोई नहीं वरन ख़ुद डाकू खड़क सिंह था और उसने ही चालाकी से बाबा से घोड़ा छीन लिया था । घोड़े पर सवार खड़क सिंह से बाबा अनुरोध करते हैं कि इस वारदात के बारे में किसी को नहीं बताये । यदि लोगों को इसका पता चला तो भविष्य में लोग दीन-दुखियों की मदद नहीं करेंगे । बाबा की बात सुन कर खड़क सिंह की आत्मा उसे कचोटती है और एक रात वह चुपके से बाबा के घर के बाहर सुल्तान को बाँध कर चला जाता है ।

गांधीवादी दर्शन से प्रभावित होकर लिखी गई सुदर्शन की यह ख़ूबसूरत कहानी करोड़ों लोगों की स्मृतियों में आज भी है । यही कहानी हाल ही में दिल्ली के मालवीय नगर में फिर लिखी गई और इस बार इसके पात्र काल्पनिक नहीं असली थे । बेशक इस कहानी का अंत सुखद और मन को राहत देने वाला नहीं है मगर संदेश इसका भी कुछ एसा ही है कि इन हालात में कोई बाबा किस तरह से किसी ज़रूरतमंद की मदद करेगा ? हाँ इस बार एक परिवर्तन ज़रूर है कि इस ताज़ा कहानी में घोड़ा छीनने वाला ख़ुद बाबा है और पीड़ित है खड़क सिंह समझा जाने वाला एक शख़्स ।

दरअसल पिछले महीने एक फ़ूड ब्लागर गौरव वासन ने बाबा का ढाबा के नाम से ढाबा चलाने वाले एक अस्सी वर्षीय बूढ़े कांता प्रसाद और उसकी बीवी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया था । इस मार्मिक वीडियो में गौरव ने दर्शाया था कि कोरोना महामारी की वजह से इस बूढ़े की रोज़ाना की बिक्री दो-तीन सौ रुपये पर सिमट गई है और इस बूढ़े दम्पति की हालत आजकल बेहद दयनीय हो गई है । वीडियो में अपील की गई थी कि वृद्ध दम्पति की लोग आर्थिक मदद करें । इस वीडियो का ज़बरदस्त असर हुआ और पब्लिक बाबा का ढाबा पर टूट पड़ी। कोरोना संकट के बावजूद बाबा की प्रतिदिन की बिक्री दस हज़ार तक पहुँच गई और लोगबाग़ आर्थिक मदद को बाबा, गौरव और गौरव की पत्नी के बैंक खातों में पैसा ट्रांसफ़र करने लगे । इस आकर्षक कहानी में दुखद मोड़ 31 अक्टूबर को तब आया जब बूढ़े कांता प्रसाद ने दिल्ली मालवीय नगर थाने में गौरव वासन के ख़िलाफ़ धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज कराई । कांता प्रसाद का आरोप था कि लोगों ने उसकी मदद के लिये जितने पैसे गौरव के खाते में भेजे वे पूरे उन्हें गौरव ने नहीं दिये । कांता प्रसाद के अनुसार लगभग चार लाख रुपये आये मगर उन्हें केवल ढाई लाख ही मिले । इस आरोप के जवाब में गौरव ने अपने और अपनी पत्नी के बैंक खातों की स्टेटमेंट जारी कर दी । इस स्टेटमेंट के जारी होने पर अब बूढ़े की थुक्का-फ़ज़ीहत शुरू हो गई है । लोगबाग़ बूढ़े को लालची और न जाने क्या क्या कह रहे हैं । लोगबाग़ यही सवाल एक दूसरे से कर रहे हैं कि क्या वाक़ई अब भलाई का ज़माना नहीं रहा ? नेकी कर दरिया में डाल तक तो ठीक है मगर ख़ुद कीचड़ में गिरना पड़े तो नेकी करना भी कहाँ तक जायज़ होगा ?

कोरोना काल में लाखों-करोड़ों लोगों ने देश-दुनिया में एक दूसरे की बढ़-चढ़ कर मदद की है । यह क्रम कमोवेश अभी भी जारी है । संकट में एक दूसरे का हाथ थामने की लाखों कहानियाँ हमारे आसपास बिखरी पड़ी हैं । मगर बाबा का ढाबा जैसी दुखांत कहानियाँ मुँह का ज़ायक़ा ख़राब करती हैं । चलिये भूलते हैं इस बाबा कांता प्रसाद को और अपने पुराने बाबा भारती को ही याद रखते हैं ।

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