ये रास्ता तो काम नहीं करेगा

रवि अरोड़ा
कुछ साल पहले हिमाचल प्रदेश के पालनपुर में सोभा सिंह की आर्ट गैलरी देखने गया था । वही महान पेंटर सोभा सिंह जिन्हें भारत का सबसे अधिक प्रतिभाशाली चित्रकार माना जाता है । उनकी पेंटिंग दुनिया भर के करोड़ों घरों में तो लगी ही हुई हैं साथ ही हमारे संसद भवन की भी शोभा बढ़ा रही हैं । करोड़ों घर वाली बात हो सकता है कि आपको अतिरंजित लगे मगर ऐसा है नहीं । दरअसल हीर-रांझा, सोहनी महिवाल जैसी सैंकड़ों शाहकार पेंटिंग के अतिरिक्त सोभा सिंह ने तमाम सिख गुरुओं के भी चित्र बनाये थे । दुनिया का शायद ही कोई ऐसा सिख अथवा गुरु घर को मानने वाला परिवार हो जहाँ गुरु नानक और गुरु गोविंद सिंह के चित्र के रूप में सोभा सिंह की कल्पना शोभायमान न हो । यही नहीं सिख गुरुओं का ज़िक्र आते ही मेरे व आपके मानस पटल पर भी जो अक्स उभरता है दरअसल वह सोभा सिंह द्वारा ही कल्पित है । सिख गुरुओं की क़द-काठी, शक्ल ओ सूरत, पहनावा और भाव भंगिमाएँ पूरी दुनिया में आज वही स्वीकारी जाती हैं जिन्हें सोभा सिंह ने केनवास पर उभारा था । वक़्त के साथ तमाम अन्य चित्रकारों द्वारा बनाये गए गुरुओं के चित्र अस्वीकार्य होते गये और सोभा सिंह के चित्रों को ही गुरुओं की असली तस्वीर मान लिया गया । ख़ैर, इस आर्ट गैलरी के बीचों बीच लगी हुई है गुरु गोविंद सिंह की वह विशाल पेंटिंग जो उनके करोड़ों अनुयायियों के दिलो पर राज करती है । दरअसल इस तस्वीर में इतना सम्मोहन है कि गैलरी घूमने आया हर शख़्स इसके समक्ष आकर अपलक ठहर ही जाता है । इस तस्वीर में दर्शाई गई गुरु की आँखों में वीरता का ऐसा अनोखा चित्रण है कि वह कायर से कायर व्यक्ति को भी अपार साहस से भर देती है ।

दुनिया जानती है कि सिख धर्म के संस्थापक और करोड़ों लोगों के आदर्श गुरु गोविंद की तमाम शिक्षाएँ व्यक्ति को लक्ष्य प्राप्ति के लिये साहसी बनने की ही नसीहतें करती हैं । इसके लिये गुरु सर्वप्रथम अपने अनुयायी के भीतर से मृत्यु के भय को ही ख़त्म करते हैं । खालसा पंथ की स्थापना के समय पँज प्यारे का चुनाव, चारों साहेबजादों कि शहादत और लाखों लाख सिखों की क़ुरबानी मृत्यु के भय के विपरीत गुरू गोविंद सिंह की शिक्षा के कारण ही काम करती नज़र आती हैं । अब सवाल यह है कि दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन में रोज़ाना मर रहे सिख किसान भी क्या मृत्यु के समक्ष अड़ जाने की अपने गुरु की इसी सीख का नतीजा हैं ?

एक न्यूज़ चैनल पर समाचार था कि दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसानों के आंदोलन में अब तक 38 लोग मारे गये हैं । अधिकांश मौतों का कारण ठंड बताया गया और सामने आये नामों से पता चल रहा है कि मरने वाले अधिकतर पंजाब से आये सिख ही हैं । हैरानी की बात यह है कि भारी दुर्दशा के बावजूद इस आंदोलन में किसानों की संख्या फिर भी कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है । बेशक इस आंदोलन में हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान भी भारी संख्या में है मगर इसका नेतृत्व तो पंजाब के किसान ही कर रहे हैं । एक ख़बर यह भी पढ़ने को मिली आज़ादी के बाद यह पहला ऐसा अहिंसक आंदोलन है जिसने इतनी अधिक मौतें हुई हैं । कमाल है कि इतनी बड़ी संख्या में मौतों के बावजूद आंदोलनकारियों का जोश कम होने के बजाय बढ़ता ही कैसे जा रहा है ? क्या यह जोश सरकार में बैठे उन बड़े लोगों के लिये सबक़ नहीं है , जो समझते थे कि आंदोलनकारी किसान सर्दी का क़हर झेल नहीं पाएँगे और चुपचाप अपने घरों को लौट जाएँगे ?

सचमुच दिल श्रद्धा से झुक जाता है उस विराट व्यक्तित्व गुरु गोविंद सिंह के समक्ष जो सैंकड़ों साल बाद भी अपने अनुयायियों को न जाने निडर कैसे बना रहा है ? न जाने कैसे सोभा सिंह द्वारा कैनवास पर उभारा गया गुरू गोविंद सिंह की आँखों का तेज़ अपने अनुयायियों को मृत्यु से भयभीत ही नहीं होने देता ? मेरा सुझाव है कि किसान आंदोलन को बल पूर्वक ख़त्म करने की सलाह देने वाले लोग कम से कम एक बार सोभा सिंह द्वारा बनाई गई गुरू गोविंद की पेंटिंग अवश्य देख लें और फिर पुनः विचार करें कि क्या मृत्यु के भय के अतिरिक्त इस आंदोलन को समाप्त करने का और कोई रास्ता भी है ? क्योंकि यह तो काम नहीं करेगा ।

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