हमारे पुलवामा

रवि अरोड़ा

शनिवार की शाम को मेरठ से लौट रहा था । पुलवामा में 46 जवानों की शहादत को लेकर निकाले जा रहे अनेक जुलूस रास्ते में मिले । हाथों में तिरंगा और स्लोगन वाली तख़्तियाँ लिए अधिकांश ये लोग किसी दल , संघटन अथवा किसी ख़ास संस्था के नहीं थे । न ही इन्हें किसी ने बुलाया था । लोगबाग स्वतफूर्त ही इन जुलूसों में आ मिले थे । घर आकर टीवी खोला तो पता चला कि देश भर में आज एसे ही शांति मार्च निकले । परिजनों ने बताया कि मेरे अपने शहर में भी जगह जगह जुलूस निकाले गए और लोगों ने शहीदों की स्मृति में मोमबत्तियाँ जलाईं । दिन भर में जिससे भी बात हुई , वही गमगीन दिखा । लोगों की आँखें नम दिखीं और शहीदों के परिजनों के प्रति उनके शब्द भीगे भीगे से थे । मैं अपने मन की कहूँ तो मैं गमगीन से ज़्यादा आक्रोशित हूँ । मेरे आक्रोश का रूख चाह कर भी टीवी पर बहस करने वाले अथवा अख़बारों में लम्बे चौड़े बयान देने वाले कथित विद्वान अपनी मनमाफ़िक़ दिशा में मोड़ नहीं पा रहे । मेरे आक्रोश में सवालों का अंबार है और लाख प्रयासों के बावजूद में सतही राष्ट्र्भक्ति की ओट में उन्हें मैं छुपा नहीं पा रहा । सच कहूँ तो यह गमगीन होने से अधिक सवाल पूछने का समय ही है ताकि हर साल छः महीने बाद हमें फिर से यूँ गमगीन ना होना पड़े ।

ख़बरें आ रही हैं कि हाल ही में आठ फ़रवरी और फिर बारह फ़रवरी में यह ख़ुफ़िया जानकारी सुरक्षा बलों को दे दी गई थी कि डिप्लायमेंट यानि आवागमन के समय कश्मीर में जवानों पर आरडीएक्स से हमला हो सकता है । बाक़ायदा पुलवामा जैसा सीरिया का एक विडियो भी जारी किया था कि इस प्रकार जवानों के वाहन से विस्फोटक भरी गाड़ी टकराई जा सकती है । फिर भी रास्ता साफ़ किए बिना दिन दहाड़े ढाई हज़ार जवान कैसे बसों में लाद कर भेज दिए गए ? बर्फ़बारी के चलते एक सप्ताह से जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग बंद था । सीआरपीएफ की तरह से एयरलिफ़्ट की माँग लगातार की जा रही थी और कश्मीर जाने वाले जवानों की संख्या भी बढ़ती जा रही थी । एसे में आख़िर केंद्र ने क्यों ख़तरे को दरकिनार कर इतनी भारी संख्या में जवानों को बसों से कश्मीर एक साथ भेज दिया ? कैसे इतना अधिक विस्फोटक लेकर एक कार राजमार्ग पर दौड़ रही थी ? कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य में राजमार्ग पर एसा कैसे सम्भव हुआ ? नेताओं की कार निकालने के लिए आम शहरों में ट्रेफ़िक रोक दिया जाता है , कश्मीर जैसे राज्य में सेना के बड़े मूवमेंट के समय एसा क्यों ज़रूरी नहीं समझा गया ? बड़ा सवाल यह भी है कि इतनी बड़ी संख्या में जवानों के मूवमेंट की ख़बर कैसे लीक हुई ? क्या यह कोई बड़ा षड्यंत्र तो नहीं ?

अब हम गला फाड़ फाड़ कर शहीद शहीद कह रहे हैं । क्या हम सरकार से पूछने कष्ट करेंगे कि पुलवामा के इन जवानों को क्या शहीद का दर्जा वह देगी ? भाषणों और लफ़्फ़ाज़ी के लिए बेशक हम शहीद शब्द इस्तेमाल करें मगर सरकार स्वयं संसद में स्वीकार कर चुकी है कि आज़ादी के सत्तर सालों बाद भी देश में शहीद शब्द की कोई परिभाषा तय नहीं है । नियमानुसार केवल ड्यूटी के समय हुई मृत्यु का लाभ ही इन जवानों के परिजनों को मिलेगा ।

आख़िर सत्तर सालों बाद भी हम सीआरपीएफ और बीएसएफ जैसे अपने अर्धसैनिक बलों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों कर रहे हैं ? जबकि सेना के बाइस हज़ार के मुक़ाबले अर्धसेना के बत्तीस हज़ार जवान आज़ादी के बाद अबतक वीरगति को प्राप्त हुए हैं । क्यों सेना पर सवा लाख करोड़ और अर्धसेना की नौ इकाइयों पर मात्र 38 हज़ार करोड़ सालाना ख़र्च किए जा रहे हैं जबकि देश में आतंकियों , नक्सलियों और दंगाइयों का मुक़ाबला इन बलों के ये दस लाख जवान ही करते हैं और अपनी जान गँवाते हैं ? कैसे सीआरपीएफ और बीएसएफ के जवानों के वे वीडियो वायरल हो जाते हैं कि उन्हें ढंग का खाना भी नहीं मिलता ? सेना जैसी सुविधाएँ और भत्ते अर्धसैनिक बलों को देने में आख़िर एसी क्या अड़चन है ?

आज सारा मुल्क पाकिस्तान को गाली दे रहा है । मैं शायद सबसे ज़्यादा दे रहा हूँ मगर मैं साथ ही साथ अपनी सरकारों और नेताओं को भी गरिया रहा हूँ कि सत्तर सालों में भी हम इस आस्तीन के सांप का इलाज ढंग से क्यों नहीं कर सके ? मुंबई , पठानकोट , उरी और पुलवामा ही नहीं हम अपनी संसद और विधान सभा तक पर उसके हमले झेल चुके हैं । आख़िर क्यों नहीं हम सिंधु जल संधि रद्द कर पाकिस्तान को रातों रात सीधा कर देते ? बेशक प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा इस हमले के बाद दिया गया आश्वासन अब कुछ उम्मीद जगाता है मगर इतना तो तय है कि यदि इस बार भी मोदी जी का वादा हवाई निकला तो आगामी लोकसभा में मोदी जी कोई वादा करने की स्तिथि में भी नहीं होंगे ।

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