टच वुड

रवि अरोड़ा

अभी चार दिन पुरानी बात है । दिन ढलते ही जम कर ओले पड़ने लगे । मैं और पत्नी बालकनी में खड़े होकर कर क़ुदरत की करनी देख रहे थे । सड़क पर ओलों से बिछी सफ़ेद चादर देख कर पत्नी बेहद रोमांचित थी । उसके उत्साह को देखकर मैंने कहा कि खेती-किसानी के लिए ये ओले क़हर हैं और इससे किसानों को बहुत नुक़सान होगा । इस पर पत्नी ने तुरंत एक ओला उठाया और दाँत से काट कर फेंक दिया । मेरी हैरानी को देख पत्नी ने बताया कि इससे ओलवृष्टि रुक जाती है । आश्चर्य की बात ये कि तुरंत ओले पड़ने बंद भी हो गए । पत्नी ने गर्व से मेरी ओर देखा । उसका पूरा विश्वास था कि ओलावृष्टि इसी टोटके से ही रुकी है । हालाँकि मैं भलीभाँति मानता था कि ओलवृष्टि कभी तो रुकनी थी और यह एक संयोग भर था कि टोटके के ठीक बाद ही ओले पड़ने बंद हो गए । ओले तो थम गए मगर मेरा हिसाब किताब अभी तक चालू है कि ओलों की वर्षा रोकने को कितने लोगों ने यह टोटका आज़माया होगा और उनमे से कितने फ़ीसदी को विश्वास हो गया होगा कि क़ुदरत पर उनका विश्वास भारी पड़ सकता है ?

सारी दुनिया कहती है कि हम एशियाई अंधविश्वासी होते हैं । भारतीयों पर यह तमग़ा कुछ ज़्यादा ही चिपका है । अपने बीते दिन याद कता हूँ तो सैंकड़ों घटनाएँ और क़िस्से मुझे भी नज़र आते हैं । पैंतालिस-पचास साल पहले जब पिताजी व्यापार के सिलसिले शहर से बाहर जाते थे तो एक साथ बहुत कुछ एसा हो जाता था । टॉयलेट साफ़ करने वाली महिला को रोक लिया जाता था ताकि घर से बाहर निकलते समय उसके दर्शन हों जोकि शुभ माने जाते हैं । छोटा भाई जाकर चुपके से पड़ोसी पंडित जी के घर के बाहर कुँडी लगा देता था ताकि जाते समय उनपर निगाह न पड़े । शुभ-अशुभ में ऊँच-नीच का चक्र एक दम उलटा काम करता है। पिताजी घर से दही और चीनी खाकर निकलते थे और चलने समय पानी बिलकुल नहीं पीते थे । छोटी बहन दरवाज़े पर एक लोटे में पानी लेकर खड़ी हो जाती थी और पिताजी लोटे में कुछ सिक्के उसमें डालते थे ताकि उनकी यात्रा सफल हो । घर से बाहर निकलते पिताजी को पीछे से आवाज़ देने की सख़्त मनाही थी । घर में कैंची छुपा दी जाती थी ताकि ऐन मौक़े पर कोई बच्चा कैंची न खड़का दे । हालाँकि इन तमाम टोटकों के बावजूद पिताजी कई दिनो बाद जब लौटते थे तो उनका चेहरा लटका हुआ ही होता था । कभी नए ओर्डर नहीं मिलते थे तो कभी पुराने भुगतान नहीं होते थे ।

अंधविश्वास कैसे जन्मते हैं और इनका आशिक्षा से कितना गहरा सम्बंध है , यह मैं नहीं जानता । हालाँकि मैं यह ज़रूर मानता हूँ कि अशिक्षित समाज को किसी एक ही लकीर पर चलाने के लिए विद्वानों ने कुछ परम्परायें अवश्य शुरू की होंगी और हम लोग उनका आशय समझे बिना ही हम लोग आज भी उन पुरानी लकीरो को पीट रहे हैं । ज़रूर पानी की बचत को सप्ताह में दो दिन बाल कटवाने अथवा शेव न करने का चलन शुरू हुआ होगा । अंधेरे में कोई क़ीमती चीज़ घर से बाहर न चली जाए , इस लिए ही दिन छिपे झाड़ू न लगाने की रीति और खाने की वस्तु में न गिर जाए इसलिए अँधेरा होने पर नाख़ून न काटने की नीति बनी होगी मगर आज जब कृत्रिम रौशनी से दिन के मुक़ाबले रात में अधिक प्रकाश होने लगा है और दूर कुएँ से पानी लाने की ज़हमत भी नहीं करनी पड़ती , फिर क्यों हम एसी पुरानी लकीर पीट रहे हैं ? शुभ कार्य के समय छींकना अथवा काली बिल्ली के रास्ता काटने से काम कैसे बिगड़ता है , यह रहस्य मैं अभी तक नहीं जान पाया । पैर लटका कर हिलाने से अक़्ल कैसे निकल जाती है , यह भी मेरी समझ से बाहर है । तेरह नम्बर का अपशगुन और नींबू-मिर्च , घोड़े की नाल और टूटते तारे को देखने का शगुन क्यों है , यह भी मेरे पल्ले नहीं पड़ता । सच कहूँ तो अंधविश्वासों का समाज को एकमात्र उपहार मुझे केवल यही नज़र आता है कि मंगलवार अथवा वीरवार को कुछ लोग शराब अथवा माँस मछली से परहेज़ करते हैं और इसी बहाने उनके परिवार में सुख शांति रहती है । वैसे कई बार राहत महसूस होती है कि बहुत से अंधविश्वास वक़्त के साथ ख़त्म हो रहे हैं । बहुत से पुराने अंधविश्वास अब नई पीढ़ी को मालूम भी नहीं । अभी और अच्छा वक़्त आया तो बचे- खुचे वह सारे अंधविश्वास भी जो विज्ञान की कसौटी पर खरे नहीं उतरेंगे , अपने आप फ़ना हो जाएँगे । मगर मुसीबत यह है कि अब कई नए अंधविश्वास भी जन्मने लगे हैं । अब जब नई पीढ़ी बात बात पर टच वुड- टच वुड कह कर लकड़ी की कोई शै ढूँढने लगती है , तो अपना सिर पीटने का मन करता । अब आप ही बताइये कि इस नई मुसीबत टच वुड से कैसे जान छुड़ायें ?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED POST

जो न हो सो कम

रवि अरोड़ाराजनीति में प्रहसन का दौर है। अपने मुल्क में ही नहीं पड़ोसी मुल्क में भी यही आलम है ।…

निठारी कांड का शर्मनाक अंत

रवि अरोड़ा29 दिसंबर 2006 की सुबह ग्यारह बजे मैं हिंदुस्तान अखबार के कार्यालय में अपने संवाददाताओं की नियमित बैठक ले…

भूखे पेट ही होगा भजन

रवि अरोड़ालीजिए अब आपकी झोली में एक और तीर्थ स्थान आ गया है। पिथौरागढ़ के जोलिंग कोंग में मोदी जी…

गंगा में तैरते हुए सवाल

रवि अरोड़ासुबह का वक्त था और मैं परिजनों समेत प्रयाग राज संगम पर एक बोट में सवार था । आसपास…