मेदांता का सहारा लेकर

रवि अरोड़ा
मुझे नहीं मालूम कि महान शायर साहिर लुधियानवी यदि अब ज़िंदा होते तो आजकल क्या लिख रहे होते । वैसे अपने 59 साल के जीवन में जिस तरह से वे ग़रीब, मजलूम और बेसहारा आदमी की आवाज़ बने , उससे से तो यही लगता है कि आज के सूरते हाल देखकर तो शर्तिया उन्होंने अपनी क़लम की धार और पैनी कर ली होती । जिस तरह से उन्होंने अपनी कालजयी रचना ‘ ताज ‘ लिखी और कहा कि इक़ शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़ , उसी तरह फ़ाइव स्टार अस्पतालों में अपना इलाज करवा रहे तमाम बड़े नेताओं पर भी एक धारदार नज़्म और लिखते और यक़ीनन उसका शीर्षक होता- मेदांता ।
लगभग दो साल पहले एक मित्र ने गुड़गाँव के फ़ाइव स्टार अस्पताल मेदांता में अपने दिल की बाईपास सर्जरी करवाई । मिज़ाजपुर्सी की ग़रज़ से मैं भी उनसे मिलने इस अस्पताल में गया । मित्र को चौदहवीं मंज़िल के जिस कमरे में रहा गया था, उसे देख कर आँखें खुली की खुली रह गईं । किसी पाँच सितारा होटल में भी इतना बड़ा और आलीशान कमरा मैंने कभी नहीं देखा था , जितना बड़ा कमरा उन्हें दिया गया था । कमरे में एक दीवार पूरी तरह पारदर्शी शीशे की थी और उसके पार पूरे इलाक़े का विहंगम दृश्य नज़र आता था । एक फ़ोन पर हमारे लिए बढ़िया चाय-नाश्ता कमरे में ही हाज़िर हो गया । सारा तामझाम देख कर समझ आ गया कि बड़े लोग इलाज के लिए क्यों मेदांता अस्पताल ही भागते हैं । कोरोना से पीड़ित देश के गृहमंत्री अमित शाह का इलाज भी आजकल इसी अस्पताल मेदांता में हो रहा है और सुना है कि उन्हें भी उसी चौदहवीं मंज़िल के किसी कमरे में रखा गया है जिसकी भव्यता मैं अपनी आँखों से देख चुका हूँ ।
अकेले अमित शाह की ही क्यों बात करें , कोरोना की चपेट में आये देश के तमाम बड़े नेताओं का इलाज एसे ही पाँच सितारा अस्पतालों में हुआ है अथवा आज भी हो रहा है । केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान भी इसी मेदांता अस्पताल में रह कर ठीक हुए। भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा भी मेदांता में कई दिन गुज़ार कर गये । भाजपा विधायक सुभाष सुधा का भी यहीं इलाज हुआ । महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे अशोक चव्हाण का इलाज ब्रीच केंडी तो तो कर्नाटका के मुख्यमंत्री यदुयरप्पा बंगलुरु के मणिपाल अस्पताल में भर्ती हुए । तमिलनाड़ु के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित , मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला, पूर्व केंद्रीय मंत्री भगत सिंह सोलंकी समेत आधा दर्जन राज्यों के एक दर्जन से अधिक अन्य मंत्री भी बड़े निजी अस्पतालों में कोरोना का अपना इलाज करवाने को भर्ती हुए। यही नहीं दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन ने भी कोरोना होने पर एशिया के बड़े सरकारी अस्पतालों में से एक एम्स में भर्ती होने की बजाय प्राइवेट मैक्स अस्पताल की सुविधाएँ लेना अधिक उचित समझा । कोरोना ही नहीं अन्य मामलों में भी इलाज के लिए बड़े नेताओं को ये फ़ाइव स्टार अस्पताल ही नज़र आते हैं । मुलायम सिंह यादव भी साँस सम्बंधी तकलीफ़ के लिए आजकल मेदांता गुड़गाँव में भर्ती है तो कई गम्भीर बीमारियों के चलते मध्य प्रदेश के राज्यपाल लाल जी टंडन ने मेदांता लखनऊ में हाल ही में आख़िरी साँस ली । कुल मिला कर बात यह है कि पार्टी कोई भी हो , यदि ताक़त और रुआब है तो इलाज मेदांता जैसे अस्पताल में ही होगा । बेशक वहाँ इलाज भी अच्छा होता होगा मगर सुख सुविधाओं और स्टेटस सिम्बल के चलते भी ये नेता इन्हीं पाँच सितारा अस्पतालों की ओर ही भागते हैं ।
नेताओं के बड़े निजी अस्पतालों में इलाज करवाने पर मेरे आपके जैसे लोगों को भला क्या एतराज़ होगा मगर आज जब हर आम ओ ख़ास आदमी का कोरोना सम्बंधी इलाज सरकारी अस्पतालों में हो रहा है तो ये बड़े नेता भी जनता का इन सरकारी अस्पतालों में विश्वास क़ायम करने के लिए एसा क्यों नहीं करते ? जब तमाम मंत्री संतरी दावा करते हैं कि सरकारी अस्पतालों में इलाज की सभी सुविधाएँ हैं , तो फिर क्यों नहीं ख़ुद भी इन सुविधाओं का लाभ उठाते ? पता नहीं आपका क्या मानना है मगर मुझे तो पक्का यक़ीन है कि यदि साहिर लुधियानवी आज होते तो इस मेदांता अस्पताल के नाम से एक नज़्म और लिखते और कहते- इन नेताओं ने मेदांता का सहारा लेकर हम ग़रीबों की बीमारी का उड़ाया है मज़ाक़ ।

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