नफरतों के ऑब्जेक्ट
रवि अरोड़ा
हालांकि मैं अपने पर्स में हमेशा अपना आधार कार्ड रखता हूं मगर सुबह अखबार पढ़ने के बाद आज एक बार फिर चेक किया । आधार कार्ड अपनी जगह सही सलामत देख कर राहत की सांस भी ली । वैसे आपको भी मैं यही सलाह दूंगा कि अपना अपना आधार जांच लें और तुरंत उसे अपने पर्स में भी रख लें। अजी जमाना बहुत खराब है । कहीं ऐसा न हो कि मध्य प्रदेश के नीमच शहर जैसा कोई दिनेश कुशवाहा कभी आपको पकड़ ले और मोहम्मद समझ कर पीट पीट कर मार दे । आप शिकार हुए उस बुजुर्ग की तरह बेशक बताते रहना कि मैं भंवर लाल जैन हूं मगर बिना आधार कार्ड के साबित ही न कर सकें । पूछताछ करने वाला व्यक्ति भगवा दल का नेता हुआ तो दुआ भी मांगिएगा कि केवल आधार दिखाने से ही वह मान जाए और आपसे अपनी नागरिकता साबित करने को भी न कह दे ।
सत्तर साल के विक्षिप्त भंवर लाल जैन की हत्या एक चेतावनी है । इस चेतावनी को हल्के से लेना कतई ठीक नहीं । नफरत की हवाएं बहुत तेज हैं । इंसानियत के उड़ने का खतरा मंडरा रहा है। यदि न भी उड़ी तो तार तार तो अवश्य हो ही जाएगी । कभी हिजाब तो कभी हलाल , कभी लाउड स्पीकर तो कभी शिवलिंग, कभी ताज महल तो कभी कुतुबमीनार , अजी देखते जाइए, अभी तो न जाने क्या क्या बाकी है । अपने दिमागों को लोगबाग आखिर कब तक बचाएंगे । देर सवेर नफरतों का बसेरा तो चंहुओर होना ही है । किसी के जेहन में पहले तो किसी का बाद में । फैशन के अनुरूप ढलना सबको ही पड़ेगा । जो खुद को नहीं बदलेंगे वो जेल जाएंगे या भंवर लाल जैन के पास ।
भगवा राजनीति अपने पल्ले तो बिलकुल नहीं पड़ रही । एक तरफ तो अखंड भारत की बात होती है और दूसरी ओर चुन चुनकर मुस्लिमों को टारगेट भी किया जाता है । कभी कहते हैं कि हमारा डीएनए एक है और कभी हिंदुत्व से कम पर समझौता ही नहीं करते । समझ नहीं आ रहा कि मुल्क के बीस करोड़ मुस्लिम ही जब सहन नहीं हो रहे तो उनके नक्शे के अखंड भारत में तो चालीस करोड़ और मुस्लिम हैं, उन्हें कैसे झेलेंगे ? मुस्लिमों को दोयम दर्जे का नागरिक बना कर यदि अखंड भारत बनाने का इरादा हो तो यह भी मुश्किल है। साठ करोड़ मुस्लिम इसे भला क्यों आसानी से स्वीकार करेंगे और यदि नहीं स्वीकार करेंगे तो क्या होगा ? यदि यह खयाल हो कि इन मुस्लिमों को वापिस हिंदू धर्म में लाया जाएगा तो यह भी संभव नजर नहीं आता । आजादी के बाद से भारतीय उपमहाद्वीप में वसीम रिजवी के अलावा कोई ऐसा उदाहरण मुझे तो दिखाई नहीं पड़ता । वैसे चार महीने की जेल के बाद जीतेंद्र नारायण त्यागी बने वसीम रिजवी के दिमाग का भूत भी अब उतरा हुआ है , भला बाकियों को कैसे अपना बनाएंगे ?
वैसे अपनी कोई हैसियत तो नहीं कि इन नफरतियों को कोई सलाह दे सकें मगर फिर कहने से रुका नहीं जा रहा कि भाइयों मुंह जबानी दादागिरी तक ही थमे रहो , बात इससे आगे मत ले जाओ । भई ये मुस्लिम ही तो तुम्हारी दुकान का सौदा हैं , इन्हे ही खराब कर दोगे तो खाओगे क्या और बेचोगे क्या ? ये मुस्लिम हैं तो तुम हो , इनके बिना तो तुम भी सिफर हो । तुम्हारी नफरतों को ऑब्जेक्ट मिला हुआ है तो ठीक है , अपने भाषणों में बो एंड एरो जैसे वीडियो गेम खेलो मगर सचमुच के तीर कमान बिलकुल मत निकालो । तुम्हें पता नहीं है कि तुम्हारी जद में भंवर लाल जैन जैसे मासूम भी हैं और वे बेचारे जानते तक नहीं कि उन्हें क्यों मारा जा रहा है ।