विधवा विलाप

रवि अरोड़ा
मुल्क का राजनीतिक तापमान चढ़ा हुआ है । काशी की ज्ञान वापी मस्जिद में शिवलिंग मिला है या फव्वारा यह सवाल सियासी पारा नीचे ही नहीं होने दे रहा । गर्म खबरों ने माहौल ऐसा बनाया है कि असल गर्मी और उसके मारों की बात ही नहीं हो रही । गर्मी से मैं भी हलकान था मगर इस ओर कायदे से ध्यान दिलाया मेरे ससुराल के एक घरेलू नौकर श्रवण कुमार ने । दरअसल परसों ही प्रयागराज से लौटा हूं और वहां की मशहूर गोबर गली के श्रवण कुमार ने ऐसी बात बताई जो पहले कभी नहीं सुनी थी । बकौल श्रवण धूप में सूखने के लिए रखे गए उपलों में आजकल अपने आप आग लग जाती है , जो पहले कभी नहीं लगती थी । लगभग पचास साल के श्रवण कुमार के लिए यह नई मुसीबत है तो मेरे जैसों के लिए भी यह चौंकाने योग्य खबर है । हालांकि मैं विज्ञान का विद्यार्थी नहीं हूं मगर किसी भी वस्तु के अग्नि बिंदू यानी फ्लैश प्वाइंट के बारे में तो जानता ही हूं । तो क्या जमीन का तापमान आजकल इतना बढ़ गया है कि गाय भैंस के सूखे हुए गोबर को भी बिना किसी आग के जला दे ?

वाकई इस बार रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ रही है । मार्च से ही हीट वेव चल रही है और फागुन में ही 122 साल का रिकॉर्ड टूट गया । दिल्ली और उसके आसपास भी तापमान 49 को पार कर गया है । जाहिर है कि इंसानी जीवन के लिए यह मुश्किल भरा दौर है मगर इस ओर तो विचार ही नहीं किया जा रहा कि ऐसे में पशु पक्षियों का क्या हाल होगा ? ताल तलैया बचे नहीं , जल संकट से गांव शहर सभी बेजार हैं तो भला जानवरों की कौन परवाह करे ? प्रयाग राज से कानपुर तक राजमार्ग पर जो हजारों गाय तीन महीने पहले मुझे दिखी थीं , अब वे गायब हैं । यह मानने का कोई कारण नहीं कि गौ पालकों को उन पर दया आ गई होगी और उन्होंने अपना पशु धन घर में ही किसी छाया दार जगह पर बांध लिया होगा। आज जब खेतों में हरा चारा बहुत कम बोया गया है और भूसे का दाम तीन गुना बढ़ कर 15 से 20 रुपए किलो हो गया है , ऐसे में गरीब गौ पालक भला अपने जानवर घर में कैसे बांध सकता है ? वैसे भूसे की अलग राम गाथा है । नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने उद्योगों में लकड़ी जलाने पर जब से प्रतिबंध लगाया है तब से भूसे की ब्रैकेट बना कर जलावन का काम परवान चढ़ाया जा रहा है । उधर, गेंहू की नई संकर फसल में यूं भी भूसा कम निकल रहा था और इस बार रही सही कसर किसानों ने गेंहू की जगह सरसों की फसल को तरजीह देकर पूरी कर दी । कारणों की लंबी फेयरिस्त है जिसके चलते देश प्रदेश के करोड़ों जानवरों का पेट खाली है । पशु पालकों की जान को एक मुसीबत यह भी है कि अब जानवर के गोबर के उपलों यानी कंडो को भी कोई पूछ ही नहीं रहा । गांव गांव रसोई गैस पहुंचने के कारण उपला इतिहास होता जा रहा है । वैसे पिछले साल तक इसकी ठीक ठाक कीमत मिल रही थी मगर इस साल कोई लिवाल ही नहीं है । रही सही कसर उनमें अपने आप लगने वाली आग ने पूरी कर दी है । पशु पालकों के बिटोरे में आग तो जमाने से लगती ही रहती थी मगर इस बार बेतहाशा गर्मी ने ये नई मुसीबत भी दे दी है । कोढ़ में खाज यह भी है कि गर्मी में दुधारू जानवर यूं भी कम दूध देते हैं अतः श्रवण कुमार जैसों के लिए घर चलाना बेहद मुश्किल हो चला है । क्षमा कीजिए शिवलिंग बनाम फव्वारा की खबरों के बीच मैंने आपके मुंह का जायका खराब कर दिया और खामखां देश के करोड़ों श्रवण कुमारों का विधवा विलाप आपको सुना दिया ।

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