संघ प्रमुख के नाम
रवि अरोड़ा
आदरणीय मोहन भागवत जी ,
सादर नमस्कार
दिल्ली विज्ञान भवन में आयोजित आपकी तीन दिवसीय महत्वपूर्ण व्याख्यानमाला ‘ भविष्य का भारत – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण ‘ में एक श्रोता के रूप में भाग लेने का अवसर मिला । हालाँकि इससे पूर्व भी संघ के अनेक कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग कर चुका हूँ मगर एसा पहली बार हुआ कि संघ की सोच के बाबत संघ प्रमुख के मुख से ही विस्तार से सुना । तन्मयता से कई घंटे लगातार आपके सम्मुख बैठकर मैं अभिभूत भी हूँ । दरअसल मेरे सपनों का भारत आपके द्वारा कल्पित भारत से बहुत मिलता है अतः अब ईश्वर से प्रार्थना कर रहा हूँ कि हमारा देश सचमुच आपकी सोच के अनुरूप ही हो जाए । भारत एक एसा देश बन जाए जहाँ ऊँच-नीच का बंधन न हो । जहाँ धर्म के आधार पर किसी से भी भेदभाव न हो । जहाँ सबको समान अवसर मिलें और सभी नागरिक समान रूप से राष्ट्र निर्माण में अपनी महती भूमिका निभायें । यही सब तो आपने इन तीन दिनो में कहा ।
भागवत जी मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं है कि मेरे हृदय में संघ को लेकर जमी बर्फ़ आज कुछ पिघली है और कुछ पूर्वग्रह भी विस्मृत हुए हैं । वैसे संघ द्वारा सेवा के कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने और आपदा के समय सबसे पहले पहुँचने का भी मैं शुरू से क़ायल रहा हूँ और एसे मामलों में उसे देश में अग्रणी ही पाता हूँ । व्याख्यानमाला में हालाँकि आपने पूछे गए सभी सवालों का जवाब दिया मगर मेरे मन के सवाल तो मन में ही रह गए । ज़ाहिर है कि सवालों के रेले में मुझ जैसे साधारण आदमी के सवाल आप तक पहुँचे ही नहीं होंगे सो यहाँ खुले पत्र में उन्हें पूछने की धृष्टता कर रहा हूँ ।
सबसे पहला सवाल तो मेरे मन में यही आता है कि आपने आज जो भी कहा क्या वही संघ है अथवा यह सह्रदयता का कोई मुखौटा था जो संघ ने लगा रखा है । राम मंदिर आंदोलन और उसके बाद हुए तमाम दंगे मैं भूल नहीं पाता । आज जब आप कह रहे थे कि मुस्लिमों के बिना भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती तब मैं हैरानी से आपको देख रहा था कि यह संघ है तो वह क्या था जिसे तमाम हिंदू-मुस्लिम दंगों में दुनिया देखती है ? किसी से बैर नहीं है तो विजयदशमी पर आप हथियारों की पूजा क्यों करते हैं ? शाखा में स्वयंसेवकों को लाठी चलाना क्यों सिखाते हैं ?
आप आज कह रहे थे कि ऊँची और नीची जातियों में रोटी बेटी का सम्बंध हो मगर वे भी तो आपके ही लोग हैं जो चमड़े का काम करने वालों को पीट पीट कर मार रहे हैं । मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि मुस्लिमों के प्रति आपका प्यार सच्चा है तो लव जेहाद और गौ रक्षा के नाम पर भगवा ब्रिगेड के लोग मुस्लिमों को क्यों मार रहे हैं ? दलितों के प्रति आपका प्यार आज बार बार उमड़ रहा था मगर आपने उस मनुस्मृति अथवा मनुवाद की एक बार भी निंदा नहीं कि जो दलितों की हालत के लिए ज़िम्मेदार है और जिसे देश का संविधान बनाने की वकालत आपके लोगों ने की थी । हालाँकि आपने दावा किया कि संघ महिलाओं को बराबरी का दर्जा देता है और उनके लिए सेविका संघ भी बना रखा है । मगर क्या यह काफ़ी है ? हो सकता है कि संघ के गठन के समय वर्ष 1925 के हिसाब से यह उचित रहा होगा मगर क्या आज के दौर में महिलाओं को दोयम दर्जे तक सीमित रखना किसी के गले उतरेगा ? आपके कार्यकाल में ही स्वयंसेवक नेकर छोड़ कर पेंट पहनने लगे तब एक परिवर्तन और क्यों नहीं ? क्यों नहीं भविष्य में किसी महिला के सर संघचालक के पद तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करते ? महोदय एक दौर में संघ जातिगत उपनामों के प्रयोग को ठीक नहीं मानती थी । जातियां तोड़ने को यह महत्वपूर्ण क़दम भी था मगर अब इस योजना को ठंडे बस्ते में क्यों डाल दिया गया ? संघ के भैयाजी जोशी इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं । क्या संघ ने इस विषय में अपनी हार स्वीकार कर ली है ? संघ में ऊँची जातियों और महाराष्ट्र के लोगों के दबदबे जैसे सवाल भी हैं मगर मैं तो आज यह जानना चाहता हूँ कि बक़ौल आपके संघ का राजनीति से कोई लेना देना नहीं है , फिर केंद्र की भाजपानीत सरकार को उसके हर ग़लत कार्य में भी संघ का समर्थन क्यों मिलता है ?
भागवत जी आपकी बातें बहुत अच्छी थीं मगर समाज में सक्रिय आम संघियों के विचार आपसे अलग क्यों हैं ? वैसे मैं जानता हूँ कि किसी भी विचारधारा के अपने ख़तरे होते हैं । वामपंथ का हश्र दुनिया देख ही चुकी है । आपकी विचारधारा भी नीचे आते आते शायद दिग्भ्रमित हो जाती होगी और यही कारण रहा होगा कि एक पूर्व स्वयंसेवक महात्मा गांधी की हत्या कर बैठता है । आदरणीय मैं जानता हूँ कि मेरे सवाल आप तक नहीं पहुँचेंगे और मैं उनके उत्तर भी नहीं पा सकूँगा मगर महोदय मुझ जैसे करोड़ों भारतीय हैं जो कुछ एसे ही सवालों के हवाले हैं । इस सभी सवालों के उत्तर पाए बिना ये करोड़ों भारतीय अपने सपनों के भारत का हाथ आपके एच्छिक भारत के हाथ में शायद कदापि नहीं दे पाएँगे।
सादर
आपका
एक आम भारतीय