घर किसे बैठना है मोदी जी

रवि अरोड़ा
कल एक बेहद नज़दीकी मित्र की अचानक तबीयत बिगड़ गई । उन्हें तुरंत लेकर अस्पताल जाना पड़ा । दुर्भाग्य एसा रहा कि उन्हें बचाया भी नहीं जा सका । कल से लेकर आज दोपहर तक अस्पताल, मित्र के घर, बाज़ार और हिंडन स्थित श्मशान घाट तक कार से अनेक जगह जाना पड़ा । मित्र की हालत ख़राब होने की जब सूचना मिली तो मन में भय हुआ कि लॉकडाउन में घर से कैसे निकलूँगा । कोई कर्फ़्यू पास है नहीं और कार पर प्रेस का स्टीकर तक मैंने नहीं लगा रखा । आजकल स्थाई रूप से किसी अख़बार में नहीं हूँ अतः प्रेस का आईडी कार्ड भी नहीं है । अब एसे में रास्ते में यदि कोई पुलिस वाला मिल गया तो क्या होगा ? यदि कोई पहचान का मिल गया तो ठीक वरना अपमानित भी होना पड़ सकता है । चूँकि मित्र दिल के बेहद क़रीब था अतः घर से निकलने का रिस्क लेना ही पड़ा । मगर यह क्या रास्ते में कहीं भी कोई पुलिस वाला दिखा ही नहीं । केवल यही नहीं कल से अब तक लगभग आधा शहर और प्रत्येक प्रमुख जगह से मैं गुज़रा , कहीं भी एक भी पुलिस कर्मी नहीं दिखा । सड़कों पर पचासों कारें और स्कूटर मोटर साइकिल दिखे मगर कहीं कोई पूछताछ होती नहीं मिली । अनेक जगह बेरिकेडिंग तो थे मगर उनके पास कोई पुलिस अथवा प्रशासनिक कर्मी नहीं था । सच कहूँ तो यह सब देख कर अपने शहर वालों पर ख़ूब लाढ़ आया कि देखो इसे कहते हैं सेल्फ डिसिप्लेन ।
सबको पहले से ही अनुमान था कि लॉकडाउन अभी और आगे बढ़ेगा । हालाँकि यह भी उम्मीद थी कि देश के नाम अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री जी लॉकडाउन में कुछ रियायतों की भी घोषणा आज करेंगे । बेशक अभी उन्होंने एसा नहीं किया मगर देश अनुशासित रहा तो बीस अप्रैल के बाद एसा कुछ होने की पूरी सम्भावना है । मोदी जी का यह वाक्य दिमाग़ में छप सा गया है कि हमें जान और जहान दोनो का ख़याल रखना पड़ेगा । अब जहान सम्भालना है तो खेती-किसानी, उद्योग और तमाम ज़रूरी कामों से जुड़े लोगों को कुछ रियायतें तो देनी ही पड़ेंगी । बहुत लम्बे समय तक इसी तरह लॉकडाउन चलाया भी तो नहीं जा सकता । प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि जहाँ कोरोना के मामले नहीं बढ़ेंगे , उन क्षेत्रों को ही रियायत मिलेगी मगर उन्होंने यह नहीं बताया कि सारी ज़िम्मेदारी जनता-जनार्दन की होगी या पुलिस-प्रशासन की भी कुछ चूड़ियाँ टाइट की जाएँगी । माना शुरुआती दौर में अधिकारियों ने बहुत अच्छा काम किया । नतीजा पूरे देश ने इसके लिए उनका आभार भी व्यक्त किया । मोदी जी के कहने पर बालकनी में खड़े होकर ताली-थाली भी बजाई मगर इतनी जल्दी ही ये लोग थक गए , शिथिल हो गये ?
पता नहीं अफ़सर अब अपने घरों से निकल भी रहे हैं या अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर ही काग़ज़ी योजनाएँ बना रहे हैं ? राशन, किराना और दवा की दुकानें पता नहीं किसके आदेश पर केवल तीन घंटे सुबह और तीन घंटे शाम को खुल रही हैं ? नतीजा इस दौरान दुकानों पर भीड़ लग रही है और सोशल डिसटेंसिंग का आदेश ही मटियामेट हो रहा है । डीएम और एसएसपी समेत तमाम बड़े अधिकारियों के आवास से तीन सौ मीटर दूर राजनगर के सेक्टर दस की मार्केट का यह हाल है तो दूर दराज़ के इलाक़ों की क्या हालत होगी ? कैला भट्टा निवासी एक मित्र ने आज बताया कि सघन आबादी वाले हमारे इलाक़े में तो शाम होते ही लोगबाग़ बाज़ार में टूट ही पड़ते हैं और लोगों को कंट्रोल करने के लिए व्यापक सुरक्षा बल तो दूर एक सिपाही तक नज़र नहीं आता । अब आप ही हिसाब लगायें कि एसे थामेंगे हम कोरोना को ? प्रधानमंत्री जी बताइए तो सही कि आपने हमें घर बैठने के लिए कहा था या इन अफ़सरों को ?

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