डर लगे तो गाना गा

डर लगे तो गाना गा
रवि अरोड़ा
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष शिशोदिया ने तो डरा ही दिया है । उन्होंने सोमवार को दावा किया कि दिल्ली में इसी गति से कोरोना मरीज़ बढ़ते रहे तो 31 जुलाई तक राजधानी में महामारी के शिकार लोगों की गिनती साढ़े पाँच लाख पहुँच जाएगी । हालाँकि फ़िलहाल वहाँ यह आँकड़ा 31 हज़ार पर है मगर जिस तरह से साढ़े बारह दिन में मरीज़ों की गिनती दोगुनी हो रही है , उनका अनुमान इसी पर आधारित है । बक़ौल उनके दिल्ली में 31 जुलाई तक अस्सी हज़ार बेड की ज़रूरत होगी जबकि अभी मात्र आठ हज़ार बेड ही कोरोना मरीज़ों के लिये उपलब्ध हैं । मनीष के अनुमानित आँकड़ों का केंद्र सरकार ने खंडन नहीं किया है अतः माना जा सकता है कि उसका अनुमान भी इसी आँकड़े के आसपास होगा । हालाँकि देश भर के अनुमानित आँकड़े अभी किसी नेता ने नहीं दिये हैं अतः यह अंदाज़ा हमें स्वयं ही लगाना होगा कि राजधानी दिल्ली जिसकी आबादी ढाई करोड़ है और जो देश की कुल आबादी के मुक़ाबिल दो फ़ीसदी भी नहीं है , उसमें इतने मरीज़ हैं तो अगले महीने तक बाक़ी देश में क्या हालत होगी ? चलिये जुलाई के आख़िर तक का कोई अनुमान हम लगा भी लें मगर अगस्त व सितम्बर के महीने तक मरीज़ों की संख्या कितनी होगी , यह तो अनुमान से भी बाहर है ।
अख़बारों में ख़बर थी कि देश में पंद्रह अगस्त तक कोरोना के मरीज़ों की गिनती तीन करोड़ तक पहुँच जाएगी । इस अनुमान को मनीष के बयान से बल मिलता नज़र आ रहा है । मरीज़ों की गिनती बढ़ने पर तो चलिये हमारा इख़्तियार नहीं है मगर हमारे यहाँ इलाज की सुविधाएँ भी तो नहीं दिख रहीं । देश की राजधानी दिल्ली में ही जब मरीज़ मारे मारे घूम रहे हैं तो एसे में मुल्क के छोटे शहरों की क्या हालत होगी ? दिल्ली में स्वास्थ्य व्यवस्थाएँ दस हज़ार मरीज़ों की संख्या पर ही जब टाएँ टाएँ फ़ुस्स हो गईं तब अगले महीने पाँच लाख पार मरीज़ों पर क्या होगा ? जिस शहर में पूरे मुल्क के बड़े नेता बैठे हैं , जहाँ से पूरा देश संचालित होता है वहाँ भी निजी अस्पताल दोनो हाथों से लूट रहे हैं तो अन्य शहरों का अंदाज़ा भी नहीं लग सकता । भुक़्तभोगी बता रहे हैं कि दिल्ली के निजी अस्पतालों में वही जाए जो पहले ब्लैक में बेड हासिल कर सके और फिर कम से कम एक लाख रुपया प्रतिदिन इलाज पर ख़र्च वहन करने की हैसियत रखता हो । पाँच लाख रुपया तो एडवांस ही जमा कराने पड़ेंगे । इन अस्पतालों में पचास हज़ार रुपया बेड , पिछत्तर हज़ार रुपये आईसीयू और एक लाख रुपये वेंटिलेटर के रोज़ाना की दर से वसूले जा रहे हैं ।
मनीष शिशोदिया के बयान का सहारा लेकर मैंने आपको जो डराया उसके लिये कृपया मुझे क्षमा करें । दरअसल बाज़ारों में बढ़ती भीड़-भाड़ और गली मोहल्लों में भी हो रही बेधड़क चहल पहल देख कर मन हुआ कि अपना डर आपसे साँझा किया जाये । पता नहीं हम लोग समझ क्यों नहीं रहे कि जिस सरकारों को हम अपना ख़ैरख़्वाब समझ कर पुराने ढर्रे पर लौट रहे हैं , वे ख़ुद इस मामले में अंधेरे में तीर मार रही हैं । जब कुछ ही मामले थे तो ढाई महीने तक हमें घर बैठाये रखा और अब जब रोज़ाना दस हज़ार मरीज़ मिल रहे हैं और कुल मरीज़ों की संख्या पौने तीन लाख पार कर गई है तब कह रहे हैं कि अपने अपने काम पर जाओ । जनाब सरकार अगर कुछ कर सकती तो ढाई महीने के लाक़डाउन में ही कर लेती । इशारा समझिये और आत्मनिर्भर बनिए । अच्छी तरह समझ लीजिये कि अपनी और अपनों की जान की परवाह हमें ख़ुद करनी हैं । सरकार का क्या है उसने पहले ताली-थाली बजवाई और दीये जलवाए और अब जब हम उसे कहेंगे कि डर लग रहा है तो वह कह देगी- डर लगे तो गाना गा ।

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