ठहरे हुए लोग

रवि अरोड़ा
बचपन से ही माता पिता के साथ गुरुद्वारों में माथा टेकने जाता रहा हूं । गुरुद्वारा परिसर में किसी निहंग सिख के दिखने पर माता पिता मुझे सिखाते थे कि इन्हे सत श्री अकाल कहो । पूछने पर वे बताते थे कि ये हमारी कौम के सिपाही हैं और गुरु गोविंद सिंह जी के आदेश पर ही हमारी रक्षा के लिए इन्होंने यह वेश धारण किया है । हालांकि मेरा बाल मन उनसे डरता था । जाहिर है कि सिर से पांव तक नीले कपड़े , लंबी खुली दाढ़ी, हाथों में बरछा, कमर में लंबी तलवार और खंडा किसी बाल मन को भयभीत करने के लिए काफी ही होता था । थोड़ा बड़ा हुआ तो उनका उजड्ड आचरण भी डराने लगा । बंगला साहिब अथवा हरमंदिर साहिब जैसे किसी गुरुद्वारे के सरोवर में स्नान करते समय श्रद्धालुओ के प्रति उनका अपमानजनक व्यवहार भी सीख देता था कि इनसे दूर ही रहा जाए । थोड़ा बड़ा हुआ तो मन में सवाल उठने लगा कि आज जब देश आजाद है । हमारे पास अपनी सरकार, पुलिस , सेना और पूरा तंत्र है , फिर ये लोग अब किसकी रक्षा कर रहे हैं और किससे कर रहे हैं ?

डेढ़ साल पहले कोरोना काल में पटियाला की एक सड़क पर जब कर्फ्यू पास दिखाने को कहने पर एक निहंग ने पुलिस कर्मी का हाथ काट दिया तो मुझ जैसे तमाम लोगों की पुख्ता राय बनी कि ये लोग सिख तालिबानी हैं और देर सवेर देश को इनके बाबत भी कुछ सोचना पड़ेगा । हाल ही में किसान आंदोलन के बीच एक दलित लखबीर सिंह की निहंगों ने जिस तरह से नृशंस हत्या की और पुलिस, प्रशासन , तमाम सरकारें , सभी राजनीतिक दल मुंह में दही जमा कर बैठ गए । जिस तरह से लखबीर के अंतिम संस्कार को रोका गया और उसके परिजनों को कोई धार्मिक आयोजन भी नहीं करने दिया गया । यही नहीं कोई राजनैतिक कार्यकर्ता तो दूर कोई गांव वाला भी मृतक के परिजनों को सांत्वना देने नहीं गया, उससे सवाल उठने लगा है कि चंद सिरफिरे ही अतिवादी हैं अथवा अपना यह पूरा मुल्क ही इन अंधेरी गलियों की ओर चल पड़ा है ? क्या सचमुच अन्य मुल्कों की तरह यहां भी इंसानी मन की तमाम कोमल भावनाएं अब इतिहास होने की कगार पर हैं ?

बेशक किसी धार्मिक पुस्तक का अपमान नहीं होना चाहिए मगर क्या इंसानी जीवन का इस वहशियाना तरीके से होना चाहिए ? अभी तक कोई सबूत नहीं मिला है कि लखबीर ने गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी की । एक वीडियो कहता है कि वह अपमान करने वाला था तो एक वीडियो कहता है कि वह ग्रंथ साहब को उठा कर ले जाना चाहता था । एक वीडियो में तो दसवें गुरु की पुस्तक सर्बलोह के अपमान की बात की गई है और अभी तक यह भी स्पष्ट नही हो रहा कि अपमान ग्रंथ साहब का हुआ अथवा होने वाला था या सर्बलोह का ? जाहिर है कि सर्ब लोह की वह मान्यता नहीं है जो गुरु ग्रंथ साहब की है । सर्ब लोह जैसे तो अनेक ग्रंथ सिख धर्म में हैं , जिन्हे आदर तो दिया जाता है मगर पूजा नहीं जाता । घटना के बाद सामने आए तमाम वीडियो में निहंग जिस प्रकार अपनी बहादुरी का बखान कर रहे हैं , उससे क्या यह सवाल नहीं उठता कि बेहद समझदार सिख कौम इन जंगलियों से अपने को कब तक जोड़े रखेगी ? क्या कौम के रहनुमाओं को सोचना नहीं चाहिए कि इतिहास में कहीं ठहरे हुए ये लोग उनकी तमाम सिफतों पर पानी क्यों फेर रहे हैं ? इन निहंगों की इस करतूत को देख कर क्या मेरे जैसे तमाम अज्ञानियों के मन में यह सवाल नही उठेगा कि क्या ये निहंग भी उसी सिख कौम के हिस्सा हैं जिसने आतातायियो से सदियों हमारी रक्षा की , आजादी के लिए सर्वाधिक कुर्बानियां दीं और आज भी कोरोना जैसी महामारी में सेवा के सर्वोत्तम कार्य कर नित नई मिसाल पेश कर रहे हैं ?

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