आगे आगे देखिए

रवि अरोड़ा
लगभग तीन दशक पुरानी बात है । शहर के मुस्लिम बहुत इलाके कैला भट्टे में एक सरफिरे युवक ने पवित्र कुरान की बेअदबी कर दी । इससे इलाके में रोष फैल गया और जुम्मे की नमाज के बाद फैसला हुआ कि युवक को वहां बुलाकर पूछताछ की जाएगी । सरफिरे को पकड़ कर लाया गया और फिर पुलिस के बड़े बड़े अधिकारियों की मौजूदगी में भीड़ द्वारा उसका बेरहमी से कत्ल कर दिया गया । पुलिस ने भी मूक तमाशा इस डर से देखा कि कहीं कोई बड़ा तमाशा न हो जाए , एक गरीब युवक की मौत से फर्क भी क्या पड़ता है ? दशक बीत गए । इस दौरान दुनिया कहां से कहां पहुंच गई मगर मुल्क की पुलिस आज भी वहीं खड़ी है । पिछले दो दिनों में दो लोगो की पंजाब में कुछ ऐसे आरोपों के चलते ही भीड़ द्वारा पीट पीट कर हत्या कर दी गई । इस बार भी पुलिस किसी बड़ी घटना के खौफ के चलते केवल तमाशाई की ही भूमिका में रही । पता नहीं ये हो क्या रहा है ? ईशनिंदा और धर्म ग्रंथ तो दूर अब तो निशान साहब जैसे धार्मिक प्रतीको के कथित अपमान पर भी भीड़ द्वारा हत्या की जाने लगी है । गौर से देखिए कहीं मध्यकाल का बर्बर युग पुनः तो नहीं लौट आया है ?

कट्टर मुस्लिम संगठन अरसे से मांग कर रहे हैं कि देश में ईश निंदा कानून बने । कट्टर सिख उससे भी आगे बढ़ गए हैं । उन्हें किसी कानून की भी जरूरत नहीं । वे तो खुद ही फैसला करने लगे हैं । पहले किसान आंदोलन में दलित लखबीर के हाथ काट कर लटकाए गए और अब ये दो हत्याएं कर दी गईं । ईश निंदा के नाम पर पाकिस्तान में इसी तरह के भीड़ द्वारा इंसाफ किए जाने की खबरें पढ़ पढ़ कर हम बड़े हुए हैं । लगता है कि इस मामले में भी हम पाकिस्तान को पीछे छोड़ने पर आमादा हैं । बेशक आज भी दुनिया भर के 26 फीसदी देशों में ईश निंदा जैसे कानून हैं और उनका कड़ाई से अनुपालन भी होता है । मगर ये देश सऊदी अरब, पाकिस्तान और ईरान जैसे हैं और पूरी दुनिया में उनकी कैसी छवि है , यह सबको पता है । बेशक हमारी तमाम सरकारें ईश निंदा कानून के खिलाफ रही हैं और स्वयं सुप्रीम कोर्ट भी इसकी आवश्यकता को नकार चुका है मगर हालात चुगली कर रहे हैं कि देर सवेर हम बढ़ इसी दिशा में रहे हैं जहां पाकिस्तान जैसे देश खड़े हैं । हालांकि हमारे मुल्क में धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के मामले में धारा 295ए के तहत कड़ा कानून पहले से ही मौजूद है और उसके तहत तीन साल की सजा का भी प्रावधान है मगर उससे कट्टर धर्मांधों की तसल्ली कहां हो रही है ? वे तो भीड़ द्वारा किए गए त्वारिक फैसले पर ही विश्वास करते हैं ।

न न न…राजनीतिक दलों और उसके नेताओं से कोई उम्मीद मत पालिए । वे तो सदैव भीड़ के साथ ही खड़े होंगे । सारे अखबार उठा कर देख लीजिए । हर नेता बेअदबी की जांच की बात कर रहा है । हत्याओं की निंदा कोई नहीं कर रहा । लखबीर के परिजनों के आंसू पोंछने भी ये लोग कहां गए थे ? पंजाब के नेता तो अपनी विधान सभा में 2008 में ही भीड़ के फैसले के संबंध में अपनी सहमति दे चुके हैं । बेशक उसका प्रस्ताव राष्ट्रपति ने नामंजूर कर दिया था । मगर अब कब तक ऐसी नामंजूरी चलेगी ? मुल्क जिस दिशा में जा रहा है वहां ईश निंदा जैसे कानून तो अब बनने ही हैं । आगे आगे देखिए अभी और क्या होता है ।

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